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गाजर घास दे रही है अस्थमा बुखार, दमा रोग को दावत
डिजिटल डेस्क, नागपुर। आईसीएआर-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर द्वारा किए गए सर्वे में यह गंभीर खुलास हुआ है कि नागपुर के अधिकांश क्षेत्रों में गाजर घास का प्रकोप बढ़ रहा है। खाली जगहों के अलावा सड़क किनारे, औद्योगिक क्षेत्रों, घरों के आसपास तथा खाली प्लाट, रेलवे लाइन, उद्यान और पार्क में बड़े पैमाने पर पांव पसार चुकी है। गाजर घास में पाया जाने वाला सेसक्यूटरपीन नामक विषाक्त पदार्थ पशु ही नहीं, मनुष्य के लिए भी खतरनाक है। गाजर घास के लगातार संपर्क में आने से एलर्जी, अस्थमा, बुखार, दमा, आदि लाइलाज बीमारी हो सकती है, जबकि मवेशियों द्वारा चारे के साथ गाजर घास का सेवन करने से उनके दूध में भी कड़वाहट आ जाती है। फसल की अंकुरण क्षमता और वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालता है और अन्य लाभकारी वनस्पतियां नहीं उगतीं। गाजर घास जागरूकता सप्ताह-2021 के दौरान आईसीएआर-राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर द्वारा नागपुर जिले में सर्वे किया गया। गाजर घास को कांग्रेस ग्रास तथा पार्थेनियम के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा सबसे पहले महाराष्ट्र के पुणे में सन 1955 में दिखाई दिया था और अब देश के 35 मिलियन हेक्टेयर में फैल चुका है। यह पौधा 1955 में आयात किए गए गेहूं के साथ भारत पहुंचा था। अब लगभग पूरे देश में और सभी फसलीय क्षेत्रों एवं खेतों तक पहुंच गया है। भारत के अलावा 38 देशों में भी इसका प्रकोप बढ़ रहा है।
गाजर घास लगभग 10000-25000 अति सूक्ष्म बीज प्रति पौधा पैदा करता है तथा इसकी उंचाई 1.5 मीटर तक होती है। इसकी उगने की क्षमता अभूतपूर्व होती है। शोध से प्राप्त परिणमों से पता चला है कि प्रति पौधा 154000 बीज पैदा कर सकता है और 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। यह हर प्रकार की भूमि में उग सकता है।
आर.के. नेताम, वैज्ञानिक का कहना है कि गाजर घास फसलीय क्षेत्रों में पहुंचकर यह किसानों की खेती की लागत दोगुनी कर देती है और फसलों की उत्पादकता को 50 प्रतिशत तक कम कर देती है। इसमें सेसक्यूटरपीन नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है जो फसलों की अंकुरण क्षमता एवं वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसकी उपस्थिति में अन्य लाभकारी वनस्पतियां भी नहीं उगती हैं तथा वर्षा ऋतु में मच्छरों से फैलने वाले रोग डेंगू, मलेरिया आदि को दावत देता है। गाजर घास के लगातार संपर्क में आने वाले मनुष्य एलर्जी, अस्थमा, बुखार, दमा, आदि लाइलाज बीमारी हो सकती है। जानवरों के चारे में मिलने पर उनका दूध भी कड़वाहट भरा हो जाता है। फसलों की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है।
Created On :   25 Nov 2021 4:45 PM IST