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शक्तिरूपा: शिक्षिका ने बेटियों को बचाने का लिया व्रत
- मजबूत बनने और जीने की कला सिखाती
- शिक्षिका विजया मारोतकर की पहल
- सकारात्मक परिवर्तन
डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे| प्रेम प्रकरण या जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिससे बेटियों का जीवन तहस-नहस हो जाता है। वह घोर निराशा में डूबती चली जाती हैं। यहां तक कि घर छोड़ने या आत्महत्या करने की सोच मन में उत्पन्न होने लगती है। कोई दिशा नजर नहीं आती। ऐसी बेटियों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भरकर उन्हें सही दिशा दिखाने, मजबूत बनाने और जीने की कला सिखाने का काम कर रही हैं शिक्षिका विजया मारोतकर। समाज में ऐसी महिलाएं शक्तिरूपा होती हैं। विजया ने ठान लिया है कि वह जीवनभर केवल बेटियों के लिए काम करेंगी। उनके इस कार्य के चलते राज्यभर में उनकी अलग पहचान बन चुकी है।
छात्रा के घर पहुंचीं : बात 2013 की है। 12वीं कक्षा की एक होनहार छात्रा की कहानी सुनकर विजया विचलित हो गईं। छात्रा ने बताया कि दोस्ती और प्रेम कहानी में बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि परिजन उसे घर में चलती-फिरती लाश समझकर छोड़ चुके हैं। हर समय शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे हैं। वह न जी पा रही है, न मर पा रही है। तब शिक्षिका को लगा कि इस बेटी को बचाकर उसका भविष्य संवारना जरूरी है, इसलिए वह छात्रा के घर पहुंचीं। परिजनों को समझाया। उनसे कहा कि मुझे दो बेटे हैं, आपकी बेटी मुझे दे दीजिए, लेकिन परिजन तैयार नहीं हुए। इस बीच उसका स्कूल और बाहर जाना बंद कर दिया गया।
कविता से शुरुआत की : अचानक एक मजदूर किस्म के लड़के से उसका विवाह कर दिया गया। सालभर में ही उस छात्रा ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इस छात्रा के साथ हुई घटना को लेकर शिक्षिका काफी दु:खी हुई। उस दिन इस शिक्षिका ने सोचा कि ऐसी बेटियों को बचाना जरूरी है। उन्होंने इसकी शुरुआत एक कविता से की। मोबाइल के एसएमएस से लेकर छात्रा की मृत्यु होने तक कहानी को कविताबद्ध किया। शिक्षिका की एक सहेली ने इस कविता को पढ़ने के बाद शीर्षक दिया ‘पोरी जरा जपुन’ हिंदी में इसका अर्थ हुआ बेटी जरा संभलकर। इसके बाद शिक्षिका ने बेटियों को ऐसे विषयों के प्रति सतर्क रखने के लिए जागरूकता अभियान चला रखा है।
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बेटियों को दे रहीं ऊर्जा : विजया ने मोबाइल का उपयोग करते समय बेटियों को सतर्क रहने के लिए कॉलेजों मे जाकर व्याख्यान देना शुरू किया है। राज्यभर के प्रमुख शहरों के 383 कॉलेजों में उनका व्याख्यान हो चुका है। उन्होंने व्याख्यान के दौरान 3 प्रमुख विषयों को प्राथमिकता दी है। इसमें मोबाइल जरा संभलकर, अश्लीलता पर लगाम और नव वधुओं को संदेश शामिल है। मोबाइल पर आने वाले मैसेज को कितना महत्व देना चाहिए या नहीं, इस पर उदाहरणों के साथ समझाया जाता है। तंग कपड़े या पाश्चात्य पद्धति के कपड़े पहनने से समाज पर होने वाला परिणाम व उसके कारण होने वाली घटनाओं के बारे में बताया जाता है। शादी के बाद तुरंत होने वाले तलाक की घटनाओं के कारण, परिवार का संतुलन और परिवार को टूटने से बचाने के लिए विविध उपाय योजनाओं पर मार्गदर्शन करती हैं। हर रोज उन्हें इस कार्यक्रम के लिए बुलाया जाता है। वह सिर्फ व्याख्यान देकर लौटती नहीं, बल्कि वहां की लड़कियों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर उनकी समस्या भी सुनती हैं। परिजनों से बातचीत कर उनका समुपदेशन करती हैं। इस तरह लड़कियों का भविष्य संवार रही हैं।
सकारात्मक परिवर्तन : शिक्षिका के मोबाइल में हर रोज लड़कियों के संदेश आते हैं। कुछ पत्र भी आते हैं, जिसमें लड़कियां अपनी आपबीती या समस्याएं बताती है। तक कि आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने की बातें भी होती हैं। विजया उनकी हर समस्याओं का हल बताती हैं। जहां विजया का व्याख्यान होता है, वहां बहुत कुछ बदल जाता है। उन्हें लड़किया बताती हैं कि किस तरह उनका व्याख्यान सुनने के बाद परिवर्तन हुआ है। विजया की मराठी साहित्य में 37 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। देश के पहले ओबीसी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता विजया मारोतकर ने की थी। बहुभाषिक महिला साहित्य सम्मेलन गोवा की अध्यक्षता की है। विजया ने बताया कि हमारी संस्कृति और परंपराओं को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचाने का काम मातृशक्ति करती है। इसलिए मातृशक्ति यानी बेटियों को संस्कारवान होना जरूरी है। आधुनिक हों, तकनीक के साथ चलें, लेकिन कुछ विषयों में सावधान रहने की आवश्यकता है।
Created On :   22 Oct 2023 5:20 PM IST