रेरा पर हाईकोर्ट ने लगाई मुहर, बिल्डरों की याचिका खारिज 

Bombay High Court gives support to RERA,  its aim is development
रेरा पर हाईकोर्ट ने लगाई मुहर, बिल्डरों की याचिका खारिज 
रेरा पर हाईकोर्ट ने लगाई मुहर, बिल्डरों की याचिका खारिज 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने रियल इस्टेट क्षेत्र को अनुशासित और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से लाए गए रियल इस्टेट रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (रेरा) की वैधानिकता को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने कहा कि रेरा कानून का उद्देश्य रियल इस्टेट क्षेत्र को विकसित करना है। इसके साथ ही यह कानून देश भर में फ्लैट खरीददारों के हितो को संरक्षण प्रदान करेगा। इस कानून से देश भर में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने के काम में तेजी आएगी। 

भवन निर्माताओं की ओर से दायर याचिका पर फैसला

न्यायमूर्ति नरेश पाटील व न्यायमूर्ति राजेश केतकर की खंडपीठ ने यह फैसला रेरा कानून के विभिन्न प्रावधानों की वैधनाकिता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया। यह याचिका डीबी रियल्टी सहित कई भवन निर्माताओं की ओर से दायर की गई थी। खंडपीठ ने कहा कि रेरा कानून का उद्देश्य बिल्डरों को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि रियल इस्टेट क्षेत्र को विकसित करना है। खंडपीठ ने कहा कि समस्याएं तो बहुत हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपने को सकार करें और हर आंख के आंसू पोंछे।

प्रशासकीय नहीं बल्कि न्यायिक अधिकारी हो नियुक्त

खंडपीठ ने कहा कि रेरा से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए बनाया गया प्राधिकरण और ट्रिब्यूनल प्रोजेक्ट में देरी के हर मामले को स्वतंत्र रुप से देखेगा। यदि इमारत की निर्माण में देरी अनियंत्रित कारणों के चलते होती है तो इसके लिए उसका पंजीयन न रद्द किया जाए और न ही उसे दंडित किया जाए। ऐसी स्थिति में प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए भवन निर्माता को एक साल का समय दिया जाए। खंडपीठ ने कहा कि रेरा के मामले के लिए बनाए गए ट्रिब्यूनल में प्रशासकीय अधिकारी (ब्यूरोक्रेट) नहीं बल्कि न्यायिक अधिकारी की नियुक्त की जाए। ट्रिब्यूनल के ज्यादातर सदस्य न्यायपालिका के होने चाहिए।  

रेरा प्राधिकरण हर मामले में स्वतंत्र रुप से करेगा विचार

रेरा कानून आने के बाद हर बिल्डर को इसके तहत पंजीयन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। यदि प्रोजेक्ट में देरी होती है तो बिल्डर को फ्लैट खरीददार को मुआवजा देना पड़ेगा। खंडपीठ ने मुआवजे के मुद्दे पर किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। लेकिन यह साफ किया है यदि देरी प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों के चलते होती है, तो रेरा प्राधिकरण हर मामले पर स्वतंत्र रुप से विचार करेगा और सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद डेवलपर को एक साल का समय प्रदान करेगा। 

Created On :   6 Dec 2017 1:17 PM GMT

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