आर्गेनिक कलर से बनाई जाती है बाघ प्रिंट वाली साड़ी , स्किन के लिए होती है फायदेमंद

A saree of bagh print made with organic color
आर्गेनिक कलर से बनाई जाती है बाघ प्रिंट वाली साड़ी , स्किन के लिए होती है फायदेमंद
आर्गेनिक कलर से बनाई जाती है बाघ प्रिंट वाली साड़ी , स्किन के लिए होती है फायदेमंद

डिजिटल डेस्क,नागपुर। मध्यप्रदेश के धार जिले की बाघ प्रिंट की साड़ी इंदिरा गांधी की पसंदीदा थी। ऑर्गेनिक कलर से बनी बाघ प्रिंट स्किन के लिए भी फायदेमंद होती है। मेले में एक ही छत के नीचे कलाकार अपनी कला उत्पादों की बिक्री और प्रदर्शन किया जा रहा है।  मेला प्रभारी एम.एल. शर्मा  ने बताया कि, प्रदर्शनी में ग्लासवर्क, चंदेरी की विश्वप्रसिद्ध साड़ियां, सूट, धार जिले की बाघ प्रिंट की सामग्री, बांस फर्नीचर, जरी-जरदौजी वर्क, लेस की जूतियां, जूट के झूले, आदिवासी गुड़िया, आर्टिफिशियल ज्वेलरी आकर्षण का केन्द्र है।  दक्षिण मध्य क्षेत्र सांसकृतिक केन्द्र में आयोजित मृगनयनी मेला इन दिनों आकर्षण का केन्द्र है। श्री शर्मा ने बताया कि, चंदेरी और बाघ प्रिंट के कपड़ों की आर्गेनिक विशेषताएं लोगों के आकर्षण का विषय बन रही हैं। संस्कृति और कला के शानदार नमूनों का प्रदर्शन किया गया है। साथ ही प्रदर्शनी में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कारीगरों द्वारा बनाई वस्तुओं को बिक्री और प्रदर्शन के लिए रखा गया है। लकड़ी के खिलौने भी लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं।

बाघ प्रिंट का इतिहास 

बाघ प्रिंट का नाम मध्यप्रदेश के धार के एक छोटे से कस्बे बाघ पर आधारित है। लगभग 1000 वर्ष पहले विपरीत वातावरण और शासकों की तानाशाही की वजह से बाघ छपाई के बहुत से कारीगर सिंध (अब पाकिस्तान) से विस्थापित होकर यहां आए थे और इसलिए इस कारीगरी पर सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। बाघ की छपाई की प्रक्रिया बहुत पेचीदा और थका देने वाली होती है। पूरी तरह तैयार होने के पहले प्रत्येक कपड़ा 25-30 दिनों तक कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है। इसमें केवल प्राकृतिक सामग्री का उपयाेग होता है।

खारा पद्धति से कपड़े को सनचेरा  (एक प्रकार का समुद्री नमक), अरंडी का तेल और बकरी की मांगी में डुबाकर रखा जाता है और फिर सुखाया जाता है। ऐसा तीन बार किया जाता है। आखिरी बार सुखाने के बाद कपड़े को बहेड़ा पावडर के विलथन साथ डुबा कर रखा जाता है। छपाई का लाल रंग फिटकरी और इमली के बीज से बनाया जाता है, जबकि काले रंग को तैयार करने के लिए लोहे के महीन पावडर के साथ गुड़ को 15-20 दिनों के लिए मिलाकर रखा जाता है। कपड़े पर छपाई के लिए लकड़ी के छापों जैसे कोर, साज, बोद, कलम, बुर्रा इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसे बहते हुए नदी के पानी में धोकर अंत में धावली फूलों और अलीजरीन के पानी में तांबे के बर्तन में उबाला जाता है।

एक साड़ी तैयार करने में लगते है 29 दिन

एक बाघ प्रिंट साड़ी को तैयार करने में 29 दिन लगते हैं। इसे तैयार करने में गोंद, अनार के छिलके, अफीम का डोडा, हरड़-बहेड़ा और बकरी की लेड़ी आदि का प्रयोग किया जाता है। इसे बनाने का 95 प्रतिशत काम गैर मशीनी है। बाघ प्रिंट का नाम बाघरी के किनारे बसे लोगों द्वारा खोजी और संरक्षित इस विशेष कला का नाम बाघ प्रिंट है। इस तरह के कपड़े पर मांडू जलमहल सहित मध्यप्रदेश की गुफाओं पर की गई चित्रकारी की छाप मिलती है। इन्हीं विशेषताओं के चलते यह कपड़ा लोगों में खासा पसंद किया जाता है।

आज भी कला को संजो कर रखा  

1960 में अनेक कलाकारों ने बाघ प्रिंट प्रक्रिया बंद कर दी थी, लेकिन इस्माइल खत्री परिवार ने आज भी इस परंपरा को संजो कर रखा है। 2011 में  दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में मध्यप्रदेश के चित्ररथ में बाघ प्रिंट डिजाइन को प्रदर्शित किया गया था।  साथ ही 2010 में दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम में खिलाड़ियों को बाघ प्रिंट के कपड़े दिए गए। 2003 में यूसुफ खत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है।

Created On :   5 Sep 2019 9:00 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story