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सिर्फ रेप पीड़िता की गवाही के आधार आरोपी को दोषी ठहराना खतरनाक - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ दुष्कर्म पीड़िता की गवाही के आधार पर बलात्कार के आरोपी को दोषी ठहरना खतरनाक है। क्योंकि ऐसी स्थिति में आरोपी के पास अपने बचाव के लिए कोई रास्ता नहीं रहेगा। हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी प्रशांत गवंड के रिहाई के आदेश को कायम रखते हुए यह फैसला सुनाया है। गवंड पर घर की नौकरानी ने उस पर दो बार दुष्कर्म करने का अारोप लगाया था। रायगढ की सत्र न्यायालय ने गवंड को सबूत के अभाव में मार्च 2002 में बरी कर दिया था। निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के.आर.श्रीराम ने भी आरोपी के रिहाई के आदेश को कामम रखते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। इस दौरान न्यायमूर्ति ने कहा कि इस मामले में दुष्कर्म पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नजर नहीं आ रही है।
पीड़िता के मुताबित आरोपी ने उसे धमका करके उसके साथ दुष्कर्म किया था। पीडिता के अनुसार आरोपी को उसके ब्याफ्रेंड के रिश्ते के बारे में जानकारी थी। जिसे सार्वजनिक करने की धमकी देकर आरोपी ने उसके साथ संबंध बनाए थे। वह पांच महीने की गर्भवति भी हो गई थी। इसके बाद उसने अगस्त 2000 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में पीड़िता ने खुद को नाबालिग बाताया था। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपी ने पीड़िता के साथ सिर्फ दो बार संबंध बनाए थे। जबकि पीड़िता के उसके ब्याफ्रेंड के साथ लगातार संबंध जारी थे। ऐसे में पीड़िता यह कैसे कह सकती है कि वह आरोपी के चलते गर्भवती हुई है। इस मामले में पुलिस ने पीड़िता के ब्याफ्रेंड को पहले आरोपी बनाया था लेकिन बाद में आरोपपत्र से उसका नाम हटा दिया।
न्यायमूर्ति ने कहा कि पुलिस ने पीड़िता के गर्भवती होने व गर्भपात के संबंध में कोई प्रमाण भी नहीं पेश किया है। पीड़िता ने भले खुद को नाबालिग बताया है लेकिन सिर्फ स्कूल के रजिस्ट्रार में लिखी गई जन्मतारीख के आधार पर पीड़िता को नाबालिग नहीं माना जा सकता है। क्योंकि स्कूल के रजिस्ट्रार में अभिभावक कोई भी तारीख लिखा देते है। मेडिकल टेस्ट से पीड़िता की उम्र नाबालिग नहीं प्रतीत होती है। इस मामले में पीड़िता की गवाही के आलाव पुलिस ने आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया है। इस लिहाज से सिर्फ पीड़िता की गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना खतरनाक है। ऐसी स्थिति में आरोपी के पास अपना बचाव करने के लिए कुछ नहीं रहेगा। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। और आरोपी के रिहाई के आदेश को बरकरार रखा।
नागरिकों द्वारा पुलिस की पिटाई से प्रभावित होगी समाज की सुरक्षा
वहीं आम आदमी द्वारा पुलिस की पिटाई से न सिर्फ समाज की सुरक्षा प्रभावति होगी बल्कि न्याय प्रशासन पर भी इसका गंभीर असर पड़ेगा। यह बात कहते हुए मुंबई सत्र न्यायालय ने पुलिस पर हमला करने के मामले में आरोपी जीतू शर्मा को दोषी ठहराते हुए 16 महीने के जेल की सजा सुनाई है। सहायक सत्र न्यायाधीश सोनाली अगरवाल ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि आरोपी शर्मा 25 नवंबर 2018 को मुलुंड इलाके में शराब के नशे में सार्वजनिक सड़क पर उत्पात मचा रहा था। आने-जानेवाले लोगों को गाली दे रहा था। यही नहीं उसने अपने पास में बियर की एक कांच की बोतल भी तोडकर रखी थी। एक फूटी हुई बोतल अपने पास रखी थी। और कह रहा था कि यदि कोई उसके पास आया तो वह उस पर हमला कर देगा। पुलिस को जब इस बारे में जानकारी मिली तो पुलिस कांस्टेबल विजय यादव ने आरोपी को शांत रहने को कहा। लेकिन वह शांत नहीं हुआ। यादव जब शर्मा को पकड़ने गए तो उसने उन पर हमला कर दिया और उनकी पिटाई कर दी। इस दौरान यादव के पेट में चोट लगी। कुछ समय बाद शर्मा को पकड़ लिया गया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353,332 व 506 के तहत मामला दर्ज किया और फिर कोर्ट में आरोपपत्र दायर किया। अदालत में शर्मा ने खुद को बेगुन्हा बताया और कहा कि उसे इस मामले में फंसाया गया। वह सड़क से गुजर रहा था पुलिस ने उसे अपनी गाड़ी में बीठ लिया। मामले से जुड़े दस्तावेजी सबूतो पर गौर करने के बाद न्यायाधीश ने आरोपी शर्मा को पुलिसकर्मी पर हमला करने का दोषी माना और उसे 16 महीने के कारावास की सजा सुनाई। इस दौरान न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस समाज की सुरक्षा में तैनात रहती है। यदि आम आदमी पुलिस की पिटाई करेगा तो इससे समाज की सुरक्षा प्रभावित होगी। और इसका न्याय प्रशासन पर गंभीर असर पड़ेगा।
Created On :   8 Dec 2019 7:02 PM IST