योग से असाध्य रोग खत्म, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य लाभ

योग से असाध्य रोग खत्म, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य लाभ
  • बरसों से योग का प्रचार-प्रसार
  • नागपुर में चल रही सैकड़ों कक्षाएं

चंद्रकांत चावरे , नागपुर । देश-दुनिया में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की शक्ति को महत्वपूर्ण माना है। योग दिवस मनाने का उद्देश्य मानसिक और शारीरिक कल्याण के लिए एक समग्र अभ्यास के रूप में योग के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है। नागपुर में भी बरसों से योग का प्रचार-प्रसार और सैकड़ों कक्षाओं के माध्यम से तन-मन स्वस्थ रखने विविध स्तर पर निरंतर कार्य जारी है। यहां नागपुर शहर के कुछ योग साधक, योग वर्ग और मंडलों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रखना, अपना धर्म माना है।

मासिक धर्म की बीमारी में लाभ

पिछले 15 साल से युवतियों व महिलाओं की मासिक धर्म की बीमारी योग के माध्यम से दूर की जा रही है। मीना देशमुख ने योगा में एमए समेत अन्य डिग्रियां प्राप्त की हैं। नागपुर में कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय व नासिक के योग विद्यापीठ से शिक्षा दीक्षा ली है। उन्होंने योग शिक्षक का कोर्स पूरा किया है। उन्होंने योग से मासिक धर्म की समस्या व इस समस्या के कारण होने वाली विविध परेशानियोें से छ़ुटकारा देने का निर्णय लिया और मधुसूदन योग कक्षा शुरू की। इस कक्षा में आने वाली युवतियां व महिलाएं कामकाजी थीं। अधिकतर में मासिकधर्म की अनियमितता, नियमित रक्तस्राव न होना, नियमित अवधि से अधिक समय होना आदि समस्याएं थीं। वहीं युवाओं में सीओपीडी नामक समस्या थी। योग कक्षा में आने के बाद महीना भर में ही उनके शरीर में बदलाव होने लगा। जीवनशैली बदलने लगी। समय पर जागना, समय पर भूख लगना, बैठक के कारण होनेवाली समस्या खत्म होने लगी, मासिक धर्म नियमित होने लगा। पहले कक्षा में मात्र 5 या 10 युवतियां व महिलाएं आती थीं। अब यह संख्या 60 पर पहुंची है। इस याेग कक्षा से अब तक 1000 से अधिक महिलाओं को लाभ हुआ है।

72 साल से योग से लोग हो रहे स्वस्थ

सिंधुदुर्ग जिले के कवठे गांव में जन्मे योगमूर्ति जनार्दन स्वामी की कर्मभूमि नागपुर है। उन्होंने 1951 में जनार्दन स्वामी योगभ्यासी मंडल की स्थापना की। नागपुर समेत देशभर में 150 से अधिक शाखाएं हैं। अकेले नागपुर में ही 100 से अधिक नियमित कक्षाएं शुरू हैं। 72 सालों में यहां 500 से अधिक योग प्रशिक्षक और 2 लाख से अधिक योगसाधक यहां तैयार हुए हैं। नागपुर विश्वविद्यालय से योग पर आधारित मान्य पाठ्यक्रम यहां पढ़ाए जाते हैं। सिंधुदुर्ग जिले के कवठे गांव में 18 नवंबर 1892 को स्वामी जी का जन्म हुआ। उनका पूरा नाम जनार्दन वामन गोडसे है। वे अविवाहित थे। प्राथमिक शिक्षा के बाद आसपास के गांवों की वेद पाठशालाओं संस्कृत व वेदों व संबंधित पाठ्यक्रमों की स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेकर वेदसंपन्न हुए। परिवार की सम्मति के बाद उन्होंने काशी में विधिवत संन्यास लिया। वे जहां जाते, वहां योग की शिक्षा देते थे। 1950 में अमरावती में एक योग सम्मेलन के दौरान योगाभ्यासी मंडल की स्थापना हुई। 1951 में दूसरे सम्मेलन के बाद नागपुर को कर्मभूमि बनायी। 1967 से योगप्रकाश मराठी मासिक पत्रिका की शुरुआत की। 1968 में जनार्दन स्वामी योगाभ्यासी मंडल स्वयं के वास्तु में शुरू हुआ। 1972 में योग संशोधन केंद्र शुरू किया गया। स्वामी जी ने योग पर आधारित अनेक पुस्तकें लिखी। 25 मई 1978 को अनंत में विलीन हुए। उनके जाने के बाद भी यह कार्य निरंतर जारी है। गुरुदक्षिणा के रूप में पांच लोगों को योग पढ़ाने का संकल्प लेना पड़ता है। इस मंडल की व्यवस्थापन समिति में अध्यक्ष के रूप में राम खांडवे गुरुजी कार्यभार संभाल रहे हैं।

