पुलिस की लापरवाही से नहीं मिली पैरोल, नाशिक जेल अधीक्षक से जवाब तलब

High Court displeasure on police negligence in parole, noticed to jail Superintendent
पुलिस की लापरवाही से नहीं मिली पैरोल, नाशिक जेल अधीक्षक से जवाब तलब
पुलिस की लापरवाही से नहीं मिली पैरोल, नाशिक जेल अधीक्षक से जवाब तलब

डिजिटल डेस्क, मुंबई। रिश्तेदारों के निधन की स्थिति में कैदियों को आपात पैरोल प्रदान करने को लेकर जेल अधिकारियों के लापरवाही पूर्ण रुख पर बांबे हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने राज्य के जेल महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वे सभी जेल अधीक्षकों को जरुरी निर्देश जारी कर सुनिश्चित करे की कैदियों को समय पर आपात पैरोल मिल सके। नियमानुसार यदि किसी कैदी के दादा-दादी, माता-पिता, पत्नी, बेटा-बेटी, भाई व बहन का निधन हो जाता है तो वह 14 दिन की आपात पैरोल पाने का अधिकार रखता है। कैदी को अपने बेटा-बेटी व भाई-बहन की शादी में भी ऐसी पैरोल पाने अधिकार है। आपात पैरोल से जुड़े आवेदन पर 10 दिन के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। हालांकि विदेशी और फांसी की सजा पाने वाले कैदी इस तरह के पैरोल की मांग नहीं कर सकते। इस नियम के तहत नाशिक जेल में बंद गणेश शिंदे ने अपनी दादी के निधन पर 9 मार्च 2018 को आपात पैरोल के लिए आवेदन किया था। 15 मार्च को शिंदे के संबंध में नाशिक के जेल अधीक्षक को पुलिस रिपोर्ट मिली। लेकिन जेल अधीक्षक ने पाया कि पुलिस स्टेशन ने शिंदे को लेकल जो रिपोर्ट भेजी है, उस पर पुलिस स्टेशन की मुहर नहीं लगी है। लिहाजा जेल अधीक्षक ने पुलिस रिपोर्ट को प्रमाणिक मानने से इंकार करते हुए शिंदे को पैरोल प्रदान करने से इंकार कर दिया। जेल अधीक्षक के इस रुख के खिलाफ शिंदे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 

न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमर्ति संदीप शिंदे के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका व आपात पैरोल से जुड़े नियमों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आपात पैरोल के लिए पुलिस रिपोर्ट मंगाने की जरुरत नहीं है। यदि पुलिस रिपोर्ट पर मुहर नहीं थी तो जेल अधीक्षक को इसके बारे में फोन से व ईमेल से जानकारी लेनी चाहिए थी। पुलिस रिपोर्ट पर रबर स्टैंप न लगे होने में कैदी की कोई गलती नहीं थी। फिर भी जेल अधीक्षक ने पुलिस रिपोर्ट की प्रमाणिकता को परखने के लिए तेजी से कोई कदम नहीं उठाया। जेल अधिकारियों का यह रवैया आपात पैरोल प्रदान करने के उद्देश्य को प्रभावित करता है। इसलिए हम चाहते है कि जेल के महानिदेशक इस संबंध में जेल के सभी जेल अधीक्षकों को जरुरी निर्देश जारी करे ताकि आपात पैरोल से जुड़े नियमों को अर्थहीन होने से बचाया जा सके। खंडपीठ ने इस मामले में नाशिक जेल के अधिक्षक को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 21 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। 

पैरोल मिलने के बाद पांच साल से फरार कैदी गुजरात से गिरफ्तार

दूसरे एक मामले में पैरोल मिलने के बाद पिछले पांच सालों से फरार हत्या के एक दोषी को ठाणे पुलिस ने गुजरात से गिरफ्तार किया है। आरोपी भावनगर जिले के अलंग गांव में एक शिपिंग कंपनी में काम करता था। हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा आरोपी अप्रैल 2013 से फरार था। डीसीपी दीपक देवराज ने बताया कि पकड़े गए आरोपी का नाम विश्वनाथ यादव उर्फ मोटा काका (40) है। यादव ने ठाणे के कलवा इलाके में 2 अक्टूबर 2008 को बबन शिंदे नाम के एक शख्स की हत्या कर दी थी। इस मामले में ठाणे सत्र न्यायालय ने उसे अप्रैल 2012 में दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इसके एक साल बाद यादव कुछ दिनों की पैरोल पर छूटा था। उसे बाकी की सजा पूरी करने के लिए 9 अप्रैल 2013 को कोल्हापुर जेल लौटना था लेकिन वह फरार हो गया। वह नई मुंबई स्थित अपने घर यादव नगर, रबाले में भी नहीं मिला। इसके बाद कोल्हापुर जेल के अधिकारियों ने नई मुंबई के रबाले पुलिस स्टेशन में 26 नवंबर 2013 को शिकायत दर्ज कराई। इसी बीच ठाणे अपराध शाखा के सीनियर इंस्पेक्टर नितीन ठाकरे को जानकारी मिली कि यादव गुजरात में पहचान छिपाकर नौकरी कर रहा है। इसके पुलिस की एक टीम गुजरात पहुंची और आरोपी को दबोच लिया। फिलहाल यादव को रबाले पुलिस के हवाले कर दिया गया है। जहां से उसे जल्द ही बाकी की सजा पूरी करने के लिए कोल्हापुर जेल भेजा जाएगा।     

Created On :   4 Jan 2019 9:14 PM IST

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