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1500 लावारिस शवों का किया अंतिम संस्कार, 78 बार रक्तदान कर बचाई जान
डिजिटल डेस्क शहडोल । देश और समाज के निर्माण में कुछ लोग तन, मन, धन से जुटे रहते हैं। उनके लिए अपनी खुशी से बढ़कर दूसरों को चेहरे पर मुस्कान लाना होता है। ऐसे ही सख्श हैं समाजसेवी रंजीत वसाक और अजय बिजरा। रंजीत पिछले 15 वर्षों से वह लावारिस शवों का पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार कर रहे हैं। वहीं एलआईसी कर्मचारी अजय बिजरा रक्तदान कर लोगों को नया जीवन दे रहे हैं।
15 वर्ष पहले हुई शुरुआत, खुद का शव वाहन भी चला रहे
नगर के रंजीत वसाक अब तक 1500 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। करीब 15 वर्ष पहले उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने संकल्प ले लिया कि जिसका कोई वारिस नहीं होगा, उसके वारिश बनकर वे अंतिम संस्कार करेंगे। पिछले कुछ वर्षों से इस काम के लिए वे शव वाहन भी चलवा रहे हैं। नगर के 25 किमी के दायरे में कहीं भी लावारिस शव मिलता है तो वे उसको ससम्मान हनुमान घाट स्थित श्मशान घाट लाते हैं और पूरे विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार करते हैं। उन्होंने बताया कि अब तो पूरे क्षेत्र में लोगों व पुलिस को इसकी जानकारी हो चुकी है। जब भी कोई लावारिस शव मिलता है तो लोग उनको सूचित करते हैं। उनका शव वाहन 24 घंटे उपलब्ध रहता है। इसके लिए उन्होंने अपने खर्च पर ही ड्राइवर रखा हुआ है और पेट्रोल-डीजल का खर्च भी वे स्वयं भी वहन करते हैं। उन्होंने बताया कि जब पुलिस की तरफ से किसी शव की जानकारी दी जाती है तो वह उसको दफनाते हैं, क्योंकि उसमें जांच आदि की गुंजाइश रहती है। अगर किसी आश्रम आदि की तरफ से शव के बारे में सूचना मिलती है तो उसका दाह संस्कार किया जाता है।
गौसेवा वाहन भी शुरू किया
रंजीत वसाक ने करीब दो माह पहले गौसेवा वाहन भी शुरू किया है। इसमें वे नगर के आसपास बीमार या हादसे में घायल जानवरों को कल्याणपुर स्थित गौ सेवा केंद्र पहुंचाते हैं। पिछले दो माह के भीतर ही करीब 80 जानवरों को वहां तक पहुंचा चुके हैं। इसके अलावा वे छह बच्चों की परवरिश का खर्च भी उठा रहे हैं। इनमें से एक बच्ची फस्र्ट ईयर में पढ़ती है, तीन बच्चे 12वीं में पढ़ते हैं और दो बच्चे कक्षा 10वीं के छात्र हैं। इनकी पढ़ाई से लेकर रहने-खाने का इंतजाम वही करते हैं।
हर बार अनजान लोगों के लिए ही किया रक्तदान
एलआईसी में विकास अधिकारी नगर के अजय बिजरा भी समाज सेवा में जुटे हुए हैं। उन्होंने अब तक 78 बार रक्तदान कर कई लोगों का जीवन बचाया है। सबसे बड़ी बात कि आजतक उनके परिवार में या किसी नजदीकी रिश्तेदार के लिए उनके ब्लड की जरूरत नहीं पड़ी। हर बार उन्होंने किसी अपरिचित को ही अपना रक्त दिया है। उन्होंने इसकी शुुरुआत 1988 में की थी। तब उनको अपना ब्लड ग्रुप भी पता नहीं था। जब ब्लड डोनेट करने गए तो डॉक्टर ने बताया कि आपका ब्लड ग्रुप ए निगेटिव है, जो रेयर है। तब से उन्होंने ठान लिया कि जिसको भी जरूरत पड़ेगी, वे रक्तदान जरूर करेंगे। भास्कर से चर्चा में उन्होंने बताया कि वे शहडोल नगर के साथ-साथ धनपुरी, नौरोजाबाद, पाली, उमरिया में रक्तदान करने जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि एक बार वे नौरोजाबाद विजिट पर थे। अपना काम कर रहे थे, तभी सूचना मिली कि किसी को ए निगेटिव ब्लड की जरूरत है, बिना समय गंवाए वे हॉस्पिटल पहुंचे और रक्तदान किया। इसी तरह नगर के युगल यादव को थैलेसीमिया है। उसके लिए उन्होंने पांच बार रक्तदान किया है। वर्तमान में उसका इलाज रायपुर में चल रहा है।
समाजसेवा के काम से भी जुड़े
अजय बिजरा रक्तदान के साथ-साथ समाजसेवा के कार्यों में भी जुटे हुए हैं। वर्तमान में वे रोटरी क्लब के अध्यक्ष भी हैं और क्लब के माध्यम से गरीबों को कपड़े आदि बांटने का काम करते हैं। इससे पहले उन्होंने अपने खर्च पर कई बार सड़कों के गड्ढे भरवाने का काम भी किया है। उन्होंने बताया कि ब्लड बैंक प्रभारी सुधा नामदेव भी जरूरत पडऩे पर उनको ब्लड के लिए कॉल करती हैं और वे बिना देर किए संबंधित व्यक्ति को ब्लड डोनेट करने चले जाते हैं।
Created On :   23 Jan 2020 2:52 PM IST