- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- हाईकोर्ट : पत्नी शिक्षित है तो भी...
हाईकोर्ट : पत्नी शिक्षित है तो भी गुजराभत्ता से नहीं कर सकते वंचित, नेताओं के आश्वासन पर भी नहीं दे सकते निर्देश

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ तत्कालीन मुख्यमंत्री व राजनीतिक नेताओं के आश्वासन के आधार पर सरकार किसी की प्रतिमा बनाने का निर्देश जारी नहीं कर सकती है। अदालत सिर्फ वैधानिक अधिकार व सार्वजनिक दायित्वों को लागू करा सकती है। आशा और अपेक्षा को अमल में लाना अदालत के दायरे में नहीं आता और वह इस विषय पर आदेश नहीं जारी कर सकते हैं। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने महानगर निवासी एसडी थोरता की ओर से दायर जनहित याचिका को खारिज करते हुए उपरोक्त बाते कही। याचिका में दावा किया गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने लोकशाहिर अन्नाभाउ साठे की बड़ी प्रतिमा व नाट्य केंद्र बनाने का आश्वासन दिया था। इस विषय पर कई दूसरे नेताओं ने भी अन्नाभाऊ साठे की प्रतिमा बनाने का वादा किया था, ताकि लोग उनके प्रति अपनी श्रध्दांजली अर्पित कर सके। लेकिन प्रतिमा बनाने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। इसलिए सरकार को प्रतिमा बनाने का निर्देश दिया जाए। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील नितेश निवशे ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अलावा अतीत में कई नेताओं ने अन्नाभाऊ साठे का प्रतिमा बनाने का आश्वासन दिया था। इसके लिए प्रस्ताव भी पारित किया गया था। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अथवा किसी राजनीतिक नेता ने किसी की प्रतिमा बनाने का वादा किया सिर्फ इस आधार पर सरकार को प्रतिमा बनाने का आदेश जारी नहीं किया जा सकता। पुतला बनाने से जुड़ी आशा व अपेक्षा को कानूनी अधिकार के रुप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। खंडपीठ ने याचिका को आधारहीन करार देते हुए उसे खारिज कर दिया।
पत्नी शिक्षित है तो भी गुजराभत्ता से नहीं कर सकते वंचित
इसके इलावा पत्नी कमाती है और उच्च शिक्षित है, इस आधार पर उसे गुजारा भत्ता पाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में इस बात को स्पष्ट किया है। दरअसल पारिवारिक अदालत ने साल 2017 में पति को अपनी पत्नी को प्रतिमाह 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता के रुप में देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी उसके साथ रहती है और वह उसकी जरुरते पूरी करता है। इसके साथ ही उसकी पत्नी उच्च शिक्षित है हर माह दस हजार रुपए कमाती है। जबकि मेरी आमदनी इतनी नहीं है कि मैं अपनी पत्नी को 15 हजार रुपए गुजारेभत्ते के रुप में दे सकू। इसलिए गुजारा भत्ता के संबंध में पारिवारिक अदालत की ओर से दिया गया आदेश न्यायसंगत नहीं है। वहीं पत्नी के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल की जो बुनियादि जरुरते हैं, पति उसे पूरा नहीं करता । पारिवारिक अदालत ने सभी पहलूओं पर गौर करने के बाद ही गुजाराभत्ता देने का आदेश जारी किया है इसमें कोई खामी नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति नितिन सांब्रे ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने जब गुजारेभत्ते का आदेश जारी किया था उस समय याचिकाकर्ता (पति) की आय 87 हजार रुपए थी। पत्नी अपने पति के यहां रहती है सिर्फ इस आधार पर वह गुजाराभत्ता पाने से वंचित नहीं हो सकती है। न्यायमूर्ति ने पति की उस दलील को अस्वीकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि पत्नी उच्चशिक्षित है और वह कमाती है इसलिए उसे गुजाराभत्ता न दिया जाए। गुजाराभत्ते के संबंध में दिया गया आदेश अवैध नहीं है। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने पति की याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   11 Feb 2020 8:28 PM IST