पर्यावरण को लेकर सरकारी स्कूल ने जगाई अलख - फल-फूल रहे हैं 5 सौ पेड़-पौधे

5 hundred trees and plants are flourishing in School
पर्यावरण को लेकर सरकारी स्कूल ने जगाई अलख - फल-फूल रहे हैं 5 सौ पेड़-पौधे
मेरा ऑक्सीजन- मेरी जवाबदारी पर्यावरण को लेकर सरकारी स्कूल ने जगाई अलख - फल-फूल रहे हैं 5 सौ पेड़-पौधे

डिजिटल डेस्क, औरंगाबाद। सूबे के एक स्कूल में पर्यावरण को लेकर अलख जगाई गई, जहां पौधारोपण के बाद आज 5 सौ के करीब पेड़-पौधे फलने-फूलने लगे हैं। कहते है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। कुछ छोटे-छोटे प्रयास ही बड़े बदलाव ला सकते हैं। स्कूल परिसर को हरा-भरा बनाने और विद्यार्थियों में पर्यावरण के प्रति लगाव जगाने की सोच को लेकर कुछ वर्षों पहले जि.प. की डिजिटल प्राथमिक शाला बाबूवाड़ी के प्रधानाचार्य सुधीर तुपे द्वारा पौधे लगाने की पहल रंग लाई है। जो परिसर में छाया दे रहे हैं, वातावरण को शुद्ध बना रहे हैं। बच्चों ने पढ़ाई संग मेरी ऑक्सीजन- मेरी जवाबदारी को भी समझा और अमल में लाया

जिले के टॉप 5 सरकारी स्कूलों में शामिल

प्रधानाचार्य तुपे ने दैनिक भास्कर को बताया कि विद्यार्थी जैसे ही स्कूल में पहली कक्षा में आते हैं, उन्हें एक पौधा देकर उसका संवर्धन-संरक्षण करने के लिए कहा जाता है। लगातार पांच वर्ष उनके पहले के पेड़ों की स्थिति देखकर उन्हें पेड़ दिए जाते हैं। इस तरह अब तक 2013 से सैंकड़ों पेड़ फलने-फूलने लगे हैं। गांव के युवाओं और ग्रामीणों से भी पूरा सहयोग मिल रहा। बच्चों का यह काम सभी के लिए मिसाल बन गया है। स्कूल ही नहीं, गांव में हरियाली है। यही नहीं, स्कूल गुणवत्ता में भी जिले के टॉप 5 सरकारी स्कूलों में शामिल है।

प्रधानाचार्य तुपे बताते हैं कि जिला परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालय में केवल 50 छात्र और दो शिक्षक हैं। यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर एक छोटी पहाड़ी पर मौजूद है। वह 2010 में स्कूल में आए और स्कूल बच्चों को उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों से अवगत कराने के लिए पौधे लगाने की पहल की, ताकि स्कूल के आसपास का पर्यावरण सुधर सके। 2013 से अभियान को गति मिली और हर नए बच्चे को हर साल एक पेड़ देकर उसकी देखभाल करने के लिए प्रेरित किया गया। आलम यह है कि बच्चों के लगाए लगभग सभी पेड़ खुलकर लहलहा रहे हैं, जो कि उन्हें अच्छी तरह से पढ़ाई करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

तुपे बताते हैं कि होमवर्क पूरा करने के लिए प्रेरित करने के लिए बच्चों को बैज देने की शुरुआत की गई। वे स्कूल में इसे पहनते हैं औैर खुश की होते हैं कि यह उनके अच्छे काम का प्रतीक है। हर दिन के होमवर्क की जांच करने के लिए छात्रों की एक समिति बनाई गई है। विद्यालय हर दिन सुबह साढ़े नौ बजे शुरू होता है, लेकिन बच्चे परिसर को साफ करने में शिक्षकों की मदद करने के लिए आधा घंटा पहले ही आ जाते हैं। इसी के साथ पिछले चार से पांच साल से नो बैग डे मनाया जा रहा है। तुपे ने कहा कि, नो-बैग वाले दिनों पर हम बागवानी, योग और अन्य मनोरंजक गतिविधियां करते हैं। इसने हाजिरी में सुधार लाने में मदद की है और बच्चों को विद्यालय आना पसंद आने लगा है

15 छात्रों को मिली स्कॉलरशिप

तुपे ने बताया कि छात्रों अपनी बोतलों से घर जाते हुए पेड़ों को पानी देते हैं। उन्होंने बताया कि विद्यालय के तीन छात्रों को नवोदय विद्यालय में दाखिला मिला है, जबकि 2017 के बाद से 15 छात्रों को स्कॉलरशिप मिली है। जिला परिषद शिक्षा अधिकारी जयश्री चह्वाण ने कहा कि स्कूल की पहल विशिष्ट हैं और इनमें से कुछ को जिले के अन्य स्कूलों ने भी अपनाया है

रस्सियों पर बक्सों में रखीं किताबें, पुस्तकालय तैयार

प्रधानाचार्य तुपे बताते हैं कि हमारा स्कूल दो कक्षाओं वाला एक छोटा स्कूल है और कक्षा 1 से 5 तक के स्कूल में एक बरामदा है। ऐसा लगता था कि स्कूल में पुस्तकालय होने का विचार आया। 5वीं के छात्रों ने सोचा कि यदि बरामदे में जाली पर कोई पुस्तक है तो निश्चित रूप से बच्चे उसे आसानी से संभाल और पढ़ सकते हैं। इस पर विभिन्न बर्तनों को वटवा के रूप में रखा गया और फिर जाल पर रस्सियां डाली गईं और उन रस्सियों पर बक्सों में किताबें रखते ही बच्चों का पुस्तकालय तैयार था। प्रत्येक बच्चा इस पुस्तकालय का उपयोग अपनी पसंद की पुस्तक लेने और बिना किसी की अनुमति या किसी के प्रतिबंध के इसे पढ़ने के लिए कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका ज्ञान बढ़ेगा और छात्रों को 100 प्रतिशत पढ़ने का उद्देश्य प्राप्त होगा।

Created On :   7 Nov 2022 9:36 AM GMT

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