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हिंदी शिक्षक नियुक्ति मामले में कोर्ट ने कहा- मराठी जैसा मिले राष्ट्रभाषा हिंदी को सम्मान

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार यह कैसे कह सकती है कि भाषा के शिक्षक नहीं चाहिए। जबकि राज्य में भाषा को लेकर जो फामूर्ला है उसके अंतर्गत मराठी, हिंदी व अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती है। सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार राज्य में मराठी भाषा को प्रोत्साहित करने को लेकर काफी उत्साहित दिख रही है लेकिन सरकार को मराठी जैसा समान महत्व राष्ट्रभाषा को भी देना होगा। जो दर्जा हिंदी के पास है। ऐसा सिर्फ हिंदी की लोकप्रियता के चलते नहीं बल्कि संविधान में हिंदी को लेकर किए गए प्रावधान की वजह से भी करना पड़ेगा। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने उपरोक्त बाते एक सहायक हिंदी शिक्षक के पद की मंजूरी को लेकर जारी विवाद की बाबत दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। इस दौरान सहायक सरकारी वकील बीवी सामंत ने कहा कि भाषा के शिक्षक को लेकर सरकार ने पिछले साल एक शासनादेश जारी किया है। इसके साथ ही भाषा के शिक्षक के जो पद लैप्स (खत्म) हो गए हैं। उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी जा सकती है कि नहीं, उन्हें इस बारे में निर्देश लेने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाए। उन्हें इस मामले में कोल्हापुर के शिक्षा उपनिदेशक से भी निर्देश लेना पड़ेगा। साथ ही इसका भी पता लगाना होगा कि याचिकाकर्ता की जिस पद पर नियुक्ति हुई है उसे मंजूरी मिली है अथवा नहीं। फिलहाल याचिकाकर्ता की नियुक्ति को बरकरार रखा जाएगा।
भाषा के शिक्षक की जरुरत से कैसे कर सकते हैं इंकार
इस पर खंडपीठ ने कहा सरकार यह कैसे कह सकती है कि उसे भाषा के शिक्षक की जरुरत नहीं है। खास तौर से तब जब महाराष्ट्र में अंग्रेजी, मराठी व हिंदी भाषा शिक्षा का माध्यम है। नई सरकार राज्य की भाषा मराठी को बढावा देने को लेकर काफी उत्साहित है। लेकिन सरकार को राष्ट्रभाषा (हिंदी) को मराठी जैसा ही महत्व देना होगा। हिंदी के पास यह दर्जा है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 25 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। और अगली सुनवाई के दौरान सरकारी वकील को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।
Created On :   10 Feb 2020 7:12 PM IST