- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- अपनों ने अपनाने से किया इनकार अब...
अपनों ने अपनाने से किया इनकार अब कौशल ही बना जीने का सहारा

- मनोचिकित्सालय में स्वस्थ्य होने के बाद दिया जाता है प्रशिक्षण
- 20 महिलाएं तैयार कर रहीं राखियां
- आमदनी होने से मिलता है आर्थिक संबल
भास्कर संवाददाता | नागपुर. प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में लाई जाने वाली कुछ महिला मनोरोगियों के लिए अस्पताल ही आसरा बन गया है। मध्य भारत का सबसे बड़ा मनोचिकित्सालय होने के कारण यहां हर समय 500 से अधिक मरीज भर्ती रहते हैं। इसमें पुरुष और महिलाएं शामिल हैं। कुछ मरीज स्वस्थ हो जाते हैं, ताे कुछ का आजीवन उपचार चलता है। जो मरीज स्वस्थ हो जाते हैं, उनके परिजन या रिश्तेदार उन्हें ले जाने से इनकार कर देते हैं। ऐसे मरीजों का कौशल ही जीने का सहारा होता है। अस्पताल प्रशासन द्वारा स्वस्थ्य होने वाले मरीजों को उनकी रुचि के अनुसार काम करने का मौका दिया जाता है। दिवाली व रक्षाबंधन के अवसर पर बाजारों में बिकने वाले दीये की पेंटिंग और राखियां बनवाई जाती हैं, ताकि इन सामग्रियों की बिक्री से उन्हें आर्थिक मदद की जा सके। इस रक्षाबंधन के लिए यहां की 20 महिलाएं राखियां तैयार कर रही हैं। यह क्रम पिछले 15 साल से अधिक समय से चल रहा है।
बाजारों से लाई जाती है कच्ची सामग्री : प्रादेशिक मनाेचिकित्सालय प्रशासन द्वारा सबसे पहले स्वस्थ हो चुके मनोरोगियों के भीतर छिपी प्रतिभा को निखारा जाता है। उनके भीतर कौन सा कौशल छिपा है, जिसकी उपयोगिता से उन्हें अर्थाजन हो सकता है, इस पर कार्य किया जाता है। जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह व्यक्ति या महिला अब काम करने योग्य है, तो उसे उसकी रुचि का काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसी ही 20 महिलाओं का समूह यहां रक्षाबंधन के लिए राखी बनाने का काम कर रहा है। इसके लिए कच्ची सामग्री बाजारों से खरीदी जाती है। इंटरनेट पर राखियों की डिजाइन देखकर उन्हें विविधरंगी राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मनोचिकित्सालय के अधिकारी व कर्मचारी समेत सामाजिक विभाग के कर्मचारियों की मदद ली जाती है। करीब दो महीने पहले से यह काम शुरू कर दिया जाता है। राखियां बनने के बाद मनोचिकित्सालय परिसर में ही स्टॉल लगाया जाता है। यहां के कर्मचारी, अधिकारी व आने-जाने वालों को यह राखियां बेची जाती हैं। इस वर्ष 5 से 10 हजार राखियां तैयार होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
कौशल देखकर दिया जाता है काम
डॉ. श्रीकांत करोडे, प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक, प्रादेशिक मनोचिकित्सालय के मुताबिक प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में मनोरोगियों की अनेक कहानियां होती है। स्वस्थ होने के बाद कुछ को घर-परिवार मिल जाता है, तो कुछ को नहीं। ऐसे स्वस्थ मरीजों को उनके कौशल को देखते हुए कुछ न कुछ काम दिया जाता है, ताकि उन्हें आगे का जीवन गुजारने के लिए आर्थिक संबल मिल सके। उन्हें दीये, पेंटिंग व राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस साल समूह में 20 महिलाएं राखियां तैयार कर रही हैं। यह राखियां परिसर में ही बिक्री के लिए रखी जाती हैं।
इसलिए मनोचिकित्सालय ही सहारा : राखियां बनाने वाली महिलाओं के बारे में बताया गया कि यह महिलाएं पहले मनोरोगी थीं। इन्हें परिजनों, रिश्तेदारों, समाजसेवियों व पुलिस द्वारा उपचार के लिए लाया गया। उपचार के बाद यह महिलाएं स्वस्थ हो चुकी हैं, लेकिन उन्हें लेने के लिए कोई नहीं आया। इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी हैं, जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। कुछ ऐसी हैं, जिन्हें ले जाने के लिए परिजन व रिश्तेदार तैयार नहीं है। कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं, जिनके परिवार के बारे में जानकारी तो है, लेकिन उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं है। ऐसे हालातों को देखते हुए प्रादेशिक मनोचिकित्सालय ही उनके लिए सहारा है।
Created On :   13 Aug 2023 5:42 PM IST