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कैग की रिपोर्ट में खुलासा : पुलिस सुरक्षा के अभाव में कोर्ट नहीं पहुंच सके 38% कैदी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। पुलिस सुरक्षा उपलब्ध न होने के चलते हर साल करीब एक तिहाई कैदी अदालतों के सामने पेश नहीं हो पाते। इसके चलते न सिर्फ कैदियों के अधिकारों का हनन हो रहा है बल्कि जेलों में भीड़भाड़ भी बढ़ रही है। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। साल 2013 से 2018 तक 27 से 38 फीसदी तक कैदी ऐसे थे जिन्हें सुरक्षाकर्मियों की कमी के चलते अदालतों में पेश नहीं किया जा सका। आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 में सबसे ज्यादा 38 फीसदी कैदियों को सुरक्षाकर्मियों की कमी के चलते जेल प्रशासन अदालतों के सामने पेश नहीं कर सका। इन कैदियों की कुल संख्या 2 लाख 25 हजार 613 थी। साल 2015 में 2 लाख 38 हजार 523 कैदी यानी 37 फीसदी को सुरक्षाकर्मियों की कमी के चलते अदालतों में पेश नहीं किए जा सके। साल 2017 में हालात में थोड़े सुधारे और 33 फीसदी यानी कुल 1 लाख 72 हजार 72 कैदी ऐसे थे जिन्हें अदालतों के सामने पेश नहीं किया जा सका। साल 2016 के मुकाबले 2017 में अदालतों में पेश न किए जा सके कैदियों की संख्या में 5 फीसदी की गिरावट आई।
सुरक्षाकर्मियों की कमी से हलकान कैदी
साल पेश किए कैदी पेश नहीं किए गए कैदी
2017 444500 171072
2016 427853 225613
2015 400084 238523
2014 379812 235303
2013 371906 186274
गैरसरकारी सदस्यों की नियुक्ति में नाकामी
नियमों के मुताबिक जेलों में बंद कैदियों की शिकायतें सुनने और उसके निपटारे के लिए जेल प्रशासन को सुझाव देने के लिए आगंतुक मंडल और गैरसरकारी सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन कैग ने पाया कि नवंबर 2017 तक 54 जेलों में से सिर्फ 14 में गैरसरकारी सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। मुंबई में 11 की जगह सिर्फ 5 सदस्यों की नियुक्ति हुई। चार मध्यवर्ती जेलों और सुधार केंद्रों में नौ की जगह सिर्फ तीन सदस्यों की नियुक्ति हुई। नागपुर जेल और सुधारगृह में सिर्फ एक सदस्य की नियुक्ति की गई। बाकी 17 जिला जेलों और सुधारगृहों में सिर्फ अकोला और रत्नागिरी में गैरसरकारी सदस्य की नियुक्ति की गई है। दूसरी तरफ आगंतुक मंडल की 80 की जगह सिर्फ 17 बैठकें हुई।
Created On :   9 July 2019 4:34 PM GMT