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फडणवीस बोले - सुप्रीम कोर्ट का फैसला आघाडी सरकार को करारा तमाचा, शिवसेना ने उठाया सवाल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सुप्रीम कोर्ट की ओर से भाजपा के 12 विधायकों को निलंबित किए जाने के फैसले को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद विपक्ष सत्ताधारी महाविकास आघाड़ी सरकार पर हमलावर हो गया है। शुक्रवार को गोवा में विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला महाविकास आघाड़ी सरकार के असंवैधानिक कृति पर करारा थप्पड़ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह साबित हुआ है कि सदन चलाते समय बहुमत का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निलंबित 12 विधायकों पर फैसला लेने के लिए विधानसभा को एक मौका दिया था। लेकिन अंहकारी सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया। साजिश के तहत 12 विधायकों का निलंबन करने वालों का पर्दाफाश होना चाहिए। सरकार को 12 विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र की जनता से माफी मांगनी चाहिए। फडणवीस ने कहा कि हम मानते हैं कि विधानमंडल में अदालत का दखल नहीं होना चाहिए। लेकिन जब-जब संविधान का उल्लंघन होगा तब-तब अदालत का हस्तक्षेप होगा। फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 12 विधायकों के निलंबन को निरस्त कर दिया है। निलंबित विधायक अब विधानसभा सदन की कार्यवाही में भाग लेने के लिए पात्र हो गए हैं। फडणवीस ने कहा कि विधानसभा के 12 विधायकों का निलंबन और विधान परिषद में राज्यपाल कोटे की रिक्त 12 सीटों पर नियुक्ति का मामला अलग-अलग है। इन दोनों मामले से एक-दूसरे का कोई संबंध नहीं है।
सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करके अगला कदम उठाएगी- परब
प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करके कानून विशेषज्ञों से चर्चा के बाद अगला कदम उठाया जाएगा। परब ने कहा कि इससे पहले कभी विधानमंडल के कामकाज में अदालत का हस्तक्षेप नहीं हुआ था। परब ने कहा कि 12 विधायकों का निलंबन यदि असंवैधानिक है तो विधान परिषद में राज्यपाल कोटे की 12 सीटों पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा नियुक्ति न किया जाना भी असंवैधानिक है। क्योंकि विधान परिषद की सीटें भी छह महीने से अधिक समय से रिक्त हैं। परब ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सदन में हंगामा करने वाले विधायकों में डर नहीं रह जाएगा। क्योंकि विधायकों को लगेगा कि उनका निलंबन छह महीने से अधिक समय के लिए नहीं किया जा सकेगा। जबकि प्रदेश के अल्पसंख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विधानमंडल सचिवालय अध्ययन करेगा। इसके बाद अंतिम फैसला विधानसभा अध्यक्ष करेंगे। वहीं प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंढे ने कहा कि भाजपा के निलंबित 12 विधायकों को तकनीकी रूप से राहत मिली है। लेकिन यह उनकी नैतिक हार है।
केवल भाजपा के लोगों को ही क्यों मिलती है अदालत से राहत- राऊत
शिवसेना सांसद संजय राऊत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अदालत से राहत केवल भाजपा से जुड़े लोगों को क्यों मिलती है? यह शोध और चिंतन का मुद्दा है। राऊत ने कहा कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधान परिषद में राज्यपाल कोटे के 12 विधायकों के नियुक्ति के फाइल को दबा कर रखा है। यह संविधान का उल्लंघन नहीं है क्या? अदालत को इस बारे में भी कुछ टिप्पणी करनी चाहिए। राऊत ने कहा कि विधान परिषद में राज्यपाल कोटे के 12 विधायकों की नियुक्ति का मामला भी विधानमंडल से जुड़ा है। इसलिए विधानसभा में 12 विधायकों के निलंबन और विधान परिषद में 12 विधायकों की नियुक्ति का मामला एक ही है। राऊत ने कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के सांसदों को निलंबित किया गया था। लेकिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली थी।
लड़ाई जारी रहेगी- भास्कर जाधव
विधानसभा के तत्कालीन तालिका अध्यक्ष तथा शिवसेना विधायक भास्कर जाधव ने कहा कि मुझे निजी रूप से लगता है कि यह लड़ाई शुरू रहेगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला विधानसभा को लागू करना अनिवार्य है अथवा नहीं, इसको लेकर दावे और प्रतिदावे सामने आ सकते हैं। जाधव ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 12 विधायकों का निलंबन रद्द मान लिया जाएगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद चर्चा शुरू होगी कि क्या अदालत ने विधानमंडल के कामकाज में हस्तक्षेप किया है? जाधव ने कहा कि नियमों के अनुसार किसी विधायक का निलंबन वापस लेने के लिए सरकार को विधानसभा में प्रस्ताव रखना पड़ता है। इसके बाद यदि सदन की सहमति होती है तब विधानसभा अध्यक्ष संबंधित विधायक के निलंबन को वापस लेने की घोषणा करते हैं। जाधव ने कहा कि विधानसभा सदन में किस विधायक को प्रवेश देना है। इस पर फैसला लेने का अधिकार केवल विधानसभा अध्यक्ष के पास होता है।
Created On :   28 Jan 2022 10:30 PM IST