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Mumbai News: नासिक किसानों की अधिग्रहित भूमि का ब्याज सहित मुआवजा चुकाएं, बिना सुनवाई हिरासत में रखना ट्रायल से पहले सजा जैसा

- एनएचएआई को नासिक के किसानों की अधिग्रहित भूमि का चार महीने के अंदर ब्याज सहित मुआवजा चुकाने का दिया निर्देश
- बिना सुनवाई के कैदी को हिरासत में रखना ट्रायल से पहले की सजा के बराबर है
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को नासिक के किसानों की अधिग्रहित भूमि का चार महीने के अंदर ब्याज सहित मुआवजा चुकाने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि भारत संघ बनाम तरसेम सिंह में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून इस मामले में लागू है और सभी याचिकाकर्ताओं को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के प्रावधानों के समान ब्याज और क्षतिपूर्ति के वैधानिक लाभ प्राप्त करने का अधिकार मिला है। न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ ने कहा कि हम ने संविधान के अनुच्छेद 144 का भी उल्लेख किया है, जिसमें यह प्रावधान है कि भारत के क्षेत्र में सभी प्राधिकरण, नागरिक और न्यायिक सुप्रीम कोर्ट की सहायता के लिए कार्य करेंगे। हम वैकल्पिक उपाय के आधार पर याचिकाओं की स्थिरता पर आपत्ति को खारिज करते हैं और एनएचएआई को निर्देश देते हैं कि वह याचिकाकर्ताओं को चार महीने के भीतर तरसेम सिंह में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार क्षतिपूर्ति और ब्याज के वैधानिक लाभ का भुगतान करें। पीठ ने कहा कि हम इस दुर्भाग्यपूर्ण तर्क को अस्वीकार करते हैं कि इन याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के पास अधिनियम की धारा 37 के तहत एक वैकल्पिक उपाय है। 4 मई 2023 के एक सामान्य निर्णय और आदेश में इनका निपटारा कर दिया गया था। इस निर्णय और आदेश में नासिक के प्रधान जिला न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत थे कि वे तरसेम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार क्षतिपूर्ति और ब्याज के हकदार थे। इस निर्णय और आदेश में दर्ज है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने भी तरसेम सिंह के मामले में निर्णय की तारीख से क्षतिपूर्ति का भुगतान करने की इच्छा व्यक्त की। एनएचएआई की ओर से पेश हुए वकील संभाजी खरटमोल ने जवाब में हलफनामा दाखिल किया, जिसमें उन्होंने दलील दी कि इन याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि सभी याचिकाकर्ताओं के पास मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 37 के तहत वैकल्पिक उपाय है। यदि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा तरसेम सिंह के मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार क्षतिपूर्ति और ब्याज का भुगतान न किए जाने से प्रभावित हैं, तो याचिकाकर्ता को सभी आवश्यक दस्तावेजों सहित सक्षम प्राधिकारी के समक्ष तुरंत दावा दायर करना चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि वह क्षतिपूर्ति और ब्याज पाने का हकदार है, लेकिन याचिकाकर्ता ने उपाय का लाभ उठाए बिना सीधे याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जो कानून की स्थापित स्थिति के खिलाफ है। इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका को खारिज किया जाना चाहिए
बिना सुनवाई के कैदी को हिरासत में रखना ट्रायल से पहले की सजा के बराबर है....बॉम्बे हाई कोर्ट
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि बिना सुनवाई के कैदी को हिरासत में रखना ट्रायल से पहले की सजा के बराबर है। हम नियमित रूप से ऐसे मामलों से निपटते हैं, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं और जेलों की स्थितियों से भी समान रूप से अवगत है। अदालत ने 2018 में अपने भाई की हत्या के आरोपी को जमानत दे दी। मालवणी पुलिस ने मां की शिकायत पर उसे गिरफ्तार किया था। वह आर्थर रोड जेल में बंद था। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकलपीठ ने विकास चंद्रकांत पाटिल की जमानत याचिका पर अपने फैसले में कहा कि अदालत को संतुलन बनाने की जरूरत है। आज कल मुकदमों को पूरा होने में बहुत समय लग रहा है और जेलों में अधिक भीड़ भाड़ है। वह नियमित रूप से ऐसे मामलों से निपटती है, जहां विचाराधीन कैदी लंबे समय से हिरासत में हैं और जेलों की स्थितियों से भी वह समान रूप से अवगत है। पीठ ने आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मुंबई आर्थर रोड जेल में क्षमता से 6 गुना से अधिक की भीड़ भाड़ है। केवल 50 कैदियों को रखने के लिए स्वीकृत प्रत्येक बैरक में आज की तारीख में 250 कैदी हैं। न्यायमूर्ति जाधव ने टिप्पणी की कि इस तरह की असंगति हमें इस प्रस्ताव का उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है। अदालतें दो ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे पा सकती हैं? ये विचाराधीन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित मामले हैं, जिन्हें लंबे समय तक जेल में रखा गया है, जो उनके त्वरित न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करते हैं। पीठ ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए एक लेख "प्रूफ ऑफ गिल्ट" का उल्लेख किया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों की लंबी कैद पर सवाल उठाया गया था। उन्होंने कहा था कि केवल लंबी कैद जमानत के लिए एक पूर्ण प्रस्ताव नहीं हो सकती है, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर त्वरित सुनवाई के अधिकार के साथ विचार करने की आवश्यकता है। जाधव ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र की व्यापक धारणा है कि किसी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक कि उसे दोषी साबित न कर दिया जाए, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता, चाहे कानून कितना भी सख्त क्यों न हो। वर्तमान मामले में आरोपी छह साल से अधिक समय से जेल में है और निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने या समाप्त होने की कोई स्पष्ट संभावना नहीं है। ऐसे में आरोपी को जमानत दिया जाना चाहिए।
Created On :   11 May 2025 9:45 PM IST