चेक बाउंस मामले में व्यापारी की गिरफ्तारी  से मानवाधिकार आयोग नाराज

Cheque bounce Case : Human Right Commission angry on merchants arrest
चेक बाउंस मामले में व्यापारी की गिरफ्तारी  से मानवाधिकार आयोग नाराज
चेक बाउंस मामले में व्यापारी की गिरफ्तारी  से मानवाधिकार आयोग नाराज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने के लिए आम लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। लेकिन मुंबई पुलिस ने एक मामले में इतनी सक्रियता दिखाई कि राज्य मानवाधिकार आयोग भी हैरान है। चेक बाउंस होने के एक ही मामले में सिर्फ 13 दिनों में तीन अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में आपराधिक दर्ज कर व्यापारी को गिरफ्तार कर लिया गया। राज्य मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को पूरे मामले की जांच कर अधिकारियों पर कार्रवाई और पीड़ित व्यापारी को एक लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है।

शिकायतकर्ता को एक लाख का मुआवजा देने का निर्देश
मामले में देविला मेहता नाम की बुजुर्ग महिला ने राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा था कि उनका बेटा राजीव मेहता ज्वेलरी का कारोबार करता है। इसमें भावेश शाह नाम का शख्स उसका पार्टनर है। राजीव ने शाह को चेक दिया था जो बाउंस हो गया। इसी बात को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ। इसके बाद शाह ने जुलाई 2015 में इसी मामले में मुंबई के डीबी मार्ग, एलटी मार्ग और गांव देवी पुलिस स्टेशनों में एफआईआर दर्ज कराई। मामला सिर्फ चेक बाउंस का था और इसमें निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए था लेकिन पुलिस ने आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 506 के तहत एफआईआर दर्ज की और राजीव को गिरफ्तार कर लिया।

13 दिनों में दर्ज की 3 एफआईआर और गिरफ्तारी
राजीव को अलग-अलग पुलिस स्टेशनों द्वारा अलग-अलग गिरफ्तार किया गया। निचली अदालत और हाईकोर्ट ने यह कहते हुए राजीव को जमानत दे दी कि यह सिविल मामला है। राजीव की गैरमौजूदगी में पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा। इस दौरान राजीव की पत्नी घर से बाहर गईं हुईं थीं और वहां कैंसर पीड़ित देविला और छोटा बच्चा ही था। पुलिस वालों ने इस दौरान धमकाते हुए परिवार वालों से जबरन कागजात पर दस्तखत कराए। यही नहीं राजीव की पत्नी जानकारी मिलने के बाद घर पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद रखा गया और उन्हें दाखिल नहीं होने दिया गया। उनके शोर मचाने के बाद पुलिस वाले वहां से निकल गए। जांच में पता चला कि पुलिसवालों ने छापेमारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

अधिकारी ने जांच कर रिपोर्ट सौंपी
राज्य मानवाधिकार आयोग ने जोन दो के डीसीपी से जांच कर मामले की रिपोर्ट देने को कहा लेकिन उन्होंने गांवदेवी पुलिस के सीनियर इंस्पेक्टर को मामले की जांच करने को कहा और उसी अधिकारी ने जांच कर रिपोर्ट सौंपी जो आरोपों के घेरे में था। राज्य मानवाधिकार आयोग ने इस बात पर हैरानी जताई। बार-बार बुलाए जाने के बाद डीसीपी आयोग के सामने नहीं पहुंचे तो आयोग ने स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल पुलिस को मामले की जांच के आदेश दिए। जांच में साफ हुआ कि पुलिस ने न सिर्फ नियम कानून बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन किया है। राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एस आर बन्नूरमठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह मामले की जांच कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे और पीड़ित व्यापारी की मां इस मामले की शिकायतकर्ता को  एक लाख रुपए का मुआवजा दे।

Created On :   9 Feb 2018 4:42 PM GMT

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