कोरोना के इलाज वाली दवा-इजेक्शन को लेकर लोगों को जागरुक करे सरकार

Government should make people aware of drug ejection treatment for corona
कोरोना के इलाज वाली दवा-इजेक्शन को लेकर लोगों को जागरुक करे सरकार
कोरोना के इलाज वाली दवा-इजेक्शन को लेकर लोगों को जागरुक करे सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि कोरोना के इलाज में लगने वाली दवाओं व इंजेक्शन की उपलब्धता तथा उसकी कीमत को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जाए। राज्य सरकार इस बारे में आवश्यक कदम उठाए। इसके साथ ही सरकार व मुंबई महानगरपालिका समन्वय बना कर काम करे और यह सुनिश्चित करें कि दवा की उपलब्धता की जानकारी नागरिकों तक पहुचे। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने उपरोक्त बात आल महाराष्ट्र ह्यूमन राइट एसोसिएशन की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याचिका में मांग की गई है कि कोरोना के इलाज में लगने वाले रेमडिसीवीर इंजेक्शन सहित दूसरी दवाइयां सीधे सरकारी व निजी अस्पताल के अलावा क्वारेंटाईन केंद्रों में उपलब्ध कराई जाए। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रशांत पांडे ने कहा कि कोरोना के इलाज में लगने वाली दवाएं सिर्फ सीमित मेडिकल की दुकानों पर उपलब्ध हैं। इससे कोरोना संक्रमित व्यक्ति के रिश्तेदार को यहां वहां भटकना पड़ता है। कई बार दवाओं की तय कीमत से अधिक पैसे देने पड़ते हैं। इंजेक्शन की कमी के चलते कोरोना मरीजों की जान जा रही है। 

वहीं सरकारी वकील ने याचिकाकर्ता के वकील इस दावे को गलत बताया। उन्होंने कहा कि मुंबई की 97 मेडिकल की दुकानों में दो लाख रेमडिसीवीर इंजेक्शन उपलब्ध है। सरकार इस दिशा में पर्याप्त कदम उठा रही है। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने कहा कि दवाओं की उपलब्धता के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। 

 

हाईकोर्ट का केंद्र से सवाल - न्यूज चैनलों को खुला क्यों छोड़ दिया

इससे पहले सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित की जानेवाली सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कोई वैधानिक निकाय क्यो नही है। अदालत ने पूछा कि उन्हें खुला क्यो छोड़ा गया। हाईकोर्ट ने कहा कि जैसे अखबारों के नियमन को लेकर प्रेस काउंसिल जैसी वैधानिक संस्था बनाई गई है, वैसी वैधानिक व्यवस्था चैनलों के लिए क्यों नहीं बनाई जा रही है। सरकार ने इन्हें खुला क्यों छोड़ रखा है। मीडिया ट्रायल के विषय में सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश जारी किए हैं, पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी को उनकी कोई परवाह ही नहीं है। हाईकोर्ट में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिकाओ पर सुनवाई चल रही है। याचिका में इस मामले की रिपोर्टिंग में मीडिया को सयंम बरतने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि कवरेज को लेकर टीवी चैनलों को खुला क्यों छोड़ा गया है। न्यूज़ ब्रॉडकास्टर के नियमन को लेकर सरकार के पास क्या व्यवस्था है। 

 
इससे पहले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि सरकार ने चैनलों को खुला नहीं छोड़ा है। ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई की गई है। पर सरकार सबकुछ नियंत्रित नहीं कर सकती। प्रेस की अपनी स्वतंत्रता व अधिकार भी हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार का हलफनामा दर्शाता है कि वह शिकायतों को नेशनल ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) व नेशनल ब्रॉडकास्टर फेडरेशन को भेजती है। सुनवाई के दौरान एनबीए की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि मीडिया की रिपोर्ट को लेकर कार्रवाई की जिम्मेदारी केंद्र सरकार के पास है। वह अपनी यह जिम्मेदारी निजी संस्था को नहीं सौप सकती है। केबल टीवी एक्ट से जुड़े प्रावधानों को लागू करना सरकार का दायित्व है। कई चैनलों ने एनबीए की सिफारिशों को मानने से मना किया है। इस पर खंडपीठ ने कहा सरकार चैनलों पर प्रसारित की जानेवाली सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कोई वैधानिक निकाय क्यो नहीं बनाती हैॽ कोर्ट ने 14 अक्टूबर 2020 को इस मामले की अगली सुनवाई रखी है। 

 
 
 

Created On :   13 Oct 2020 10:44 AM GMT

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