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अजित पवार बोले - शिंदे-फडणवीस सरकार का पुस्कार रद्द करना अघोषित आपातकाल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रदेश की शिंदे-फडणवीस सरकार के कथित माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण का मराठी अनुवाद करने वाली अनघा लेले को घोषित किए गए यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार- 2021 को रद्द करने के फैसले पर विवाद पैदा हो गया है। बुधवार को विधानसभा में विपक्ष के नेता अजित पवार ने कहा कि राज्य सरकार साहित्य के क्षेत्र में हस्तक्षेप करके अघोषित आपातकाल लगाने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकार का साहित्य क्षेत्र में हस्तक्षेप निदंनीय है। सरकार साहित्य और संस्कृति क्षेत्र को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही है। लेकिन महाराष्ट्र के साहित्यकार सरकार के इस दबाव आगे नहीं झुकेंगे। सरकार का साहित्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। दरअसल शिंदे-फडणवीस सरकार के मराठी भाषा विभाग ने 6 दिसंबर को एक शासनादेश जारी करके कोबाड गांधी की किताब फैक्चर्ड फ्रीडमः ए प्रीजन मेमॉयर का अनुवाद करने वाली अनुवादक अनघा लेले को यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार- 2021 देने की घोषणा की थी। इसके तहत अनघा लेले को अनुवाद के लिए तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी पुरस्कार और एक लाख रुपए नकद राशि प्रदान किया जाना था। मगर महज छह दिन बाद बीते 12 दिसंबर को सरकार के मराठी भाषा विभाग ने नया शासनादेश जारी करके अनघा लेले को घोषित यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार को रद्द कर दिया था। इस शासनादेश में सरकार ने यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार चयन समिति को भी रद्द कर दिया था। अब अनघा लेले को पुरस्कार रद्द किए जाने के विरोध में मराठी साहित्य जगत में सरकार के खिलाफ नाराजगी सामने आई है। मराठी लेखक आनंद करांदीकर और शरद बाविस्कर को भी यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार- 2021 घोषित हुआ था। लेकिन दोनों लेखकों ने अपना पुरस्कार वापस करने की घोषणा की है। वहीं पुरस्कार चयन समिति के सदस्य डॉ. प्रज्ञा दया पवार, नीरजा और हेरंब कुलकर्णी ने महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडल (बोर्ड) से इस्तीफा दे दिया है। जबकि राज्य मराठी भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने भी इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कहा कि मैंने कोबाड गांधी की किताब को पढ़ा है। उन्होंने अपनी किताब में नक्सलवाद को लेकर समर्थन नहीं किया है। पुणे में देशमुख ने कहा कि सरकार ने अनघा लेले को पुरस्कार रद्द करके गलती की है। मेरी सरकार से अपील है कि वह अनघा लेले को दोबारा पुरस्कार बहाल करे। यदि सरकार ने ऐसा नहीं किया तो साहित्य जगत में गलत संदेश जाएगा। इस बीच महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडल (बोर्ड) के अध्यक्ष सदानंद मोरे ने कहा कि सरकार ने मेरी अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर अनघा लेले को पुरस्कार देने की घोषणा की थी। अब सरकार ने अनघा लेले को घोषित पुरस्कार रद्द करने का फैसला किया है। सरकार को पुरस्कार रद्द करने का अधिकार है। इसलिए मुझे सरकार की भूमिका के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करनी है। मोरे ने कहा कि पुरस्कार के लिए पात्र ठहराने वाली छानबीन समिति के सदस्य तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद के नरेंद्र पाठक ने खुद ही कोबाड गांधी के किताब को पुरस्कार देने के लिए पात्र होने संबंधी सिफारिश की थी। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि बाद में पाठक ने ही राज्य सरकार को पत्र लिखकर कोबाड गांधी के किताब के मराठी अनुवाद को पुरस्कार देने का विरोध किया। इसके बाद सरकार ने अनघा लेले को घोषित पुरस्कार रद्द करने का फैसला लिया। मोरे ने कहा कि मैं बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दूंगा। क्योंकि इसमें बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में मेरी कोई गलती नहीं है।
Created On :   14 Dec 2022 10:46 PM IST