चाय न बनाने पर पत्नी की हत्या करने वाले को हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत

High court did not give relief to the man who killed his wife for not making tea
चाय न बनाने पर पत्नी की हत्या करने वाले को हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत
चाय न बनाने पर पत्नी की हत्या करने वाले को हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पत्नी कोई संपत्ति या वस्तु नहीं है। फिर भी समाज में यह पुरानी धारणा कायम है। जबकि विवाह एक बराबरी पर आधारित साझेदारी है। यह बात कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के मामले में दोषी पाए गए एक आरोपी की सजा को बरकरार रखा है। यही नहीं कोर्ट ने मामले में आरोपी पति की सजा के खिलाफ की गई अपील को भी खारिज कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि पत्नी गृहिणी है इसलिए उससे यह अपेक्षा नहीं कि जा सकती कि वह घर का सारा काम करे। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी का चाय बनाने से इंकार करना पति को हिंसा अथवा उस पर हमला करने के लिए उकसाने का आधार नहीं हो सकता है। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि आरोपी संतोष अटकर  ने साल 2013 मे अपनी पत्नी की सिर्फ इसलिए हथौड़ा मारकर मौत के घाट पहुंचा दिया था, क्योंकि वह चाय बनाए बिना बाहर जाना चाहती थी। निचली अदालत ने आरोपी को इस मामले में सदोष मानव वध के लिए दोषी ठहराते हुए दस साल के कारावास की सजा सुनाई थी। 

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पंढरपुर निवासी आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति ढेरे के सामने अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल को हमले के लिए उकसाया गया था। क्योंकि उसने अपनी पत्नी को चाय बनाने के लिए कहा था। लेकिन उसने चाय नहीं बनाया। इसकी वजह से उसने पत्नी को गुस्से में हथौड़ा मारा था। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने मेरे मुवक्किल के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किए हैं। किंतु इस बात से असहमत खंडपीठ ने कहा कि पत्नी का चाय बनाने से इंकार करना उसके प्रति हिंसा अथवा हमले के लिए उकसाने का आधार नहीं हो सकता। इस दौरान न्यायमूर्ति ने मामले को लेकर आरोपी की 6 साल की बेटी की गवाही को बेहद महत्वपूर्ण व विश्वसनीय माना। न्यायमूर्ति ने कहा कि आरोपी ने पत्नी को हथौड़े से मारने के बाद उसके शरीर से खून के दाग मिटाने के लिए उसे बेटी के सामने नहलाया फिर अस्पताल ले गया।  इस दौरान काफी समय नष्ट हो गया। जिससे अस्पताल पहुंचने में देरी हुई। यदि आरोपी ऐसा नहीं करता तो शायद बच्ची अपनी मां को नहीं खोती

 
न्यायमूर्ति ने कहा कि पत्नी कोई वस्तु व संम्पत्ति नहीं है। लेकिन पत्नी को सम्प्पति समझने की धारणा समाज में अभी भी कायम है। पत्नी को अपेक्षाओ का दास नहीं बनाया जा सकता है। विवाह में पुरूष खुद को प्रमुख समझता है। लेकिन शादी के समानता पर आधारित साझेदारी है। इस तरह से न्यायमूर्ति ने आरोपी को राहत देने से इंकार करते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया। को भी खारिज कर दिया
 
 

Created On :   25 Feb 2021 2:53 PM GMT

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