हाईकोर्ट : सुधारगृहों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकती सरकार, समय पर फैसला दे निचली अदालतें

Govt cannot escape responsibility of providing security to reform houses- HC
हाईकोर्ट : सुधारगृहों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकती सरकार, समय पर फैसला दे निचली अदालतें
हाईकोर्ट : सुधारगृहों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकती सरकार, समय पर फैसला दे निचली अदालतें

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने सुधार गृह में रह रहे मानसिक रुप से कमजोर बच्चों को लेकर चिंता व्यक्त की है। हाईकोर्ट ने कहा कि मानसिक न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता संगीता पुणेकर की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही और राज्य के महिला व बाल विकास विभाग के सचिव को मुंबई के मानखुर्द सुधारगृह (एमडीसी होम) के संबंध में उठाए गए कदमों को लेकर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने कहा कि सरकार सुधारगृह को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। याचिका में मुख्य रुप से सुधारगृह को सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने  व मुंबई के मानखुर्द इलाके में सुधारगृह के लिए रखी गई जमीन पर अतिक्रण को रोकने  का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि कुछ लोग चिल्ड्रन ऐड सोसायटी के साथ मिलकर मानखुर्द स्थित बालसुधार की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे हैं। इसके साथ ही सुधारगृह में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन अनुदान के मुद्दे को भी उठाया गया है। इससे पहले याचिकाकर्ता की वकील नैना परदेशी ने खंडपीठ को बताया कि मानसिक रुप से कमजोर बच्चों की स्थिति को सुधारने के लिए कोर्ट ने कई आदेश दिए हैं। लेकिन फिर भी मानखुर्द स्थित मानसिक रुप से कमजोर बच्चों के लिए जरुरी सुविधाएं प्रदान करने व वहां पर पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध कराने को लेकर आवश्यक कदम नहीं उठाए गए हैं। 


पत्नि की आत्महत्या मामले में पति की रिहाई सही

जब तक आरोपी के कृत्य व आशय से यह साबित नहीं हो जाता है कि उसकी प्रबल इच्छा थी की मृतक जरुर आत्महत्या करे, तब तक यह नहीं माना जा सकता है कि आरोपी ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था। बांबे हाईकोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पति की रिहाई के आदेश को कायम रखते हुए यह बात स्पष्ट की। आरोपी पति प्रदीप भोइटे व उसकी मां को सातारा कोर्ट ने इस मामले से बरी किया था। जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के आर श्रीराम के सामने मामले की सुनवाई हुई। सरकारी वकील ने न्यायमूर्ति के सामने कहा कि भोइटे की पत्नी रत्नाबाई 16 साल से उसके साथ रह रही थी। उसके तीन बच्चे थे। भोइटे अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह करता था। इसके साथ वह उसकी पिटाई व बदसलूकी भी करता था। जिससे तंग आकर वह 29 दिसंबर 2000 को खुद पर मिट्टी की तेल डालकर आग लगा आत्महत्या कर ली थी। 84 प्रतिशत जल जाने के चलते रत्नाबाई की अस्पताल में मौत हो गई थी। मौत से पहले रत्नाबाई ने दो बयान दिए थे। जो दर्शाते हैं कि आरोपी ने अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया था। इन दलीलों व मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि जब रत्नाबाई जल रही थी तो उसका पति उसे बचाने के लिए गया था। वह भी 17 प्रतिशत जल गया था। रत्नाबाई के 13 साल के बेटे ने भी आरोपियों द्वारा रत्नाबाई को प्रताड़ित करने की बात का खंडन किया है। जहां तक बात रत्नाबाई के मौत से पहले दिए गए बयान की है तो उससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि आरोपियों ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया है। चूंकी रत्नाबाई का पति एक साल से बेरोजगार था। जिससे उसे घर चलाने में दिक्कत हो रही थी और वह हताश थी। संभव है इसी के चलते उसने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया हो। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने कहा कि हमे इस मामले में निचली अदालत का फैसला सही नजर आ रहा है इसमें हस्तक्षेप की जरुरत नहीं महसूस होती है यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। 

समय पर कोर्ट में  बैठे और फैसला दे निचली अदालतों के न्यायाधीश-हाईकोर्ट

बांबे हाईकोर्ट ने राज्य के सभी निचली अदालतों के न्यायाधीशों को समय पर अपने स्थान पर बैठने का निर्देश जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीश अपने कार्यावधि से जुड़े समय का खास ध्यान रखे साथ ही यह सुनिश्चित करे की उनके द्वारा दिए जानेवाले फैसले समय पर अपलोड किए जाए। फैसले देने में देरी न की जाए।  हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग के निर्देश पर कोर्ट के रजिस्ट्रार एसजी दिघे (अपीलेट) ने सभी जिलों के प्रधान न्यायाधीशों व सत्र न्यायालय के न्यायाधीशों को ईमेल के जरिए इन निर्देशों की जानकारी भेजी है। मुख्य न्यायाधीश की ओर से जारी किए गए निर्देशों में कहा गया है कि ऐसा पाया गया है कि निचली अदालतों के न्यायाधीश कोर्ट में समय पर अपने स्थान पर नहीं बैठते है। कई बार तो वे शाम को कार्य का समय समाप्त होने से पहले ही कोर्ट से उठ जाते है। अक्सर यह भी देखा गया है कि न्यायाधीश फैसला देने के बाद भी लंबे समय तक फैसला काफी देरी से अपलोड होते है। किसी न किसी कारण से गवाहों के बयान समय पर नहीं दर्ज किए जाते है। जिससे लोगों को पूरा दिन अदालत में इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा न्यायिक अधिकारी संबंधित वरिष्ठ अधिकारी को जानकारी दिए बिना ही अदालत से निकल जाते है। इसके मद्देनजर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश  ने सभी जिले के न्यायाधीशों को सुबह 11 बजे कोर्ट में बैठने, कार्यावधि के समय का पालन करने, समय पर फैसले को अपलोड करने, गवाहों के बयान समय पर दर्ज किए जाने,यदि तय तारीख को गवाह के बयान को दर्ज किया जाना संभव न हो तो उसे तुरंत अगले दिन का तारीख  देने।,वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोर्ट में बैठने की जगह उपलब्ध कराने संबंधी  निर्देश जारी किए है। इन निर्देशों की प्रति जिले प्रधान न्यायाधीशों व सत्र न्यायाधीशों को भी भेजी गई है। 

Created On :   9 Jan 2020 8:26 PM IST

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