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मालेगांव धमाका मामले में वकीलों को मौकाए वारदात का दौरा करने की अनुमति, सूखा राहत की जानकारी न मिलने से कोर्ट नाराज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने मालेंगाव बम धमाके के आरोपियों की ओर से पैरवी कर रहे बचाव पक्ष के वकीलों को उस जगह का दौरा करने की अनुमति प्रदान कर दी है जहां पर साल 2008 में धमाके हुए थे। सोमवार को धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर व अन्य आरोपियों के वकीलों ने संयुक्त आवेदन के जरिए न्यायाधीश से धमाके की जगह का मुआयना व दौरा करने की इजाजत मांगी। इस दौरान साध्वी के वकील प्रशांत मंग्गू ने कहा कि हमे दौरा करने के लिए पुलिस की सुरक्षा भी प्रदान की जाए। ताकि हम बेखौफ होकर घटना स्थल का मुआयना कर सके। बचाव पक्ष के वकीलों की ओर से किए गए आवेदन को मंजूर करते हुए न्यायाधीश ने नाशिक के पुलिस अधीक्षक को दौरा करने के लिए आनेवाले वकीलों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस सुरक्षा का शुल्क वकील खुद वहन करे। इस बारे में साध्वी के वकील प्रशांत मंग्गू ने कहा कि हम बिना किसी अवरोध के धमाके के घटना स्थल का दौरा कर सके इसके लिए हमने कोर्ट से पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। गौरतलब है कि साल 2008 में हुए मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि सौ लोग घायल हो गए थे। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर,कर्नर प्रसार पुरोहति,सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर द्विवेदी,अजय रहिरकर व समीर कुलकर्णी सहित सात लोगों को आरोपी बनाया गया है। मामले से जुड़े सभी आरोपी जमानत पर है।
सूखा राहत को लेकर उठाए गए कदमों की जानकारी न दने पर हाईकोर्ट ने व्यक्त की नाराजगी
इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने राज्य में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी न देने के लिए राज्य सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने कहा कि आखिर सरकार को इस विषय पर हलफनामा दायर करने के लिए कितना वक्त चाहिए? हमने सरकार को पिछली सुनवाई के दौरान हलफनामा दायर करने के लिए समय दिया था लेकिन अब तक हलफनामा नहीं दायर किया गया है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि था कि यदि मामले की पैरवी के लिए के लिए विशेष सरकारी वकील उपल्बध नहीं है तो जो वकील उपलब्ध है उन्हें इस मामले की पैरवी की जिम्मेदारी दी जाए। सोमवार को अवकाशकालीन न्यायमूर्ति एसके शिंदे की खंडपीठ ने कहा कि जलगांव,औरंगाबाद व अन्य इलाकों में सूखे के चलते काफी गंभीर स्थिति बनी हुई है? इस सवाल पर सरकारी वकील ने कहा कि उन्हें इस विषय पर हलफनामा दायर करने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाए। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए कितना वक्त चाहिए? यह बेहद गंभीर मामला है। इस पर सरकारी वकील ने कहा कि इस मामले की सुनवाई छुट्टी खत्म होने के बाद रखी जाए। इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के वकील वीपी पाटील ने कहा कि सूखे की स्थिति को देखते हुए इस मामले की सुनवाई छुटि्टयों के दौरान ही होनी चाहिए। इससे सहमत खंडपीठ ने सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए 24 मई तक का समय दिया और मामले की सुनवाई 26 मई तक के लिए स्थगित कर दी। इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर संजय लाखे पाटील ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि सरकार ने अब तक सूखा निगरानी केंद्र स्थापित नहीं किया है। सूखे के लिए केंद्र सरकार की ओर राहत मिल सके इसके लिए कानून द्वारा निर्धारित कदम नहीं उठाए गए है। जबकि राज्य के जलाशयों में पानी का स्तर शून्य तक पहुंच गया है। नियमानुसार सरकार को रवि की फसल के लिए सरकार को मार्च तक सूखा घोषित करना चाहिए लेकिन सरकार ने अब तक इस दिशा में जरुरी कदम नहीं उठाए गए है। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार को सोमवार तक इस मामले में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था लेकिन सरकार ने अब तक हलफनामा नहीं दायर किया है।
