ऑटोनॉमस एजूकेशन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर्स के तबादले को हाईकोर्ट ने माना सही

HC accepted transfer of professors of autonomous educational institute
ऑटोनॉमस एजूकेशन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर्स के तबादले को हाईकोर्ट ने माना सही
ऑटोनॉमस एजूकेशन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर्स के तबादले को हाईकोर्ट ने माना सही

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में साफ किया है कि कॉलेज को स्वायत्ता मिलने से पहले नियुक्त किए गए प्रोफेसर सरकारी कर्मचारी है। लिहाजा सरकार इनका तबादला कर सकती है। हाईकोर्ट ने पुणे इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी स्वायत्त संस्थान  के सहायक प्रोफेसरों की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। सरकार ने प्राशकीय आधार पर पुणे के स्वायत्त इंजीनियर संस्थान के 21 सहायक प्रोफेसरों का तबादला दूसरे कालेज में किया था। इस संबंध में सरकार ने 30 मई 2018 को शासनादेश जारी किया था। जिसके खिलाफ प्रोफसरों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में प्रोफेसरों ने दावा किया था कि वे जिस इंजीनियरिंग संस्थान में कार्यरत है। उसे सरकार ने स्वायत्तता प्रदान की है। इसलिए सरकार का अब कालेज पर प्रशासकीय नियंत्रण नहीं है। इसलिए सरकार के पास तबादले का आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। याचिका में दावा किया गया था कि याचिकाकर्ता कालेज में अध्यापकों के संघ में सक्रिय थे। इसलिए उनका तबादला किया है।  तबादले के संबंध में सरकार ने दुराशय के तहत निर्णय किया है। इसलिए इसे रद्द कर दिया जाए।

न्यायमूर्ति भूषण गवई व न्यायमूर्ति डीएस नायडू की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एलएम आचार्य ने कहा कि सरकार की ओर से तबादले के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करनेवाले प्रोफेसर्स की नियुक्ति कॉलेज को स्वायत्ता प्रदान करने से पहले की गई थी। यह नियुक्ति सरकार ने महाराष्ट्र राज्य लोक सेवा आयोग के मार्फत की थी। सरकार इन प्रोफेसरों के वेतन का भुगतान करती है। इसके अलावा सरकार ने इंजीनियरिंग कालेज को सीमित स्वायत्तता प्रदान की है। कई सरकारी कालेज में शिक्षकों की कमी है। इसे देखते हुए सरकार ने प्रोफेसरों का तबादले का आदेश जारी किया है। सरकार का अभी भी कालेज पर नियंत्रण है। सरकार ने दूसरे सरकारी कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के मद्दे नजर प्रोफेसरों का तबादले का निर्णय किया है। इसमें सरकार का कोई दुराशय नहीं है। 

इस मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका दायर करनेवाले प्रोफेसर सरकारी कर्मचारी के दायरे में आते है। क्योंकि सरकार ने इनकी नियुक्ति की है। सरकार उनके वेतन का भुगतान भी करती है। इसलिए सरकार के पास इनके तबादले का अधिकार है। दूसरे सरकारी कालेज में शिक्षकों के रिक्त पदों के मुद्दे पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार को तबादले की बजाय रिक्त पदों को भरने पर भी ध्यान देना चाहिए। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने प्रोफेसरों की ओर से दायर की गई याचिकाओं को सारहीन करार देते हुए उन्हें खारिज कर दिया। 

Created On :   16 May 2019 5:54 PM IST

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