सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने कदम उठाए चुनाव आयोग : हाईकोर्ट

Election Commission takes steps to ban political advertising on social media
सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने कदम उठाए चुनाव आयोग : हाईकोर्ट
सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने कदम उठाए चुनाव आयोग : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि निष्पक्ष व पारदर्शी चुनाव करना केंद्रीय चुनाव आयोग का वैधानिक दायित्व है लिहाजा वह चुनाव के 48 घंटे पहले सोशल मीडिया में राजनीतिक विज्ञापनों पर रोक लगाने की दिशा में जरुरी कदम उठाए। सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने की मांग को लेकर पेशे से वकील सागर सुर्यवंशी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।

गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद उपरोक्त बात कही। इससे पहले केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रदीप राजगोपाल ने कहा कि चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानूनी की धारा 126 में संसोधन करने का सुझाव दिया है। जिसके तहत इस धारा में इलेक्ट्रानिक मीडिया शब्द को शामिल करने की सिफारिश की गई है। ताकि चुनाव के 48 घंटे भुगतान के साथ प्रसारित होनेवाले राजनीतिक विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जा सके।

इस पर खंडपीठ ने कहा कि कानून में संसोधन करने में काफी समय लगेगा और चुनाव काफी करीब है। इसलिए चुनाव आयोग याचिका में उठाए गए मुद्दे को लेकर तुरंत जरुरी कदम उठाए। चुनाव आयोग इस विषय पर आदेश जारी कर सकता है वह असहाय नहीं है। क्योंकि निष्पक्ष व पारदर्शी चुनान करना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है। याचिकाकर्ता के वकील अभिनव चंद्रचूड ने कहा कि  अमेरिका व युके  में आनलाइन राजनीतिक विज्ञापनों पर काफी पैनी नजर रहती है। भारत को भी विदेशों जैसी व्यवस्था बनानी चाहिए। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 31 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी है।

ठाकरे स्मारक के लिए 100 करोड़ देने के फैसले को सरकार ने हाईकोर्ट में ठहराया सही 

राज्य सरकार ने गुरुवार को बांबे हाईकोर्ट में दिवंगत शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के स्मारक के लिए 100 करोड रुपए देने के फैसले को न्यायसंगत ठहराया है। सरकार ने हाईकोर्ट में दावा किया कि जानी-मानी हस्तियों के स्मारक अथवा प्रतिमा के लिए जगह व पैसे देना सरकार के विशेषाधिकार के तहत आता है। सरकार के इस अधिकार पर कोर्ट में सवाल नहीं उठाए जा सकते है।

हाईकोर्ट में ठाकरे के स्मारक के लिए महापौर बंगले की जमीन दिए जाने के विरोध में दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता भगवानजी रयानी की गैर सरकारी संस्था जन मुक्ति मोर्चा की तरफ से दायर की गई है। गुरुवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी।

इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील प्रदीप हवनूर व उदय वारुंजेकर ने खंडपीठ के सामने कहा कि हाल ही में सरकार ने ठाकरे स्मारक के लिए 100 करोड रुपए देने का फैसला किया है। इस फैसले को वे चुनौती देना चाहते हैं, इसलिए उन्हें याचिका में बदलाव करने की अनुमति प्रदान की जाए। क्योंकि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सारी व्यवस्था का इस्तेमाल एक निजी व्यक्ति के लिए किया जा रहा है। सरकार सौ करोड़ रुपए की रकम दूसरे महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए कर सकती है। 

इस पर राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने कहा कि यह सरकार का विशेषाधिकार है कि वह स्मारक के लिए कितनी जमीन व रकम आवंटित करती है। किस व्यक्ति कि प्रतिमा या स्मारक बनाना है, यह तय करना सरकार का अधिकार है। सरकार के इस फैसले को लेकर कोर्ट में सवाल नहीं उठाए जा सकते है।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका में 100 करोड़ रुपए के मुद्दे को शामिल करने करने की अनुमति दे दी और इस पहलू पर राज्य सरकार व मुंबई महानगरपालिका को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई 12 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी।

इस बीच खंडपीठ ने सरकार के ट्रस्ट बाला साहेब ठाकरे राष्ट्रीय स्मारक समिति को भी नोटिस जारी किया। साल 2017 में यह समिति बनाई गई थी। जिसमें 11 सदस्यों को शामिल किया गया है। खंडपीठ ने इस मामले में समिति से भी जवाब मांगा है। याचिका में मुंबई मनपा के उस निर्णय को भी चुनौती दी गई है जिसके तहत मनपा ने अपनी अचल संपत्ति सालाना एक रुपए के किराए पर लीज पर देने का फैसला किया है। 

Created On :   24 Jan 2019 4:57 PM GMT

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