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लगी 700 करोड़ की चपत, प्रिसिंपल अकाउंटेंट जनरल ऑडिट करेंगे जांच - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य के 6 विश्वविद्यालयों के शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के पद नाम में बदलाव के साथ वेतनमान (पे स्केल) बदलने के चलते सरकार को कथित तौर पर सात सौ करोड़ रुपए की लगी चपत के मामले की जांच राज्य के प्रिसिंपल अकाउंटेंट जनरल (ऑडिट) को करने को कहा है। जबकि शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को अपना पक्ष रखने की इजाजत दी है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद अकाउंटेंट जनरल को 15 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौपने का निर्देश दिया है।
मामला संत गाडगेबाबा विश्वविद्यालय (अमरावती), गढचिरोली के गोंडवाना विश्वविद्यालय, जलगांव के उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, डाक्टर बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, सवित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय पुणे व शिवाजी विश्वविद्यालय (कोल्हापुर) के शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के बदले पे स्केल से जुड़ा है। सरकार ने दावा किया है कि वित्त विभाग की जरुरी मंजूरी के बिना शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के पे स्केल में बदलवा किया गया है, जिसके चलते सरकारी खजाने को सात सौ करोड़ रुपए की चपत लगी है।
राज्य के उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग ने वेतनमान में हुई इस गड़बड़ी की जांच के लिए 17 दिसंबर 2018 को एक शासनादेश जारी किया था। जिसमें बदले वेतनमान के चलते जिन कमर्चारियों को अतिरिक्त रकम का भुगतान किया गया है उनकी पहचान करने तथा पूरे प्रकरण की जांच का प्रावधान किया गया था। उच्च व तकनीकि शिक्षा विभाग की ओर से जारी किए गए इस शासनादेश के खिलाफ शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के संगठन व अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि वेतनमान में बदलाव से जुड़ी सारी प्रक्रिया नियमों के तहत की गई है। राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी ने इस मामले को देखा था।
शुक्रवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने पूरे मामले से जुड़ी गड़बडी की नए सिरे से जांच के लिए प्रिंसिपल अकाउंटेट जनरल (आडिट) की नियुक्ति के बारे में खंडपीठ को जानकारी दी। इस प्रक्रिया से कुल तीन अधिकारी जुड़े होगे। इसमें से एक अधिकारी पूरे मामले की निगरानी रखेंगे। यह जानकारी मिलने के बाद खंडपीठ ने संबंधित विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को इस विषय पर अकाउंटेंट जनरल के सामने होनेवाली सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखने को कहा।
दरअसल सरकार ने साल 2009 में छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से पहले स्टाफिंग पैटर्न में बदलाव की शुरुआत की थी। इसके तहत उपरोक्त 6 विश्वविद्यालय की ओर से गैर शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के पद के नाम पर बदलाव को लेकर उच्च शिक्षा विभाग के एक कक्ष अधिकारी के पास प्रस्ताव भेजा था। जिसमें दावा किया गया था कि पद के नाम पर बदलाव से वेतन मान में कोई परिर्वतन नहीं होगा लिहाजा इसके लिए वित्तीय विभाग से मंजूरी की जरुरत नहीं है।
Created On :   7 Feb 2020 7:13 PM IST