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बापू ने देखा था एकता की नींव पर राष्ट्र की इमारत का सपना, धर्म को नहीं मानते थे नागरिकता का आधार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। गांधीजी हर उस व्यक्ति को भारत का नागरिक मानते थे जो यहां पैदा हुआ, पला और विकसित हुआ। गांधी धर्म को नागरिकता का आधार नहीं मानते थे। उनका अटूट विश्वास था कि हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव पर ही भारतीय राष्ट्र की इमारत खड़ी की जा सकती है। ‘हम जो एकता चाहते हैं वह मजबूरी में किया गया समझौता नहीं है। हम दिलों की एकता चाहते हैं। हम ऐसी एकता चाहते हैं जिसका आधार यह स्पष्ट मान्यता हो कि स्वराज, भारत के लिए तब तक एक स्वप्न बना रहेगा जब तक कि हिंदू व मुसलमान अपनी एकता के कभी न टूटने वाले बंधन में नहीं बंध जाते। हम हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संधि नहीं चाहते। हिंदू-मुस्लिम एकता एक-दूसरे के भय पर आधारित नहीं होनी चाहिए। वह बराबरी पर आधारित होनी चाहिए। यह एक-दूसरे के धर्म के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।’
धार्मिक सहिष्णुता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता का मुख्य आधार थी। वे सभी लोगों, चाहे वे किसी भी धर्म, पंथ, जाति या रंग के हों, को सम्मान की दृष्टि से देखने के पैरोकार थे। गांधीजी से एक विदेशी पत्रकार ने पूछा कि यह कैसे है कि एक तरफ आप धार्मिक होने का दावा करते हैं वहीं दूसरी ओर धर्मनिरपेक्ष होने का दावा भी करते हैं। इसका उत्तर देते हुए गांधीजी ने कहा कि ये दोनों बातें पूरी तरह सच हैं। ‘मेरा धर्म सनातन धर्म है। यदि कोई मेरी आस्था पर हमला करता है तो मैं अपनी आस्था की रक्षा करते हुए अपनी जान तक देने को तैयार हूं,परंतु यदि मेरे पड़ोस में कोई ऐसा व्यक्ति रहता है जिसकी आस्था किसी अन्य धर्म में है और यदि उसकी आस्था पर आक्रमण होता है तो मैं उसकी आस्था की रक्षा करते हुए भी अपनी जान देने के लिए तैयार हूं।’ जब देश के विभाजन के दौरान दंगे हो रहे थे तब गांधीजी नोआखली, कलकत्ता और अन्य दंगा प्रभावित स्थानों पर थे। वे आजादी के समारोह में शामिल नहीं हुए। अपनी जान जोखिम में डालकर वे दंगों पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रहे थे।
वे हिंसा में लिप्त लोगों का मन जीतने का प्रयास करते थे। उनके अथक प्रयासों से दंगे शांत हुए। उनके प्रयासों की तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने भूरि-भूरि प्रषंसा की थी। माउंटबेटन ने कहा था कि ‘‘जो पुलिस नहीं कर सकी, जो मैं नहीं कर सका, वह गांधीजी ने कर दिखाया। अद्भुत ताकत है गांधीजी की’’। गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता में धर्मों की एकता तो शामिल थी ही परंतु साथ ही उनके सपनों का भारत छुआछूत विहीन भारत होता। उनका सपना था कि आजाद भारत जाति विहीन होगा।
Created On :   2 Oct 2019 10:46 AM IST