नागपुर जिले के 300 मतदान केंद्रों में रहेगा अंधेरा, जानिए औरंगाबाद पश्चिम का कैसा है माहौल

300 polling stations will remain dark, know how is atmosphere in Aurangabad West
नागपुर जिले के 300 मतदान केंद्रों में रहेगा अंधेरा, जानिए औरंगाबाद पश्चिम का कैसा है माहौल
नागपुर जिले के 300 मतदान केंद्रों में रहेगा अंधेरा, जानिए औरंगाबाद पश्चिम का कैसा है माहौल

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  जिला परिषद के 300 से अधिक स्कूलों पर बिजली बिल बकाया रहने से कनेक्शन काट दिए गए हैं। 21 अक्टूबर को होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए इन स्कूलों में मतदान केंद्र रहेंगे। बिजली आपूर्ति खंडित रहने से मतदान के समय दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। जिले के ग्रामीण क्षेत्र में मतदान केंद्र के लिए जिला परिषद स्कूलों को प्राथमिकता दी जाती है। जिला परिषद के 300 से अधिक स्कूलों में लंबे समय से अंधेरा छाया हुआ है। बिजली बिल बकाया रहने से िवद्युत वितरण विभाग ने कनेक्शन काट दिए हैं। मतदान के एक दिन पहले मतदान अधिकारियों को मतदान केंद्र पर पहुंचाया जाता है। उन्हें मतदान केंद्र पर ही रहना अनिवार्य है। मतदान केंद्र पर बिना बिजली के उनको असुविधा होगी। मतदान कर्मचारियों में महिलाओं का समावेश रहने पर उनकी सुरक्षा का सवाल बना हुआ है। प्रत्यक्ष मतदान कक्ष में अंधेरा रहने पर मतदान करने में भी दिक्कत हो सकती है। मतदान प्रक्रिया शाम 6 बजे तक चलेगी। इसके बाद ईवीएम मशीनों को सील लगाने व मतदान के आंकड़ों का मिलान करने की प्रक्रिया में डेढ़ से दो घंटे समय लगता है। बिजली नहीं रहने पर अंधेरे में इस प्रक्रिया को पूरा करने की नौबत है। निर्वाचन प्रक्रिया की दृष्टि से असुरक्षित है। जिप स्कूलों के पास आय के स्रोत नहीं है। स्कूल के नियमित खर्च चलाने के िलए जो निधि मिलती है, उसी से बिजली बिल का भुगतान किया जाता है। अनुदान कम पड़ने से बिजली बिल बकाया बढ़ गया है। बिल का भुगतान नहीं करने से कनेक्शन काट दिए गए हैं। बकाया बिल भरने में स्कूल असमर्थ हैं। चिंतामण वंजारी, शिक्षणाधिकारी के मुताबिक बिल बकाया रहने से कुछ स्कूलों में बिजली खंडित है। ऐसे स्कूलों में मतदान के समय ग्राम पंचायत या पड़ोस के मकान से बिजली आपूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। संबंधित स्कूलों के मुख्याध्यापकों को व्यवस्था करने के निर्देश दिए जाएंगे।

 

कांग्रेस मैदान से बाहर, औरंगाबाद पश्चिम का माहौल गरम

उधर औरंगाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में इस समय चुनावी माहौल गर्माया हुआ है। यहां से कौन जीतेगा और कितने वोटों से, इसके बारे में कयास लगाना लगभग असंभव है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस के मैदान से हटने का फायदा मिलेगा तो किसे मिलेगा?

माहौल गरमाने की ये है वजह 

1)    शिवसेना के वर्तमान विधायक संजय शिरसाट लाख अंदरुनी अड़ंगों के बावजूद पार्टी से टिकट लेने में कामयाब रहे और अब चुनावी मैदान में हैट्रिक जमाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। 

2)    कांग्रेस के खाते में सीट होने के बावजूद उनकी चुनौती नहीं है। कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार रमेश गायकवाड़ का नामांकन रद्द होने के बाद कांग्रेस काे निर्दलीय उम्मीदवार विनोद माली को समर्थन देने पर मजबूर होना पड़ा है। 
3)    शिवसेना से गठबंधन होने के बावजूद युति धर्म को धता बताते हुए भाजपा के पार्षद राजू शिंदे मैदान में जाेर-शोर से ताल ठोंक रहे हैं। चर्चाएं जोरों पर हैं कि उन्हें मदद करने वाले भी युति धर्म को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। 
4)    एमआईएम उम्मीदवार अरुण बोर्डे का मैदान में उतरना जिन्होंने दलित समाज के समर्थन से मुकाबले को बेहद रोमांचक मोड़ पर लाने के साथ ही कांटे की टक्कर में तब्दील कर दिया है। इसके बाद वंचित बहुजन आघाड़ी से संदीप शिरसाट की चुनौती को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता।

औरंगाबाद पश्चिम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में 12 उम्मीदवारों की किस्मत मतदाताआंे के हाथ में है। 2014 के चुनाव में यहां से एमआईएम के समर्थन से गंगाधर गाड़े ने 35 हजार 348 वोट हासिल किए थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा उम्मीदवार मधुकर सावंत ने 54 हजार 355 वोट लेकर पूर्व विधायक संजय शिरसाट को कड़ी चुनौती दी थी। शिरसाट 61 हजार 282 वोट हासिल कर एक बार फिर से जीत की इबारत लिखने में कामयाब रहे थे। लेकिन, तब से अब तक माहौल खासा बदल गया है। 

शिवसेना के दबदबे में एमआईएम की सेंध

2014 में शिवसेना का जो दबदबा था, उसमें सेंध लगाते हुए एमआईएम ने औरंगाबाद से लोकसभा की सीट हथिया ली है। अब पार्टी के लोकसभा में दो सांसद हैं, जिनमें एक औरंगाबाद से है तो यह एमआईएम के लिए बड़ी उपलब्धि है और वह इसे औरंगाबाद पश्चिम में भी हासिल करने के लिए बेकरार है। मौजूदा शिवसेना और भाजपा के वोट बंटवारे के बीच एमआईएम अपनी कामयाबी की राह देख रही है, लेकिन यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि इस सीट पर चुनावी लड़ाई का स्वरूप नहीं बदला है। 

}वोटों के बंटवारे पर नजर

मुख्य लड़ाई 2014 में भी शिवसेना और भाजपा में थी, इस बार भी हो जाएगी तो क्या फर्क पड़ता है। लेकिन, फर्क इस बात का है कि कांग्रेस मैदान हार चुकी है। गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जितेंद्र देहाड़े को 14,700 वाेट मिले थे। अब अधिकृत उम्मीदवार रमेश गायकवाड़ के मुकाबले से बाहर हो जाने से उनके वाेटों का बंटवारा किनके बीच होगा, सारे चुनावी समीकरण इस बात पर निर्भर करते हैं। 


 

Created On :   14 Oct 2019 5:34 PM IST

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