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हाईकोर्ट : सिर्फ 10 सदस्य करा सकते हैं को-ऑपरेटिव सोसायटी का पंजीकरण, प्रणय रॉय की याचिका खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में साफ किया है कि सिर्फ दस सदस्य भी को-ऑपरिटव सोसायटी के पंजीयन के लिए पर्याप्त हैं। निर्माण कार्य को पूरा करने वाले भवन निर्माता व प्रमोटर का वैधानिक दायित्व है कि वह कार्य पूरा होने के चार महीने के भीतर जरुरी संख्या के साथ सोसायटी का पंजीयन कराए। इससे पहले विभागीय संयुक्त रजिस्ट्रार ने लोक सेंटर कार्पोरेट पार्क प्रीमाइसेस को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड के पंजीयन को रद्द कर दिया था। रजिस्ट्रार ने बिल्डर की कंपनी की ओर से दायर आवेदन पर सुनवाई के बाद पंजीयन को रद्द किया था। जिसके खिलाफ लोक सेंटर कार्पोरेट पार्क प्रियमाइसेंस को-आपरेटिव सोसायटी लिमिटेड ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि उनकी सोसायटी में कुल 56 ब्लाक थे। इसमें से 44 ब्लाक बेचे जा चुके है। भवन निर्माता ने नौ साल बीत जाने के बाद भी सोसायटी के पंजीयन की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। इसलिए सोसायटी के सदस्यों ने स्वयं मिलकर सोसायटी का पंजीयन कराया है। जिसे बिल्डर की कंपनी ने विभागीय संयुक्त रजिस्ट्रार के सामने चुनौती दी थी। बिल्डर के मुताबिक सोसायटी का उप रजिस्ट्रार ने नियमों के खिलाफ पंजीयन प्रदान किया है। पंजीयन की प्रक्रिया के दौरान सारे सदस्य मौजूद नहीं थे। उप रजिस्ट्रार को बहकाकर पंजीयन हासिल किया गया है। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान के सामने मामले की सुनवाई हुई। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि सारे ब्लाक बिकने और इमारत को कब्जा प्रमाणपत्र (ओसी) मिलने के बाद भी बिल्डर की ओर से नौ साल तक सोसायटी के पंजीयन की दिशा में कदम नहीं उठाया गया। जबकि बिल्डर का यह वैधानिक दायित्व है कि वह सोसायटी का पंजीयन कराए। लेकिन वह अपने दायित्व का निवर्हन करने में विफल रहा है। नियमानुसार सोसायटी के पंजीयन के लिए कम से कम दस सदस्य होने चाहिए। रजिस्ट्रार के आदेश से स्पष्ट होता है कि पंजीयन की प्रक्रिया में 20 लोग शामिल थे। इस लिहाजा से सोसायटी का पंजीयन सही है और इसे रद्द करनेवाले संयुक्त विभागीय रजिस्ट्रार के आदेश को रद्द किया जाता है।
हाईकोर्ट ने खारिज कि प्रणय रॉय की याचिका
बांबे हाईकोर्ट ने एनडीटीवी चैनल के प्रमोटर प्रणॉय रॉय व उनकी पत्नी की ओर से भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड(सेबी) की ओर से जारी की गई नोटिस के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। सेबी की ओर से रॉय को जारी की गई नोटिस में इनसाइड ट्रेडिंग से जुड़े नियमों का कथित तौर पर उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।। सेबी ने रॉय को 31 अगस्त 2018 को नोटिस जारी किया था। याचिका में रॉय ने मांग की थी कि उन्हें वे सारे दस्तावेजों का निरीक्षण करने की अनुमति प्रदान की जाए जिसके आधार पर सेबी ने मुझे नोटिस जारी किया है। याचिका में रॉय ने सेबी की नोटिस को मनमानीपूर्ण व अतार्किक बताया गया था। सोमवार को न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने रॉय की याचिका पर सुनवाई हुई। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान ही खंडपीठ ने इस मामले में रॉय को राहत न देने के संकेत दिए थे। और रॉय के वकील की ओर से दी गई दलीलों को सुनने के बाद कहा था कि यदि याचिकाकर्ता को महसूस होता है कि सेबी के पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है तो वह उसके सामने सुनवाई के लिए उपस्थित हो। यदि सबूत नहीं होंगे तो नोटिस अपने आप खत्म हो जाएगी। सोमवार को भी रॉय के वकील ने सेबी की नोटिस को आधारहीन बताया और कहा कि मेरे मुवक्किल पर लगाए गए आरोपों के संबंध में कोई सबूत नहीं पेश किए गए हैं।
एलपीजी सिलेंडर पर घातक रसायन मामले पर विचार करे मंत्रालय
बांबे हाईकोर्ट ने केंद्रीय पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह एलपीजी सिलेंडर पर लगाए जाने वाले प्राईमर में कथित तौर पर घातक रसायन मिले होने मामले की जांच करे। अदालत नेएक जनहित याचिका पर सुनवाई करते यह आदेश दिया। इस संबंध में पलादीन पेंट एंड केमिकल लिमिटेड कंपनी ने याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि एलपीजी सिलेंडर पर लाल रंग का कलर लगाने से पहले पोते जाने वाले प्राईमर में में जिंक क्रोमेट का इस्तेमाल किया जाता है। कंपनी का दावा है कि यह काफी जहरिला होता है और इससे कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है। याचिका में कहा गया था कि एलपीजी सिलेंडर हर घर में इस्तेमाल किया जाता है इसलिए सिलेंडर के लिए जिंक क्रोमेट के उपयोग पर रोक लगाई जाए। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय इस याचिका को निवेदन के रुप में स्वीकार करे और जल्द से जल्द इस मामले में उचित निर्णय ले। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया।
Created On :   6 Jan 2020 8:35 PM IST