इम्प्लांट आपूर्ति में डॉक्टर व डीलर के बीच शीतयुद्ध

इम्प्लांट आपूर्ति में डॉक्टर व डीलर के बीच शीतयुद्ध
आर्थोपेडिक विभाग प्रमुख पर मनमानी व कमीशन लेने का आरोप

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के आर्थोपेडिक विभाग व इम्प्लांट आपूर्ति करने वाले डीलर के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। एक ओर डीलर द्वारा इम्प्लांट टेंडर प्रक्रिया से लेकर आपूर्ति तक के कार्य में आर्थोपेडिक विभाग प्रमुख पर मनमानी व कमिशनखोरी का आरोप लगाया गया है, दूसरी ओर विभाग प्रमुख द्वारा डीलर को दोषी बताया गया है। महात्मा फुले जनस्वास्थ्य योजना के प्रमुख डॉक्टर द्वारा भी डीलर द्वारा लगाए गए आरोप को सिरे से खारिज कर दिया गया है।

125 तरह के इम्प्लांट की जरूरत : आर्थोपेडिक विभाग में मरीजों के विविध ऑपरेशन के दौरान इम्प्लांट की आवश्यकता होती है। 90 से 95 फीसदी मरीजों को महात्मा फुले जनस्वास्थ्य योजना के तहत इम्प्लांट किए जाते हैं। विभाग द्वारा इम्प्लांट की जरूरत अनुसार सारी जानकारी योजना के अधिकारियों को दी जाती है। इसके बाद इम्प्लांट की टेंडर प्रक्रिया की जाती है। इस समय 8 डीलरों को करीब 125 तरह के इम्प्लांट की आपूर्ति का काम दिया गया है। 4 तरह के डीलर होते हैं। इनमें एल-1, एल-2, एल-3 एवं एल-4 होते हैं। यदि एल-1 इम्प्लांट आपूर्ति नहीं कर पाया, तो बाद वाले से इम्लांट लेना पड़ता है।

साल में 3 बार टेंडर : डीलर संजय मेडिकल के संचालक मनीष गुप्ता ने बताया कि टेंडर प्रक्रिया साल में एक बार की जानी चाहिए, जबकि यहां सालभर में 3 बार टेंडर प्रक्रिया की जाती है। योजना के लाभार्थी मरीजों के लिए ही टेंडर में शामिल डीलर से इम्प्लांट लिए जाते हैं, जबकि पेइंग पेशंेट के लिए जो डीलर टेंडर में शामिल नहीं होते, उनसे इम्प्लांट मंगाए जाते हैं। ऐसा कमिशनखोरी के लिए किया जाता है। यह सारा खेल आर्थोपेडिक विभाग प्रमुख के कहने पर हो रहा है। पेइंग पेशेंट को टेंडर दर पर इम्प्लांट देने के बजाय एमआरपी दर वसूला जाता है। डीलर को टेंडर का दाम देकर बाकी राशि आपस में बांट ली जाती है। यदि एल-1 के पास इम्प्लांट न हो, कोई खराबी हो, तो एल-2, 3 या 4 से लेना चाहिए, लेकिन विभाग प्रमुख इस नियम का उल्लंघन कर अपने परिचित डीलर से इम्प्लांट मंगाते हैं।

...तो शामिल कैसे हुआ डीलर : डॉ. मनीष कावडे, डॉ. सुमेध चौधरी और डीलर मनीष गुप्ता के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। सभी अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं। इन सबके बीच टेंडर प्रक्रिया करने वाले अधिकारियों पर सवाल उठने लगे हैं। जब किसी डीलर को इम्प्लांट की तकनीकी जानकारी नहीं है, तो उसे टेंडर प्रक्रिया में शामिल कर इम्प्लांट आपूर्ति का काम कैसे दिया गया। टेंडर प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाता है, तब महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना के अधिकारी, आर्थोपेडिक विभाग के डॉक्टर व डीलर उपस्थित रहते हैं। उनके सामने इम्प्लांट का प्रात्याक्षिक लिया जाता है। उसी समय डीलर को ना क्यों नहीं कहा गया, यह सवाल उठने लगे हैं।

लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं : डीलर द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। टेंडर प्रक्रिया महात्मा फुले जनस्वास्थ्य योजना के माध्यम से की जाती है। उनका काम केवल जरूरत के इम्प्लांट की जानकारी देना होता है। इम्प्लांट में जो भी समस्या आती है, उसकी जानकारी योजना कार्यालय के अधिकारी को दी जाती है। संबंधित डीलर व उसके सहायक कर्मचारी को इम्प्लांट की तकनीकी जानकारी नहीं है। उन्हें टेंडर प्रक्रिया से 14 तरह के इम्प्लांट आपूर्ति का काम दिया गया है। 13 तरह के इम्प्लांट में किसी तरह की कोई समस्या नहीं आ रही है, जबकि एक ही इम्प्लांट में बार-बार समस्या आ रही है। कुछ समय पहले एक 60 साल की महिला मरीज का इम्प्लांट फिटिंग बराबर नहीं होने से दिक्कत आ गई थी, इसलिए दूसरी बार ऑपरेशन कर दोबारा दूसरा इम्प्लांट लगाना पड़ा था। विविध इम्प्लांट में 125 आइटम्स होते हैं। एक ही टेंडर में सभी आइटम्स आपूर्ति करने वाले नहीं आते, इसलिए दो-तीन बार टेंडर प्रक्रिया करनी पड़ती है। -डॉ. सुमेध चौधरी, आर्थोपेडिक विभाग प्रमुख, मेडिकल

Created On :   25 Jun 2023 12:12 PM IST

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