हाईकोर्ट : मुकदर्शक बने रहने का अर्थ अपराध के लिए उकसाना नहीं, जमानत के बावजूद 8 साल तक कैद की होगी जांच

High Court : Being a Silent does not mean provoke to crime
हाईकोर्ट : मुकदर्शक बने रहने का अर्थ अपराध के लिए उकसाना नहीं, जमानत के बावजूद 8 साल तक कैद की होगी जांच
हाईकोर्ट : मुकदर्शक बने रहने का अर्थ अपराध के लिए उकसाना नहीं, जमानत के बावजूद 8 साल तक कैद की होगी जांच

डिजिटल डेस्क, मुंबई। मूकदर्शक होना पाक्सो कानून के तहत अपराध के लिए उकसाना नहीं है।  बांबे हाईकोर्ट ने पाक्सो कानून के तहत अपराध के लिए उकसाने के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी पायी गई एक महिला को बरी करते हुए यह फैसला सुनाया है। महिला पर अपनी पांच साल की बेटी को प्रताड़ित करने में अपने पति का सहयोग करने का आरोप था। न्यायमूर्ति एएम बदर ने कहा कि आरोपी महिला द्वारा अपनी बेटी को प्रताड़ित करने की जानकारी पुलिस को न देने का  मतलब यह नहीं है कि महिला जानबूझकर अपराध में अपने पति का साथ दे रही थी। नाशिक जिले की पाक्सो कोर्ट ने महिला को अपराध के लिए उकसाने के आरोप में मार्च 2015 में दोषी पाया था और उसे दस साल के कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इस प्रकरण में महिला के पति को भी इतनी ही सजा सुनाई थी। बच्ची के शरीर में चोट के निशान देखने के बाद महिला की पड़ोसी ने मामले की जानकारी पुलिस को दी थी। पुलिस ने जांच में पाया कि बच्ची का सौताला पिता न सिर्फ उसे बेरहमी से पीटता था बल्कि उसके गुप्तांग में मिर्ची पाउडर भी डाल देता था। बच्ची के पडोसी से मिली जानकारी के आधार पर नाशिक के सरकारवाडा पुलिस ने 15 अक्टूबर 2013 को बच्ची के माता-पिता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया था। पाक्सो कोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद महिला के पति को दोषी ठहराया था। इसके साथ अभियोजन पक्ष के उस तर्क को भी स्वीकार किया था जिसके तहत कहा गया था कि पीड़ित बच्ची अपनी प्रताड़ना की जानकारी अपनी मां को दी थी लेकिन मां ने जानबूझकर पुलिस को अपराध की जानकारी नहीं दी। यह एक तरह से अपराध के लिए उकसाने के दायरे में आता है। लेकिन न्यायमूर्ति बदर ने महिला को दोषी ठहराए जाने के पाक्सो कोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए कहा कि उकसाने का कृत्य सिर्फ मदद करने से पूरा नहीं होता है। इसके लिए वास्तविक रुप से कृत्य करना जरुरी है। पुलिस को मामले की जानकारी देने में विफल होने का मतलब यह नहीं है कि महिला ने जानबूझकर अपराध में अपने पति की मदद की है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने महिला को मामले से बरी कर दिया। 

जमानत के बावजूद 8 साल तक जेल में रहने के मामले की होगी जांच

एक आरोपी को जमानत मिलने के बावजूद आठ साल तक जेल में रखने के मामले में बांबे हाईकोर्ट ने नाशिक के जिला व सत्र न्यायाधीश को जांच करने का निर्देश दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपनी जांच रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में न्यायालय को सौपा जाए। यहीं नहीं कोर्ट ने इस मामले में पुलिस व जेल अधिकारी को हलफनामा दायर करने को भी कहा है। मामला महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत आरोपों का सामना कर रहे आरोपी दीपक काले से जुड़ा है। जिसे कोर्ट ने साल 2011 में जमानत पर रिहा किया था। लेकिन अब तक उसे बीते 19 सितंबर को जेल से रिहा किया गया। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। याचिका में काले ने खुद को जेल से बरी किए जाने व मुआवजा देने की मांग की है। न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती व न्यायमूर्ति नितिन सुर्यवंशी के सामने काले की याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील मानकुंवर देशमुख ने खंडपीठ के सामने कहा कि आरोपी को 19 सितंबर 2019 को जेल से रिहा कर दिया गया है। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ पाया कि आरोपी को साल 2011 में ही जमानत मिल गई थी। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यह प्रकरण न्यायधीश से जांच करने के लिए सबसे उपयुक्त मामला है।  लिहाजा हम नाशिक के जिला व सत्र न्यायाधीश को मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौपने का निर्देश देते हैं। खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को रखी है। 

 

Created On :   24 Sept 2019 8:49 PM IST

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