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एकता और भाईचारे की मिसाल हैं अमरावती के 'खर्डा और सोनेगांव'

डिजिटल डेस्क,अमरावती। आज के इस युग में शायद ही कोई ऐसा शहर या गांव होगा, जहां विवाद नहीं होता। हम आपको आज ऐसे दो गांवों के बारे में बताने जा रहे है जिनका विवाद नाम के शब्द से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इन दोनों गांवों के बीच मानो प्रेम की गंगा बहती हो।
अमरवती के धामणगांव रेलवे तहसील में वो दो गांव हैं जहां कभी विवाद नहीं होता। स्थितियां चाहे जो हो इन दोनों गांवों के लोग कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते हैं। एकता, भाईचारा और आपसी सद्भावना के साथ इन दोनों गांवों के लोग सालों से एक-दूसरे के साथ दे रहे हैं। ग्राम पंचायत भले ही एक हो किंतु दोनों जुड़वा गांवों का इतिहास काफी दिलचस्प है। दोनों गांवों के बीच से चंद्रभागा नदी बहती है। कोल्हा नाला के कारण दोनों गांवों में आधा किमी की दूरी है, लेकिन किसी भी एक गांव पर संकट आता है तो दूसरे गांव के लोग मदद के लिए हाथ आगे बढ़ा देते हैं।
कौन से है वो गांव ?
सोनेगांव एवं खर्डा नामक ये दोनों गांव तहसील में मशहूर हैं। सोनेगांव एवं खर्डा इन दोनों गांवों का अपना ही एक इतिहास है। सोनेगांव में जहां अनाज रखने के लिए जमीन के अंदर कई कोठार (जिसमें अनाज संग्रहित कर रखा जाता है और स्थानीय भाषा में जिसे पेव कहा जाता है) बनाए गए हैं तो वहीं खर्डा गांव की पहचान भगवान के घंटा के रूप में बनी हुई है। 3 हजार की आबादी वाला ग्राम सोनेगांव और खर्डा अब तक कई संकटों से गुजर चुका है, लेकिन दोनों गांवों की एकजुटता के कारण कोई संकट ज्यादा दिनों तक नहीं रहा। साल 1973 में पड़े सूखे से सबसे ज्यादा नुकसान सोनेगांव में रहने वाले ग्रामीणो को हुआ। गांव में अनाज न होने के कारण नागरिकों का इस गांव में रहना मुश्किल हो गया। इसी कारण उस समय सूखे की स्थिति से निपटने के लिए अनाज का भंडारण कर उसे बरसों तक सुरक्षित रखने की दृष्टि से बड़े पैमाने पर जमीन के भीतर अनाज के कोठार (पेव) तैयार किए गए।
कुछ साल पहले ग्रामीणों को सूखे का सामना करना पड़ा। अधिक उत्पादन होने पर सरकार की ओर से लेवी वसूल की जाती थी। चार अनाज के बोरों में तीन बोरे सरकार जमा करवाती थी। उस समय जमीनदार जमीन के अंदर मिट्टी की दीवार बनाकर अनाज का भंडारण करने का काम करते थे तथा गांव को अनाज की आपूर्ति करते थे। बदलते समय के साथ शहर में अनाज भंडारण के लिए गोदाम उपलब्ध होने से कोठार बीते समय का इतिहास बन गए।
लोगों में नहीं भेदभाव
सोनेगांव से ही सटे ग्राम खर्डा में वर्षा ऋतु में चंद्रभागा नदी में बाढ़ के कारण गांव में पानी घुस जाता था। इसके कारण अनेक परिवार विस्तापित हुए। जिन लोगों के घरों में पानी घुस जाता था, उन्हें आश्रय देने के लिए दौड़ने वाले गांव के रूप में खर्डा गांव की पहचान है। लोगों से चंदा एकत्र कर यहां पर अवधूत महाराज मंदिर का निर्माण कार्य नए रूप से किया जा रहा है। मान्यता है कि इस गांव के मंदिर में अचानक घंटा बजने पर कुछ आपत्ति आती है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे पहले सर्पदंश के शिकार हुए वामनराव पांडव, शेख रशीद, पंढरी मोलक, बेबी पांडव, संतोष बोरकर यहां के अवधूत महाराज के आशीर्वाद से ही अच्छे हुए हैं। यहां पर गोकुल अष्टमी के दूसरे दिन तथा गुढ़ीपाडवा, रामनवमी उत्सव मनाया जाता है। सभी गांववासी जातिभेद न देखते हुए उत्सव में शामिल होते हैं।
Created On :   16 Aug 2017 12:18 PM IST