योग के साथ व्यायाम व नृत्य का संगम

प्राचीन योग को अब नया स्वरूप दिया जा रहा है। योग के साथ व्यायाम व नृत्य को जोड़कर योग का आनंद दोगुना किया जा रहा है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर आयु वर्ग के लोग आसानी से स्वास्थ्य लाभ के लिए योग के साथ जुड़ रहे हैं। शहर के गांधीबाग उद्यान में हर सुबह 6.30 बजे से लोटस् योग नृत्य परिवार की कक्षा चलाई जाती है। इस कक्षा में योग, व्यायाम व संगीत पर नृत्य होता है। नृत्य की पद्धति व्यायाम पर आधारित होती है। सूर्यनमस्कार, आेंकार, प्राणायाम, विविध व्यायाम को मिलाकर तैयार की गई नये प्रयोग को योग-नृत्य कहा जाता है। 2019 से यह कक्षा नियमित रूप से नि:शुल्क चलायी जा रही है। इस कक्षा में हर रोज करीब 200 से अधिक लोग आते हैं। इसका संचालन प्रशिक्षक रमेश गुप्ता और उनकी टीम द्वारा किया जाता है।

5000 से अधिक शिविरों से योग का प्रचार

नागपुर में योग महर्षि के रूप में प्रसिद्ध डॉ. विठ्ठलराव जिभकाटे आयु के 94 साल पूरे करने के बाद भी निरंतर योग प्रचार प्रसार कर रहे हैं। उन्हें योग का चलता-फिरता विद्यालय कहा जाता है। भंडारा जिल्हे के चिचाल गांव में जन्मे विठ्ठलराव ने 22 साल की आयु में दसवीं की परीक्षा पास की थी। उन्होंने नागपुर को अपनी कर्मभूमि बनायी। बीए, एमए और पीएचडी तक शिक्षा प्राप्त की। नौकरी के साथ परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए 28 साल तक जनार्दन स्वामी के साथ रहकर योग शिक्षा प्राप्त की। राज्य सरकार ने उनके कार्य को देखते हुए एक नियुक्ति पत्र दिया था। इसमें कार्यालयों, स्कूलों, उद्यानों समेत सभी सार्वजनिक व निजी संस्थानों में जाकर योग के प्रति जागरुकता व शिक्षा देने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने पूरे देश भर व विदेशों में भी आयोजित होने वाले विविध अवसरों पर योग के प्रति जागरुकता व प्रात्याक्षिक और योग से होनेवाले लाभ आदि विषयों पर प्रचार प्रसार किया। उन्होंने योग संबंधी 35 किताबों को लेखन व 5000 से अधिक शिविरों का आयोजन किया। योगासनों के अलावा उन्होंने व्यक्तित्व व आचरण की शुद्धता के लिए समाधानासन, प्रामाणिकासन, वचनबद्धतासन, सौजन्यासन, विवेकासन आदि का पाठ पढ़ाया। सरकार ने उन्हें शिवछत्रपति क्रीड़ा पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें अनेक संस्थानों द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनके द्वारा प्रशिक्षित योग शिक्षकों द्वारा नागपुर समेत देशभर कक्षाएं चलाकर स्वस्थ समाज निर्माण में योगदान किया जा रहा है।





Created On :   21 Jun 2023 2:53 PM IST

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