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क्राई का दावा : महाराष्ट्र के कृषि क्षेत्र में काम कर रहे 60 फीसदी बाल मजदूर

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य के कुल बाल मजदूरों में से 60 फीसदी कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के हालिया आंकड़े बताते हैं कि बाल मजदूरी के मामले में पूरे देश की यही स्थिति है। देशभर में करीब 4 करोड़ 34 लाख से ज्यादा बच्चे मजदूरी के लिए अभिशप्त हैं इनमें से 62 फीसदी लड़के जबकि 38 फीसदी लड़कियां हैं। चाइल्ड राइट एंड यू (क्राई) संस्था के मुताबिक बाल मजदूरी का सबसे बुरा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है और वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। क्राई के मुताबिक राज्य के कुल बालमजदूरों में से 60.67 फीसदी कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। राज्य के कई इलाकों में अक्सर सूखे की स्थिति रहती है। खासकर मराठवाडा इलाके से बड़ी संख्या में लोगों के पलायन से बच्चों के लिए स्थिति और बिकट हो जाती है। ऐसी हालत में बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता है, अक्सर बाल विवाह कर दिए जाते हैं और बच्चों को खुद परिवार चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है।
राज्य में सूखे के चलते भी बच्चों को छोड़ना पड़ता है स्कूल
लातूर और परभणी जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में अक्सर परिवार मजदूरी के लिए बाहर चले जाते हैं। गन्ना कटाई के समय भी परिवार के साथ बच्चों को दूसरी जगहों पर जाना पड़ता है। ज्यादातर गांवों में शिक्षा के लिए सिर्फ प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध होते हैं ऐसे में बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। क्राई की सहयोगी और परभणी में काम कर रही संकल्प मानव विकास संस्था द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक गन्ना कटाई के मौसम में पाथ्री, मानवत और सेलू तालुका से 6764 परिवार मजदूरी के लिए बाहर जाते हैं। कई बार बच्चे कीटनाशकों का छिड़काव समेत खेती से जुड़े ऐसे काम करते हैं जो उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालते हैं।
फेल हो गई हास्टल योजना
क्राई से जुड़ी प्रीति माहरा के मुताबिक कृषि क्षेत्र में लंबे समय तक खड़े होकर और झुककर काम करने के चलते बच्चों के शारीरिक विकास में बाधा पहुंचती है। क्राई के जनरल मैनेजर (डेवलपमेंट सपोर्ट) कुमार नीलेंदू के मुताबिक राज्य में हंगामी वसतीगृह (हास्टल) योजना बड़ी संख्या में बच्चों को फिर से स्कूल की ओर खींचने में सफल रही थी क्योंकि परिवार जब मजदूरी के लिए जाता था तो बच्चे इन हॉस्टलों में रहते थे। लेकिन हाल के दिनों में सरकार ने नियमों में कुछ ऐसे बदलाव किए जिससे हालात फिर पहले की ही तरह हो गए। नीलेंदू के मुताबिक पहले बच्चों की जिम्मेदारी शिक्षकों और मुख्यध्यापक की होती थी लेकिन अब फिर बच्चों को उनके परिवारों को ही उन्हें रखने की जिम्मेदारी दे दी गई है। इसके चलते ज्यादातर बच्चे फिर परिवार के साथ मजदूरी के लिए जाने लगे हैं। नीलेंदू के मुताबिक अगर हंगामी वसतीगृहों की जिम्मेदारी से शिक्षा विभाग के साथ पंचायतों और विलेज चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी को भी जोड़ा जाए तो बच्चों को फिर से स्कूल तक लाया जा सकता है। सरकार को हंगामी वसतीगृहों को बढ़ाने और उनके रखरखाव पर जोर देना चाहिए।
Created On :   14 Jun 2019 8:28 PM IST