पेड़ काटने की अनुमति न मिलने से मेट्रो रेल कार्पोरेशन को हो रहा रोजाना चार करोड़ का नुकसान
मेट्रो कारशेड के लिए पेड काटने की अनुमति न मिलने से मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन को रोजाना चार करोड रुपए से अधिक का नुकसान हो रहा है। वृक्ष काटने की अनुमति न मिलने की वजह से सारी मशीने व उपकरण निष्क्रिय पड़े हुए है। इन मशीनों का किराया जनता की ओर से दिए जानेवाले कर के पैसों से भुगतान किया जा रहा है। सोमवार को सरकारी वकील ने बांबे हाईकोर्ट को यह जानकारी दी। सरकारी वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि मुंबई महानगरपालिका(मनपा) के वृक्ष प्राधिकरण के कामकाज पर लगी रोक को हटाया जाए। ताकि वह पेड़ों को काटने से जुड़े प्रस्ताव पर निर्णय ले सके। गौरतलब है कि नियमानुसरा वृक्ष प्राधिकरण में विशेषज्ञों को शामिल न किए जाने के चलते मनपा के प्राधिकरण के काम करने पर रोक लगाई गई है। सोमवार को इस मामले से जुड़ी याचिका पर अवकाशकालीन न्यायमूर्ति एसके शिंदे की खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने मुंबई मनपा को इस बारे में बुधवार तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। वृक्ष प्राधिकरण में अधिक से अधिक 15 सदस्य होते है। जिसमे सात विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिए। मनपा के वृक्ष प्राधिकरण में 14 नगरसेवकों को शामिल कर लिया गया था। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने मनपा के वृक्ष प्राधिकरण के पुनर्गठन का निर्देश दिया था। और प्राधिकरण के कामकाज पर रोक लगा दी थी। सिर्फ आपात व खतरे की स्थिति में मुंबई मनपा आयुक्त को पेड़ो को काटने की अनुमति दी गई है। महानगर के आरे इलाके में मेट्रो का कारशेड प्रस्तावित है।
गलत खाते में पैसे भेजने के मामले में खाताधारक को मुआवजा दे बैंक
उधर राज्य उपभोक्ता आयोग ने आरटीजीएस के जरिए गलत खाते में पैसे भेजने के बैंक के कृत्य को लापरवाहीपूर्ण माना है। मामला केनरा बैंक से जुड़ा है। आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि खाते में पैसे स्थानांतरित करते समय सिर्फ खाता नबंर ही नहीं लाभार्थी का नाम व बैंक की किस शाखा व शहर में पैसे भेजे जा रहे इसकी भी जांच की जानी चाहिए। दरअसल महानगर के परेल इलाके में रहनेवाले प्रदीप त्रिपाठी केनरा बैंक के मार्फत छत्तीसगढ के एक कारोबारी के खाते में 48 हजार रुपए भेजना चाह रहे थे लेकिन पैसे कारोबारी को मिलने की बजाय हैदराबाद के किसी अंजान व्यक्ति के खाते में चले गए। इस बारे में जब उन्होंने बैंक में शिकायत की तो बैंक ने उनकी शिकायत पर गौर नहीं किया। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद आयोग ने न सिर्फ बैंक को त्रिपाठी के पैसे लौटाने का आदेश दिया बल्कि 32 हजार रुपए मुआवजे के रुप में भी भुगतान करने को कहा है। शुरुआत में जिला उपभोक्ता फोरम ने त्रिपाठी के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके खिलाफ बैंक ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की थी। आयोग ने कहा कि त्रिपाठी ने आरटीजीएस की पर्ची में सही खाता नंबर लिखा था लेकिन बैंक ने उसे दोबारा सत्यापित किए बगैर गलत खाते में पैसे स्थनांतरित कर दिए। इस लिहाज से हमें जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती है। हम इस मामले में गलती के लिए शिकायतकर्ता को जिम्मेदार नहीं मान सकते। इस प्रकरण में जो हुआ उसमें बैंक की गलती है। क्योंकि आरटीजीएस को लेकर जो पर्ची दी गई है उसमें खाते की एक संख्या में ओवरराइटिंग की गई है। आमतौर पर बैंक ओवरराइटिंग की हुई पर्ची को स्वीकार नहीं करता है। आयोग ने शिकायतकर्ता की ओर से पेश किए गए प्रमाण पर गौर करने के बाद कहा कि इस मामले में बैंक का लापरवाही पूर्ण कृत्य सामने आया है।
Created On :   20 May 2019 11:10 PM IST