रियल स्टेट की परेशानियों के प्रति अपनाएं सहानुभूतिपूर्ण रुख

Adopt a sympathetic approach towards the problems of the real estate sector - HC
रियल स्टेट की परेशानियों के प्रति अपनाएं सहानुभूतिपूर्ण रुख
हाईकोर्ट की सरकार को सलाह रियल स्टेट की परेशानियों के प्रति अपनाएं सहानुभूतिपूर्ण रुख

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार रियल स्टेट क्षेत्र की  पीड़ा व परेशानी को लेकर सहानुभूति पूर्ण रुख अपनाए। न्यायमूर्ति एए सैय्यद व न्यायमूर्ति शिव कुमार दिघे की खंडपीठ ने यह बात रियल स्टेट क्षेत्र के अग्रणिय संगठन कांफिड्रेशन ऑफ रियल स्टेट डेवलपर एसोसिएसन ऑफ इंडिया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।  सुनवाई के दौरान एसोसिएसन की ओर से पैरवी कर  रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विराज तुलझापुरकर ने दावा किया कि 2034 तक का विकास प्रारुप लागू होने के बाद से विकास शुल्क व रियल स्टेट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुल्क में काफी इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण अधिनियम 2005 व महामारी अधिनियम 1897 सरकार को बाध्य करता है कि वह रियल इस्टेट क्षेत्र को संकट से उबारने के लिए उपयुक्त  कदम उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने रियल इस्टेट क्षेत्र को विभिन्न शुल्कों को लेकर रियायतें दी थी, जिसका एसोसिएशन पहले सिंतबर 2019 से नवंबर 2019 के बीच राज्य में चुनाव के चलते, फिर मार्च 2020 से अक्टूबर 2020 के बीच कोरोना के कारण एसोसिएशन सरकार की ओर से दी गई छूट का लाभ नहीं ले पाया। इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के वजह से अप्रैल 2021 से जुलाई 2021 के बीच छूट  का  फायदा नहीं ले सका। इसलिए सरकार को कोरोना के चलते रियल स्टेट क्षेत्र की जो सेहत बिगड़ी है, उसे सुधारने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने के लिए कहा जाए। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सरकार रियल स्टेट क्षेत्र की परेशानी को लेकर सहानूभूति पूर्ण रुख अपनाए और कोविड के चलते अड़चनों का सामाना कर रहे इस क्षेत्र की परेशानी दूर करने के लिए उचित कदम उठाए। याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। मुंबई महानगर क्षेत्र में एसोसिएसन के 14 सौ सदस्य  हैं। 


वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े मामलो की सुनवाई

बुजुर्गों  से जुड़े मामलों की सुनवाई के  लिए बनाए गए न्यायाधिकरण घर के मालिकाना हक के दावे को निर्धारित किए बिना बच्चों को सीधे घर से बाहर नहीं निकाल सकती है।  बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट की है। न्यायमूर्ति उज्जल भूयान व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट  के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल(न्यायाधिकरण) के पास बुजुर्गों के सरंक्षण व रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए बुजुर्गों को प्रताड़ित करनेवाले को घर से  निष्कासित करने का अधिकार है। लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल करते  समय न्यायाधिकरण को निष्कासन से जुड़े विवाद में घर के मालिकाना हक के विषय को  देखना भी जरुरी है। खंडपीठ ने यह बात एक महिला  की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद कही। याचिका में मुख्य  रुप से सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल की ओर से 15 दिसंबर 2020 को दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें ट्रिब्युनल ने महिला को अपने पति के साथ सास का घर  खाली करने का निर्देश दिया  था। सास नेअपनी बहू पर प्रताड़ित करने व बदसलूकी के आरोप को  लेकर ट्रिब्यूनल में शिकायत  की थी। हाईकोर्ट में खंडपीठ के सामने महिला की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में महिला ने दावा किया था कि उसके पति मानसिक बीमारी  से पीड़ित  है।  वे कमाने में सक्षम  नहीं  है। वह  स्वयं खुद व अपनी बेटी का खर्च वहन कर रही  है। इसके अलावा जिस घर में वे रह रही  है। उसे उनकी सास बेचना चाहती  है।  इसलिए वे उनसे घर खाली करना चाहती  है। इस घर में मेरे पति की 20 प्रतिशत  हिस्सेदारी  है। जिस पर न्यायाधिकरण ने अपना आदेश देते समय ध्यान नहीं दिया है।  इसलिए घरेलू हिंसा  कानून के तहत उसके पास साझे के इस घर में रहने  का अधिकार है। खंडपीठ ने याचिका में उल्लेखित इस पहलू पर गौर करने के बाद मामले को लेकर न्यायाधिकरण की  ओर से दिए  आदेश  को खारिज कर दिया। और न्यायाधिकरण को नए सिरे से इस पूरे मामले पर विचार  करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने कहा  कि न्यायाधिकरण  को बहू को  घर खाली करने का आदेश देने से पहले यह तय करना चाहिए था कि जिस फ्लैट को  लेकर विवाद है वह  पुस्तैनी संपत्ति है या फिर इस पर पूरी तरह से सास का मालिकाना हक  है। न्यायाधिकरण को बहू के उस दावे को देखना चाहिए था। जिसमें बहू  ने दावा किया था कि उसके पति की घर में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लेकिन ऐसा  नहीं हुआ  है।  इसलिए न्यायाधिकरण नए सिरे  से  दोबारा इस मामले पर विचार करे। 
 

Created On :   22 Aug 2021 5:56 PM IST

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