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एफआईआर के चलते युवक की कांस्टेबल पर नियुक्ति रोके जाने से हाईकोर्ट नाराज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। एफआईआर दर्ज होने के चलते एक युवक की पुलिस कांस्टेबल पद पर नियुक्ति रोके जाने पर बांबे हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता युवक विष्णु फड के खिलाफ अगस्त 2016 में एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन अब तक पुलिस ने इस मामले में न तो किसी को गिरफ्तार किया और न ही मामले को लेकर आरोपपत्र दायर किया है। फड पर आरोप है कि पुलिस कांस्टेबल पद के लिए ली गई परीक्षा में उसके स्थान पर किसी और ने परीक्षा दी थी। मंगलवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील नितिन देशपांडे ने कहा कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ साल 2016 में एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी न तो पुलिस ने किसी को गिरफ्तार किया और न ही मामले को लेकर आरोपपत्र दायर किया है। इसलिए मेरे मुवक्किल के खिलाफ दर्ज किए गए आपराधिक मामले को रद्द कर दिया जाए। क्योंकि इस मामले के चलते पुलिस कांस्टेबल पद के लिए चयनित होने के बाद भी मेरे मुवक्किल की नियुक्ति अटकी पड़ी है। जिससे मेरे मुवक्किल को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। श्री देशपांडे ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल पर लगाए गए आरोप आधारहीन है। इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया जाए। याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने नाराजगी जाहिर की। इस दौरान सरकारी वकील ने जवाब देने के लिए समय की मांग की। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 10 जून तक के लिए स्थगित कर दी।
बेटी के साथ दुष्कर्म के आरोपी सौतेले पिता को जमानत देने से इंकार
इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने बेटी के साथ रेप के मामले में दोषी पाए गए सौतेले पिता को जमानत देने से इंकार कर दिया है। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी दिलीप सालुंखे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ सालुंखे ने हाईकोर्ट में अपील कर जमानत पर रिहा करने का आग्रह किया था। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति स्वप्ना जोशी की खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी के वकील ने खंडपीठ के सामने कहा कि अभियोजन पक्ष मेरे मुवक्किल पर लगे आरोपों को साबित नहीं कर पाया है। डीएनए रिपोर्ट भी मेरे मुवक्किल की दुष्कर्म के मामले में संलिप्तता को साबित नहीं करती है। पीड़िता ने भी मेरे मुवक्किल पर आरोप लगाने से इंकार किया है। इसके साथ ही अभियोजन पक्ष पीड़िता के नाबालिग होने की बात को भी साबित नहीं कर पाया है। इसलिए मेरे मुवक्किल को जमानत पर रिहा किया जाए। वहीं सरकारी वकील ने कहा कि डाक्टर की रिपोर्ट में पीड़िता के साथ दुष्कर्म की बात सामने आयी है। दुष्कर्म के चलते पीड़िता गर्भवती भी हुई थी। डीएनए रिपोर्ट से भी मामले में आरोपी की संलिप्तता सामने आयी थी। डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि कई बार यौन उत्पीड़न के चलते पीड़िता गर्भवती हुई थी। पीड़िता के सगे पिता की मौत हो चुकी है। पीड़िता की मां ने आरोपी के साथ दोबारा विवाह किया था। स्कूली दस्तावेजों से पीड़िता के नाबालिग होने की बात सामने आयी है। सरकारी वकील ने दावा किया कि निचली अदालत ने मामले से जुड़े सभी सबूतों पर गौर करने के बाद आरोपी को सजा सुनाई है। इसलिए आरोपी को जमानत न दी जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने आरोपी की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
Created On :   5 Jun 2019 7:34 PM IST