- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- अदालत : जरूरी नही की बेटे की...
अदालत : जरूरी नही की बेटे की कारगुजारी बाप को पता हो, एक अपराध के लिए नहीं दर्ज हो सकती दो FIR

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि इस बात को नही माना जा सकता है कि पिता को अपने बेटे द्वारा चुपके से किए गए कृत्य की जानकारी होगी ही है। अदालत ने इस धारणा को स्वीकार करने से इंकार करते हुए अरिविंद कुमार धाकड़ को बरी करने का निर्देश दिया है। धाकड़ को राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने सोने की तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया था। धाकड के बेटे मयंक ने अपने पिता की गिरफ्तारी को नियमों के विपरित बताते हुए उन्हें रिहा किए जाने की मांग को लेकर बांबे हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती व न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। डीआरआई के अनुसार उन्हें विदेश से सोने की तस्कीर करने वाले एक गिरोह की जानकारी मिली थी। जिसने धातुओं के भंगार की आड़ में जुलाई 2018 से मार्च 2019 के बीच तीन हजार किलो सोने की तस्करी की है। जिसकी कीमत एक हजार करोड़ रुपए के करीब है। पुलिस ने इस मामले में अरविंद कुमार धाकड के बेटे हैप्पी धाकड़ को गिरफ्तार किया था। डीआरआई की ओर से पैरवी कर रही सरकारी वकील अरुणा पई ने दावा किया कि अरविंद कुमार ने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और सोने की तस्करी में अपने बेटे की सहायता की है। हमने इस मामले में अरविंद कुमार के बेटे हैप्पी धाकड़ को गिरफ्तार किया था। और अरविंद कुमार धाकड़ से इस बारे में पूछताछ शुरु की थी लेकिन उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया। जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा है। अरविंद कुमार उस कंपनी से जुड़े था जिसमें उनका बेटा निदेशक था। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुजाय कांटावाला ने कहा कि मेरे मुवक्किल की गिरफ्तारी कस्टम एक्ट की धारा 104 के खिलाफ है। नियमानुसार गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को गिरफ्तारी का कारण व आधार बताना जरुरी है। इस दौरान उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल को 9 सितंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेजे जाने का आदेश नियमों के दायरे में नहीं आता है। वहीं सरकारी वकील अरुणा पई ने कहा कि डीआरआई ने इस प्रकरण में अरविंद कुमार के एक सहयोगी को भी गिरफ्तार किया है। इसलिए हमने जांच के उद्देश्य से अरविंद कुमार को गिरफ्तार किया है। खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने मुख्य रुप से इस धारणा के आधार पर याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया है कि अपने बेटे की कंपनी से जुड़े होने के कारण उसे अपने बेटे की चुपके से की गई गतिविधियों की जानकारी होगी। लेकिन यह धारणा कस्टम एक्ट की धारा 140 के अनुरुप नहीं है। यह कहते हुए खंडपीठ ने अरविंद कुमार को बरी करने का निर्देश दिया।
एक अपराध के लिए नहीं दर्ज हो सकती दो-दो एफआईआर
वहीं ठाणे की एक अदालत ने कहा कि एक ही अपराध में एक से अधिक प्राथमिकी यानी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। कोर्ट ने हत्या के प्रयास और दंगे के लगभग 25 वर्ष पुराने मामले में आरोपी 10 लोगों को बरी कर करते हुए यह टिप्पणी की। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए एस पंधारीकर ने अपने आदेश में कहा कि हर जांच का अंतिम उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि क्या अपराध किया गया है और यदि यह हुआ है तो यह किसने किया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार तात्या पटेल और एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता केशरीनाथ म्हात्रे का परिवार बिल्डिंग मटेरियल सप्लाई करने का व्यवसाय करते थे। पटेल परिवार के सदस्य और कुछ अन्य लोग 10 फरवरी, 1994 को म्हात्रे के ठाणे जिले के काशी गांव में स्थित घर पर आये और उन्हें एक ठेकेदार को आपूर्ति करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने म्हात्रे के मकान पर कोई ज्वलनशील पदार्थ भी फेंका जिससे मकान का कुछ हिस्सा भी क्षतिग्रस्त हो गया। इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धाराओं 307, 342, 143,147,148, 149,436 और 427 के तहत 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इनमें से तीन अभी फरार हैं जबकि चार लोगों की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। न्यायाधीश पंधारीकर ने 2013 में आये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का संदर्भ देते हुए शेष 10 आरोपियों को बरी कर दिया। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि एक ही घटना के लिए दो प्राथमिकी दर्ज की गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कानूनी स्थिति यह है कि एक ही मामले में उन्हीं आरोपियों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है।’’
Created On :   3 Sept 2019 8:42 PM IST