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24 साल बाद तेंदुए की हत्या के आरोप से मिला छुटकारा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। तेंदुए को मारने के आरोप में 6 आरोपियों को करीब 24 साल तक अदालत में मुकदमे का सामना करना पड़ा है। निचली अदालत ने इन 6 आरोपियों को पुणे जिला के अंतर्गत आनेवाले वेल्हा तालुका में तेदुए को मारने के आरोप में साल 2003 को बरी कर दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के. आर.श्रीराम के सामने सरकार की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि वेल्हे तहसील मे 20 अगस्त 1996 में एक तेदुए की हत्या का मामला सामने आया था। इसके बाद वन अधिकारी ने छानबीन के बाद भागू मरगाले, गनपत भिनकुले, चंद्रकांत भिनकुले, तुकराम भिनकुले व सोपन थोपटे के खिलाफ पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था। जांच के दौरान पुलिस ने तेदुए की खाल भी एक आरोपी के घर से बरामद की थी। इसके साथ ही जिस जगह तेंदुए को दफनाया गया था वहां से उसके शव को निकालकर प्राणियों के डाक्टर से उसका पोस्टमार्टम भी कराया गया था।
सारी जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद 6 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में आरोपपत्र दायर किया गया और आरोपियों के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण कानून की धारा 48, 43 व 50 के प्रावधानों के तहत आरोप तय किए गए थे। आरोपियों ने खुद पर लगे आरोपों का खंडन किया। सबूत के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया गया। जिसके खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपियों के इकबालिया बयान कब व किस जगह दर्ज किए गए उसका उल्लेख तक नहीं है। तेंदुए का पोस्टमार्टम करनेवाले डाक्टर को गवाही तक के लिए नहीं बुलाया गया था। जिससे पता चल पाता कि जिस प्राणी का उसने पोस्टमार्टम किया था वह कौन सा जानवर था। क्योंकि जब शव को निकाला गया था तो वह काफी नष्ट हो चुका था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तेंदुए की जगह बाघ का विवरण दिया गया। अभियोजन पक्ष आरोपियों पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित करने में विफल रहा है। इसलिए हमे आरोपियों को बरी करने के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती। यह निष्कर्ष निकालते हुए न्यायमूर्ति ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
Created On :   16 Feb 2020 6:29 PM IST