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हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा - पाबंदी की मांग पर कौन सी प्रक्रिया अपनाते हैं, सनातन संस्था के खिलाफ याचिका

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि वह अवैध गतिविधि के आधार पर किसी संगठन अथवा संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर किए जानेवाले आवेदन पर निर्णय लेते समय कौन सी प्रक्रिया अपनाती है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावडे की खंडपीठ ने सरकार से यह जानकारी अरसद अली अंसारी की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान मांगी है। याचिका में हिंदुवादी सनातन संस्था व उसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में अंसारी ने कहा है कि उसने सितंबर 2018 में राज्य व केंद्र सरकार को अवैध गतिविधि प्रतिबंधक कानून की धारा तीन के तहत सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर निवेदन दिया था। लेकिन मेरे निवेदन पर क्या किया गया है अब तक इसका कोई जवाब नहीं मिला है। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय इस मामले में उचित निर्णय ले सकता हैं। इस पर केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि पहले राज्य सरकार को संबंधित संस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट भेजनी पड़ती है इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय इस बारे में निर्णय ले सकता है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि सामान्य तौर पर संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर किए जानेवाले आवेदन पर निर्णय लेते समय कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसकी जानकारी हमारे सामने मामले की अगली सुनवाई के दौरान पेश की जाए। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 4 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है। अधिवक्ता राजेश खोब्रागडे के माध्यम से दायर की गई अंसारी की याचिका के मुताबिक सनातन संस्था का नाम राज्य में हुए बम धमाके व सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर व गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में आया है। ठाणे में हुए बम धमाके के मामले में सनातन संस्था के सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया था। इसलिए संस्था पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में सरकार को निर्देश दिया जाए।
स्वास्थ्य जांच के बाद ही बूचडखाने में पशुओं का काटा जाए
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि प्राणियों के स्वास्थ्य की जांच के बाद ही उन्हें बूचडखाने में काटा जाए। ऐसा न करने पर यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। प्राणियों को काटते समय सुरक्षा से जुड़े सभी मानकों व नियमों का पालन किया जाए। इससे पहले कोर्ट को बताया गया कि नियमानुसार एक दिन में बूचडखाने में प्राणियों को काटने की सीमा 96 तय की गई है लेकिन मुंबई के देवनार बूचडखाने में रोजाना हजारों पशु काटे जाते हैं। खास मौकों पर एक दिन में तो दो हजार पशु काटे जाते हैं। नियमानुसार बूचडखाने में काटने के लिए लाए जानेवाले पशुओं की जांच किया जाना जरुरी है। यदि प्राणियों के स्वास्थ्य की जांच किए बिना ही काटा जाएगा तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित हो सकता है। इस बीच खंडपीठ को बताया गया कि नई मुंबई में कोई बूचडखाना नहीं है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि यदि बूचडखाने में एक दिन में जानवरों को काटने की सीमा तय की गई है तो वहां पर लाए जाने वाले सभी जानवरों की जांच होनी चाहिए। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता खुद देवनार बूचड़खाने में जाकर प्राणियों के काटने की प्रक्रिया व जानकारी का सत्यापन करे तो बेहतर होगा। खंडपीठ ने कहा कि यदि डाक्टर सिर्फ जांच की खाना-पूर्ति कर घिसेपिटे तरीके से पशुओं को काटने के लिए प्रमाणपत्र जारी करते हैं तो याचिकाकर्ता इस संबंध में शिकायत करने के लिए स्वतंत्र होगा।
रिकवरी ट्रिब्यूनल के पास नहीं हैं सुविधाए, हस्तक्षेप करें केंद्रीय वित्तमंत्री
बांबे हाईकोर्ट ने डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी-कर्ज वसूली न्यायाधिकरण) में समय पर पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति न करने व उसे जरुरी सुविधाएं तथा स्टाफ न देने पर नाराजगी जाहिर करते हुए देश की वित्तमंत्री से इस मामले में जरुरी निर्देश जारी करने की अपेक्षा व्यक्त की है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों के पद रिक्त होने के चलते कई सालों तक मामले प्रलंबित रहते हैं। मुंबई में डीआरटी के तीन पीठासीन अधिकारी के पद रिक्त हैं। महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में भी यही स्थिति है। जिसके चलते जहां पीठासीन अधिकारी मौजूद हैं, वहां दूसरे जगहों के काम का बोझ भेज दिया जाता है। जिससे सालों तक मामले प्रलिंबित रहते हैं और वित्तीय संस्थानों के आवेदन पर विचार ही नहीं हो पाता। खंडपीठ ने कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड व इंटरनेशनल एसेट्स रिकंस्ट्रक्सन कंपनी ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिए गए आदेश में यह बात कही हैं। खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि मुंबई डीआरटी में 1999 से एक आवेदन प्रलंबित है। खंडपीठ ने कहा कि जब तक डीआरटी की स्थिति नहीं सुधरेगी तब तक यह कहना बेमानी है कि वित्तीय सस्थानों की स्थिति ठीक नहीं है। खंडपीठ ने इस मामले से जुड़ी याचिका व अपने आदेश की प्रति देश की वित्तमंत्री को भेजने को कहा है। क्योंकि दोनों याचिकाएं डीआरटी की कहानी को बखूबी बयान करती हैं। खंडपीठ ने कहा कि हम अपेक्षा करते हैं कि देश की वित्तमंत्री इस मामले में जरुरी निर्देश जारी करेंगी। यह कहते हुए खंड़पीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया।
Created On :   12 Feb 2020 8:34 PM IST