पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर तत्काल करें सुनवाई

Grabbing jobs on basis of fake caste certificate, Case hearing in Supreme Court
पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर तत्काल करें सुनवाई
राज्यों ने लगाई गुहार पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर तत्काल करें सुनवाई

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के मानदंडों में असपष्टता के कारण कई नियुक्तियां रुकी होने के कारण मंगलवार को केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट से पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर तत्काल सुनवाई का आग्रह किया। कोर्ट ने मामले को 5 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया है। इस वक्त में राज्यों को अपनी तरफ से उन बातों की सूची तैयार करने को कहा है जिनको लेकर कानूनी अड़चनें आ रही हैं। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की पीठ के समक्ष विभिन्न राज्यों से दायर कुल 133 याचिकाओं आज सूचीबद्ध किया गया था। सुनवाई के दौरान राज्यों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अदालत को बताया कि विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों की वजह से काफी विरोधाभास पैदा हुआ है। पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित अनसुलझे मुद्दों के कारण हजारों सरकारी पदों पर कई नियुक्तियां रुकी हुई हैं। कोर्ट ने सभी राज्यों से उनको क्या-क्या कानूनी अड़चनें आ रही है, यह पूछते हुए कहा कि वे 5 अक्टूबर तक इसे तैयार करने को कहा।   

गौरतलब है कि नागराज मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2006 के अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी समुदाय के लोगों को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने से पहले उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में मात्रात्मक डेटा मुहैया कराना आवश्यक है। 2018 में पांच जजों की पीठ ने प्रमोशन में आरक्षण 2006 के फैसले को कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा था कि इस पर फिर से विचार करने की जरुरत और आंकड़े जुटाने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही साफ कर दिया था कि राज्य चाहे तो पदोन्न्ति में आरक्षण का फैसला ले सकती है।

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अपनी दलील में कहा कि एम नागराज फैसले में उल्लिखित निर्देशों को सभी राज्य सरकारों द्वारा लागू नहीं किया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने पीठ के सामने कहा कि नागराज के फैसले में कई असप्ष्टताएं मौजूद हैं, क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा फैसले के अनुसार कोई दिशानिर्देश तैयार नहीं किया गया था। वरिष्ठ वकील जयसिंह ने कहा कि विभिन्न न्यायलय पदोन्नति में आरक्षण पर राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए दिशा निर्देशों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और ऐसे कई दिशानिर्देशों को भी रद्द कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों में एकरुपता नहीं है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षित पदों को गैर आरक्षित किया है और तदनुसार आरक्षित श्रेणियों के लोगों के साथ पदों को भर दिया गया

फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हथियाने का मामला

महाराष्ट्र में ऐसे हजारों मामले हैं, जिन्होंने फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी हथिया ली है। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस मामले से संबंधित याचिकाओं पर (45 याचिकाओं का बंच) सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में दी गई जानकारी के मुताबिक राज्य में फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हथियाने वाले 11400 से भी अधिक मामले हैं। यह नौकरियां अनुसूचित जनजाति के फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर हथिया ली गई है। इन्हीं मामलों को देख रहे सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील सुहास कदम ने बताया कि राज्य के विशेषत: विदर्भ, खानदेश और कुछ मराठवाड़ा के जिलों में ठाकुर जाति के लोग है, जो आदिवासी में नहीं आते है, लेकिन इस जाति के कईयों ने महानगर पालिका, जिला परिषद और अन्य महकमें में एसटी का फर्जी प्रमाणपत्र बनाकर नौकरियां हासिल की है। हालांकि जाति वैधता प्रमाणपत्र समिति ने भी उनके जाति प्रमाणपत्रों को अवैध घोषित किया है।  

Created On :   14 Sept 2021 3:16 PM IST

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