80 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने कानून बनाएगी उद्धव सरकार, जानिए कैसा रहा अखबार प्रबंधन से सीएम तक का सफर 

Government will make law to provide 80 percent employment for local people
80 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने कानून बनाएगी उद्धव सरकार, जानिए कैसा रहा अखबार प्रबंधन से सीएम तक का सफर 
80 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देने कानून बनाएगी उद्धव सरकार, जानिए कैसा रहा अखबार प्रबंधन से सीएम तक का सफर 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य में शिवसेना के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के लिए तीनों दलों ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम जारी किया है। नौकरियों में 80 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को देने के लिए नई सरकार कानून बनाएगी। महाराष्ट्र विकास आघाडी ने कहा है कि हमारी सरकार धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करेगी। न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शिवसेना की 10 रुपए वाली थाली को भी स्थान मिला है। इसमें धर्मनिरपेक्षता को प्रमुखता से शामिल किया गया है। गुरुवार को रंगशारदा में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बाला साहेब थोरात, शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे और प्रदेश राकांपा अध्यक्ष जयंत पाटील ने तीनों दलों द्वारा गठित ‘महाराष्ट्र विकास आघाडी’ का न्यूनतम साझा कार्यक्रम पेश किया। शिवसेना नेता शिंदे ने कहा कि कारखानों में 80 फीसदी रोजगार देने के लिए हमारी सरकार कानून बनाएगी। मुस्लिम आरक्षण के सवाल पर थोरात ने कहा कि इस बारे में विचार किया जाना है।   
न्यूनतम साझा कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु

•    महाविकास आघाडी सरकार का प्रत्येक निर्णय भारतीय संविधान के मूल्य व तत्व पर आधारित होगा।
•    भाषा, जाति, धर्म आदि को लेकर किसी तरह का नहीं होगा भेदभाव। 
•    राज्य मंत्रिमंडल में समन्वय और आघाडी के भागीदार दलों के बीच समन्वय के लिए दो अलग-अलग समन्वय समितियां बनाई जाएंगी। 
•    तहसील स्तर पर एक रुपया क्लिनिक शुरु होगा
•    सभी जिलों में चरणबद्ध तरीके से मेडिकल कालेज व सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनेंगे।
•    आईटी नीति में होगा संशोधन
•    अल्पसंख्य़क समाज के सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक पिछड़ापन दूर करने के लिए सरकार विभिन्न योजनाओं पर अमल करेगी।
•    आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों की बेटियों को मुफ्त कालेज शिक्षा 
•    आगनवाडी सेविकाओं की सुविधाओं-मानधन में बढ़ोतरी
•    खेत मजदूरों की लड़कियों की उच्चशिक्षा के लिए शून्य फीसदी व्याजदर पर मिलेगा कर्ज
•    मुख्यमंत्री सड़क योजना की तर्ज पर मुख्यमंत्री शहर सड़क योजना। सभी नगरपरिषद, नगरपालिका, नगर पंचायत व महानगर की सड़कों के लिए आर्थिक प्रावधान
•    मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में झोपडपट्टी पुनर्वसन योजना (एसआरए) में 300 वर्गफिट की बजाय 500 वर्गफिट के घर
•     आपदा प्रभावित किसानों की मदद के लिए होगा प्रयास 
•    महानगर और जिला मुख्यालयों पर कामकाजी महिलाओं के लिए वर्किंग वुमन हास्टल का होगा निर्माण 

 

अखबार प्रबंधन से सीएम की कुर्सी तक का सफर 


29 वें मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनेवाले शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे का राजनीतिक सफर कई मायने में अनूठा है। पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ के प्रबंधन से शिवसेना का नेतृत्व संभालने के बाद अब वे देश के सबसे समृद्धिशाली राज्यों में शुमार महाराष्ट्र की कमान संभालेंगे। शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बालासाहेब और मीनाताई ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव संवैधानिक पद संभालने वाले ठाकरे परिवार के पहले व्यक्ति हैं। 60 वर्षीय उद्धव ने मुख्यमंत्री पद संभालने से पहले कोई चुनाव नहीं लड़ा और कभी किसी सदन के सदस्य नहीं रहे।  27 जुलाई 1960 को मुंबई में जन्मे उद्धव ने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वह एक प्रकाशित लेखक और पेशेवर फोटोग्राफर भी हैं। उनकी फोटोग्राफी पर कई किताबे प्रकाशित हो चुकी हैं। उद्धव की फोटो पुस्तक "महाराष्ट्र देशा’ (2010) में उनके द्वारा निकाली गई फोटो का संग्रह है। इनकी एक अन्य फोटो पुस्तक "पहावा विठ्ठल" (2011) में ग्रामीण महाराष्ट्र के विभिन्न पहलुओं और पंढरपुर वारी तीर्थयात्रा के दौरान वारकरियों के चित्र शामिल हैं। 

बीएमसी चुनाव से शुरु हुआ राजनीतिक सफर

शुरुआत में उद्धव की राजनीति में रुचि नहीं थी। उम्र के चालीस साल तक वे राजनीति से दूर ही रहे। इस लिए बाला साहेब के भतीजे राज ठाकरे को हो उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था। पर बाद में उद्धव ने अपने परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने का फैसला किया। वर्ष 2002 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव के दौरान उन्हें पार्टी के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस चुनाव में शिवसेना ने अच्छा प्रदर्शन किया। यहीं से उनके अपने चचेरे भाई राज ठाकरे से मतभेद भी बढ़े। इसके बाद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने उन्हें 2003 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। 2004 में बाल ठाकरे ने उद्धव को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए उन्हें अगला शिवसेना प्रमुख बनाने का एलान किया। 

निजी जीवन

उद्धव का विवाह एक व्यवसायी माधव पाटनकर की बेटी रश्मि से 13 दिसंबर 1989 को हुई थी। शादी के बाद दोनों के दो बेटे आदित्य और तेजस हुए। आदित्य जहां दादा बालासाहेब और पिता उद्धव ठाकरे के नक्शे कदम पर चलते हुए कम उम्र में ही राजनीति में आ गए, वहीं तेजस इससे ठीक उलट लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करते हैं। आदित्य ठाकरे परिवार के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने चुनावी मैदान में कदम रखा और मुंबई कि वर्ली विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। बाल ठाकरे के तीन बेटों बिंदु ठाकरे, जय देव ठाकरे व उद्धव ठाकरे में उद्धव ही राजनीति में सक्रिय हुए। उनके बड़े भाई बिंदु की 1996 में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। जबकि जयदेव ठाकरे व उद्धव के बीच संपत्ति को लेकर मुकदमा भी चल चुका है।    

बाल ठाकरे के बाद शिवसेना को संभालने में रहे सफल

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद समझा जा रहा था कि उद्धव को अपने चचेरे भाई राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की चुनौती से जुझना पड़ेगा। लेकिन उद्धव बाला साहेब के बाद पार्टी को संभालने में सफल हुए। 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद हुए मुंबई मनपा चुनाव और लोकसभा-विधानसभा चुनावों में उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना मजबूत हुई। उनकी तुलना में राज ठाकरे का राजनीतिक कैरियर आगे नहीं बढ़ सका। अब मुख्यमंत्री पद संभालने के साथ ही पार्टी की ‘रिमोट कंट्रोल' राजनीति से बाहर आकर सीधे सत्ता चलाने की जो रीति उद्धव ने चलाई है, उस पर पूरे महाराष्ट्र की नजरें टिकी रहेंगी।  
 

Created On :   28 Nov 2019 10:07 PM IST

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