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शिक्षकों के वेतन के लिए बैंक बदलने पर शिक्षामंत्री को फटकार, दूसरे मामले में ACB से पूछा सवाल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने शिक्षकों के वेतन के लिए बैंक में बदलाव को लेकर राज्य के शिक्षा मंत्री विनोद तावडे को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने ठाणे जिले के शिक्षकों के वेतन को ठाणे जनता सहकरी बैंक में भेजने को लेकर सरकार द्वारा 14 जून 2017 को जारी शासनादेश को रद्द कर दिया है। 44 वर्षों से ठाणे जिले के अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों का वेतन ठाणे जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक में भेजा जाता था। शिक्षा विभाग ने 14 जून 2017 को इसे बदल दिया। इसके बाद शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का वेतन ठाणे जनता सहकारी बैंक में जाने लगा था। शिक्षा विभाग के इस निर्णय के खिलाफ दि ठाणे जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक लिमिटेड ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति भूषण गवई व न्यायमूर्ति बीपी कुलाबावाला की खंडपीठ ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि शिक्षा मंत्री ने इस मामले से संबंधित शिक्षा व वित्त विभाग के अधिकारियों से चर्चा किए बगैर ही शिक्षकों के वेतन को दूसरे बैंक में भेजने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही यह निर्णय लेते समय ठाणे जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक लिमिटेड को अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया है। इस लिहाज से यह नैसर्गिक न्याय के सिध्दांत के खिलाफ है। इसके अलावा याचिकाकर्ता के बैंक को क्यों बदला गया है इसको लेकर कोई युक्तिसंगत कारण नहीं दिया गया है। इसलिए शिक्षा विभाग की ओर से 14 जून 2017 को जारी शासनादेश रद्द किया जाता है। गौरतलब है कि पिछले दिनों हाईकोर्ट ने शिक्षा मंत्री को शिक्षकों का वेतन यूनियन बैंक से मुंबई बैंक में भेजे जाने को लेकर फटकार लगाई थी।
एसीबी से पूछा कोर्ट ने सवाल
वहीं दूसरे मामले में बांबे हाईकोर्ट ने राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से जानना चाहा है कि वह घूसखोरी से जुड़ी शिकायतों को संबंधित विभाग तक किस तरह से पहुंचाती है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण वाटेगांवकर की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। याचिका में पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय व नगर विकास विभाग में पार्किंग लाट के आवंटन के दौरान कथित तौर पर भ्रष्टाचार होने के आरोप लगाए गए है। वाटेगावंकर ने खंडपीठ के सामने कहा कि उन्होंने इस विषय पर एसीबी के पास शिकायत भेजी थी। एसीबी ने शिकायत को नगरविकास विभाग के पास भेजा था। इसके बाद शिकायत को खत्म कर दिया गया। इस बात से खिन्न खंडपीठ ने कहा कि आजकल यह स्थिति लगभग सभी मामलों में देखी जा रही है। इसलिए जब भी एसीबी के पास कोई शिकायत आए तो पहले वह विस्तार से जांच करे। फिर कोर्ट को इसकी जानकारी दी। शिकायत सही है या झूठी यह तय करने का काम कोर्ट पर छोड़ दिया जाए। इस दौरान खंडपीठ ने सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे से कहा कि वे अगली सुनवाई के दौरान बताएं कि एसीबी के पास जब सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आती है, तो उसे संबंधित विभाग के पास भेजने के लिए वह कौन सी प्रक्रिया अपनाती है। इसकी जानकारी अगली सुनवाई के दौरान दी जाए।
Created On :   21 Feb 2018 7:42 PM IST