हाईकोर्ट : चंदा कोचर मामले की सुनवाई पूरी, 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत

Decision of Chanda Kochhar case will come on soon in High Court
हाईकोर्ट : चंदा कोचर मामले की सुनवाई पूरी, 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत
हाईकोर्ट : चंदा कोचर मामले की सुनवाई पूरी, 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदाकोचर के वकील विक्रम ननकानी ने शुक्रवार को बांबे हाईकोर्ट में दावा किया कि उनके मुवक्किल की सेवा से बर्खास्तगी का निर्णय बैंकिग रेग्युलेशन कानून की धारा 35 बी के खिलाफ है। उन्हें सेवा से बर्खास्त करते समय वैधानिक नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसलिए कोचर को नौकरी से निकालने के निर्णय की न्यायिक समीक्षा हो सकती है और कोर्ट का हस्तक्षेप अपेक्षित हैं। जबकि बैंक की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ने दावा किया कि कोचर की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। उन्होंने दावा किया कि कोचर की नियुक्ति ठेके पर की गई थी। वे एक निजी संस्थान में कार्यरत थी। इसलिए उनकी बर्खास्तगी के आदेश की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। बैंक ने सेवा से जुड़ी शर्तों के तहत की ही कार्रवाई की गई है। यह कमर्चारी और नियोक्ता के बीच का विवाद है। उन्होंने कहा कि कोचर ने बर्खास्तगी के आदेश के नौ महीने बाद याचिका दायर की है। वीडियोकान कंपनी को कर्ज से जुड़े कथित विवाद में चंद्राकोचर का नाम सामने आया था।न्यायमूर्ति नितिन जामदार व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हम गुरुवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाएगे। इसके बाद यह तय होगा कि कोचर की याचिका सुनवाई योग्य है की नहीं है। 

13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत

बांबे हाईकोर्ट ने 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को अपने 22 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान कर दी है। न्यायमूर्ति के के तातेड व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने यह अनुमति पीड़िता की जांच से जुड़ी मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को देखने के बाद दी है। रिपोर्ट में कहा गया था कि कम उम्र  में गर्भवती होने के चलते लड़की के जीवन को खतरा हो सकता है। इसके साथ ही इसका उसकी मानसिक स्थिति पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। लड़की के अभिभावकों ने भी याचिका में कहा था कि यदि पीड़िता को गर्भपात की इजाजत नहीं मिली तो उसे शारिरीक व मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। अभिभावक जब पीड़िता को डाक्टर के पास जांच के लिए ले गए तो उन्हें नाबालिग के गर्भवती होने की जानकारी मिली थी। नियमानुसार 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। इसलिए पीड़िता के अभिभावकों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि यदि गर्भपात की प्रक्रिया के दौरान बच्चा जीवित पैदा होता है तो उसे जरुरी उपचार प्रदान किया जाए। यदि पीड़िता के घरवाले बच्चे को लेने से इंकार करते है तो सरकार बाल न्याय कानून के तहत बच्चे की देखरेख करे। चूंकि पीड़िता दुष्कर्म का शिकार है इसलिए भ्रूण के रक्त के नमूने लिए जाए। ताकि आरोपी के डीएनए टेस्ट के दौरान इसका इस्तेमाल किया जा सके। जांच के नमूनों को फोरेंसिक लैब में भेजा जाए। पनवेल पुलिस ने इस मामले को लेकर 12 फरवरी 2020 को आपराधिक मामला दर्ज किया था। 

वैधानित तरीके से प्रदर्शन करनेवालों को भयभीत होने की जरुरत नहीं

उधर बांबे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी ने कहा है कि यदि आप वैधानिक तरीके से प्रदर्शन करते है तो आपको भयभीत होने की जररुत नहीं है। आप सरकार के आलोचक भी हो सकते है। यह अपराध नहीं है बशर्ते आप के बोलने की स्वतंत्रता से वैमनस्य व घृणा के भाव को प्रोत्साहन न मिलता हो। धर्माधिकारी ने शुक्रवार को यह बाते चर्चगेट स्थित इंडियन मर्चेंट चेंबर के सभागृह में आयोजित प्राचार्य डा.टीके टोपे मेमोरियल लेक्चर के अंतर्गत बोलने की स्वतंत्रता व देशद्रोह विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि हम सोचते है कि हर कानून कठोर है। और अनुमान लगाते है कि लोकतंत्र में ऐसा कानून संभव नहीं हैं। लेकिन मुझे महसूस होता है कि लोगों में कानून को लेकर व्यापक स्तर पर अज्ञानता है। कानून का संविधान की कसौटी में खरा उतरना जरुरी है। इसलिए यदि कोई वैधानिक तरीके से प्रदर्शन करता है तो उसे किसी से भयभीत होने की जरुरत नहीं है। आप सरकार के आलोचक भी हो सकते है। यह अपराध नहीं है। 

Created On :   28 Feb 2020 2:17 PM GMT

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