तुंबा के सहारे नदी पार करते हैं किसान - बाढ़ में बहने से होती है मौत

Farmers cross river with the help of Tumba - death due to flood
तुंबा के सहारे नदी पार करते हैं किसान - बाढ़ में बहने से होती है मौत
तुंबा के सहारे नदी पार करते हैं किसान - बाढ़ में बहने से होती है मौत

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/सौंसर। तुंबा तुंबी यह लौकी एक देशी प्रजाति है जो आदिवासी अंचल के किसान अपने खेतों के आसपास खाली जमीन पर उगाते हैं। इसका आकार सुराही जैसा होता है। इसे गरीब किसान सब्जी का विकल्प मानते हैं इससे कहीं ज्यादा इसका उपयोग अन्य कामों होता है। सुराही आकार लौकी के सूखने पर इसके अंदर का गूदा और बीज निकालकर किसान इसमें बीज या अन्य सूखी सामग्री रखते हैं। बारिश में सूखी लौकी किसानों के लिए नदी नाले पार करते समय लाइफ जैकेट का काम करती है। बारिश के दिनों में कई गांवों के किसान तुंबा के सहारे ही नदी पार कर रहे हैं।
सौंसर विकासखंड मूलत: कृषि बाहुल्य क्षेत्र है, क्षेत्र में चार प्रमुख नदियां हैं। नदी किनारे के गांवों में ज्यादातर किसानों की खेती नदी के दूसरे पार है। बारिश में खेतों तक पहुंचने के लिए उफनती नदी को पार करना किसानों की मजबूरी होती है। बाढ़ के तेज बहाव में बहने की प्रति वर्ष होने वाली इन घटनाओं में पीडि़त परिवार को क्षतिपूर्ति राशि मिल जाती है, लेकिन किसानों की इस समस्या की अनदेखी हो रही हैं। बारिश में किसान व मजदूर कन्हान, सोबना, जाम व सर्पा नदी पार कर खेत पहुंचते हंै। इस में बाढ़ में नदी पार करने वालों की बड़ी संख्या कन्हान नदी में होती है। इस नदी में लंबे समय तक बाढ़ बनी रहने से किसान व मजदूर नदी पार करने तूंबे का सहारा लेते है। कई बार यह जुगाड़ जान पर बन आता है। तंबा रहने के बावजूद बीते वर्ष तेज बहाव निमनी का एक किसान की बहने से मृत्यु हो गई थी।  सामाजिक कार्यकर्ता अंकित धामनकर का कहना है कि समस्या के लिए जनप्रतिनिधि व प्रशासन दोनों जिम्मेदार है।
बीते साल पांच की मृत्यु
बीते वर्ष बाढ़ में बहने से पांच किसानों की मृत्यु हुई है। निमनी में कन्हान नदी में दो व बानाबाकोड़ा के जाम नदी में दो किसान, नंदेवानी मार्ग पर सर्पा नदी में एक किसान की बहने से मृत्यु हुई है। राकेश बनाईत का कहना है कि पीडि़त परिवारों को क्षतिपूर्ति के चेक बांट कर जनप्रतिनिधि वाहवाही लूटकर समस्या को भूल जाते है।
सुरक्षित नहीं नाव
निमनी में करमाकडी मार्ग पर नदी में बाढ़ कम होने के बाद लकड़ी की नाव का उपयोग किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे डोंगा कहते है। बड़े पेड़ के दो बड़े लठ्ठे को काटकर बनाई जाने वाली छोटी नाव असुरक्षित होती है, किसान व मजदूर इससे नदी पार करते है।
क्या कहते है किसान
किसानों का कहना है कि बारिश में नदी पार करने के लिए प्रशासन कोआवश्यक संसाधन की व्यवस्था करना चाहिए। किसान महादेव गोदेवार का कहना है बारिश के चार माह के लिए नदी पार करने नाव की व्यवस्था बनानी चाहिए। किसान योगीनाथ लामसे का कहना है कि नदी पार करने के लिए सुरक्षा उपकरणों की व्यवस्था बनानी चाहिए।  
इनका कहना है
किसानों की इस समस्याओं से बीते वर्ष ही अवगत हुआ था। किसानों की इस समस्या का निराकरण कैसे किया जाए इस संबंध में तकनीकी जानकारों से जानकारी ली जा रही है।  इसके बाद क्या व्यवस्था बनाई जा सकते है, इस संबंध में प्रयास करूंगा।
-विजय चौरे विधायक

Created On :   7 Aug 2020 12:49 PM GMT

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