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अधिसूचना जारी करने से पहले सर्वेक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने पूछे सवाल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में जातियों के समावेश को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने सरकार से जानना चाहा है कि वर्ष 1967 में अधिसूचना जारी करने से पहले पहले क्या कोई सर्वेक्षण व अध्ययन किया गया था? हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता बालासाहेब सराटे ने जनहित याचिका दायर की है।
बुधवार को यह याचिका मुख्य जस्टिस नरेश पाटील व जस्टिस एनएम जामदार के सामने सुनवाई के लिए आयी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वीएम थोरात ने कहा कि ओबीसी में 96 जातियों का समावेश है, लेकिन इसमें से 40 प्रतिशत जातियां आरक्षण के लिए अपात्र हैं। अपात्र जातियों को ओबीसी में शामिल किया जाना असंवैधानिक है। किस जाति को आरक्षण के लिए किसी श्रेणी में शामिल किया जाए इसके लिए कानून में एक पूरी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। लेकिन सरकार इस प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है।
ओबीसी आरक्षण के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई
इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि क्या सरकार ने 1967 में ओबीसी श्रेणी में जातियों को शामिल करने से पहले कोई सर्वेक्षण या अध्ययन किया था। याचिका में सरकार की ओर से ओबीसी में शामिल की गई विभिन्न जातियों व ओबीसी का आरक्षण 14 से 32 प्रतिशत किए जाने को लेकर 1994 में जारी किए गए शासनादेश को चुनौती दी गई है।
याचिका में दावा किया गया है कि किसी जाति के सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन की पड़ताल किए बिना उसे ओबीसी में शामिल करने को लेकर शासनादेश नहीं जारी किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि बगैर कोई आकड़ा व जानकारी इकट्ठा किए कई समुदायों व जातियों को ओबीसी की श्रेणी में शामिल किया गया है। इस दलीलों पर खंडपीठ ने कहा कि याचिका में मुख्य रुप से कहा गया है कि जातियों को ओबीसी की श्रेणी में शामिल करने से पहले अयोग के माध्यम से व्यापक रुप से अध्ययन होना चाहिए। इस याचिका पर अगले सप्ताह दूसरे खंडपीठ के सामने सुनवाई हो सकती है।
Created On :   9 Jan 2019 7:34 PM IST