हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के हेल्प डेस्क नंबर भी हेल्पलेस

Help desk numbers of health insurance companies are also helpless
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के हेल्प डेस्क नंबर भी हेल्पलेस
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के हेल्प डेस्क नंबर भी हेल्पलेस

फोन लगाने पर किसी कंपनी का फोन आउट ऑफ कवरेज तो किसी का लगने के बाद कट जाता है, टोल-फ्री नंबर के भी यही हाल, कहीं उठाता है गार्ड
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
कोरोना संकट काल में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों की साख पर सवाल खड़ा हो गया है। आईआरडीएआई ने जो नियम इन कंपनियों के लिए तय किए अब ये इन्हीं नियमों को पूरी तरह दरकिनार करते हुए संचालित हो रही हैं। कंपनियाँ अपने पॉलिसी धारक ग्राहकों के प्रति कितनी जवाबदेह हैं यह इसी से समझा जा सकता है कि कंपनी अपने ग्राहकों को दूरभाष या टोल-फ्री नंबर पर किसी तरह का उत्तर ही नहीं देती है। पॉलिसी होल्डर अपनी पीड़ा बताना चाहे तो फोन ही रिसीव नहीं होता है। किसी का फोन आउट ऑफ कवरेज है तो किसी में उठने के बाद एक्सटेंशन नंबर माँगा जाता है। किसी में कहा जाता है कि सभी कर्मचारी वर्क फ्रॉर होम हैं, बाद में संपर्क करें। 
सेवा में उच्च गुणवत्ता और त्वरित रिस्पांस का यह आलम है कि एक टेलीफोन को रिसीव करने वाला तक कोई नहीं है। जब कोई फोन अटैण्ड करने वाला और उत्तर देने वाला नहीं है तो समझा जा सकता है कि ये ग्राहकों का कितना ख्याल रख रही हैं। कोरोना काल में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने पॉलिसी धारकों के भरोसे को तोड़ दिया है। दर्द से कराहता आदमी जब कोई मदद के साथ सार्थक उत्तर चाहता है तो उसी समय ये मुँह फेर रही हैं। 
ये फोन करते नहीं थकते 
किसी कंसल्टेंट को पता चल जाए कि आप कोई अच्छी हेल्थ पॉलिसी ले सकते हैं या फिर आपकी पॉलिसी रिन्यू होनी है, जिसका प्रीमियम भरा जाना है तो कंपनी की ओर से इतने फोन आते हैं कि ग्राहक परेशान हो जाता है। पॉलिसी लेने वाले को या फिर रिन्यू  कराने वाले को मानसिक रूप से प्रताडि़त तक कर दिया जाता है। लाभ जब खुद का है तो दर्जनों फोन भी जायज हैं और वही उपभोक्ता जब बीमारी के वक्त पीड़ा में है और अपनी बात रखना चाहता है तो कोई सुनने तैयार नहीं हैं।  
गार्ड फोन उठाकर बोलता है  
एक नामी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी के मुख्यालय में फोन किया जाए तो पता चलता है कि टेलीफोन एक गार्ड रिसीव करता है। यह सुरक्षा कर्मी उत्तर देता है कि कोई भी कर्मचारी काम पर नहीं आ रहा है कुछ दिन बाद संपर्क करें। ऐसी कंपनियाँ अपने ग्राहकों का कितना ख्याल  रख रही होंगी यह सहज रूप में समझा जा सकता है। 
अब पता चल रही हकीकत
केस सेटलमेंट न करने से परेशान उपभोक्ताओं का कहना है कि अब वास्तव में इन कंपनियों की हकीकत पता चल रही है। दुनिया की बेहतर कंपनियों में शुमार रखने वाली कई कंपनियों ने तो कोरोना काल में बीमार आदमी को धोका ही दिया है। कैशलेस के नाम पर अभी ज्यादातर केस में ठगी चल रही है। आधे अधूरे सेटलमेंट और पीड़ा  के वक्त मुँह फेर लेना, जब जरूरत है उसी समय नियमों का बखान करना इनका काम है। 
आईआरडीएआई का सख्त निर्देश- टोल-फ्री नंबर अपडेट रखें
अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने बताया कि यदि बीमा कंपनियाँ बीमाधारकों की समस्याएँ नहीं सुनती हैं, तो आईआरडीएआई को ई-मेल. पर शिकायत की जा सकती है। हाल ही में आईआरडीएआई ने सर्कुलर जारी किया है कि बीमा कंपनियाँ अपने टोल-फ्री नंबर अपडेट रखें, ताकि बीमा धारक तत्काल संपर्क कर सकें। इसके साथ ही अपनी समस्या निवारण प्रणाली को पुख्ता रखें, ताकि अस्पताल में भर्ती होने के बाद मरीजों के क्लेम के संबंध में प्रक्रिया शुरू की जा सके। गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी बीमा कंपनियों को मरीजों के डिस्चार्ज होने के 60 मिनट के भीतर क्लेम का निपटारा करने का आदेश दिया है।
 

Created On :   25 May 2021 10:48 AM GMT

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