हाईकोर्ट : सियासत पर तंज-जहां विवाह वहां तलाक की भी अवधारणा, अब प्रभावितों की मदद के लिए पहुंचे रामनाईक

High Court: on Marriage there are also concept of divorce
हाईकोर्ट : सियासत पर तंज-जहां विवाह वहां तलाक की भी अवधारणा, अब प्रभावितों की मदद के लिए पहुंचे रामनाईक
हाईकोर्ट : सियासत पर तंज-जहां विवाह वहां तलाक की भी अवधारणा, अब प्रभावितों की मदद के लिए पहुंचे रामनाईक

डिजिटल डेस्क, मुंबई। विवाह का कानून तलाक की अवधारणा से अनजान नहीं है। बांबे हाईकोर्ट ने शिवसेना द्वारा कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के विरोध में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तंज कसा है। पेशे से वकील रोहणी अमीन व अन्य लोगों ने इस संबंध में हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में शिवसेना पक्ष प्रमुख उध्दव ठाकरे के शपथ लेने पर रोक लगाने की मांग की गई है। गुरुवार को जब हाईकोर्ट कि एक खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया तो अधिवक्ता मैथ्यु निदुंबरा ने मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने इस याचिका का उल्लेख किया। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई बेंच सुनवाई नहीं कर रही है तो याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए। यदि किसी मामले की सुनवाई का अधिकार एक खास बेंच के पास दिया गया है तो वह ही इस मामले की सुनवाई करेगी। यदि हम इस पर हस्तक्षेप करेंगे तो हो सकता है दूसरे न्यायाधीश संवाददाता सम्मेलन बुला ले। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील इस मामले का उचित खंडपीठ के सामने उल्लेख करें। इस दौरान अधिवक्ता निदुंबरा ने कहा कि मेरे मुवक्किल व दूसरे याचिकाकर्ताओं ने सिर्फ इसलिए शिवसेना के उम्मीदवारों को मतदान किया था क्योंकि वहां पर भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार दोनों दलों के बीच गठबंधन के कारण उपलब्ध नहीं था। इसी तरह से बहुत से मतदाताओं ने मतदान किया। इसलिए यह मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी जैसा है। याचिका में शिवसेना का दूसरे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने को असंवैधानिक बताया गया है। हजारों लोगों ने शिवसेना–भाजपा को इसलिए मतदान किया क्योंकि इन्होंने कांग्रेस व राकांपा की नीतियों को गलत माना था। इसलिए शिवसेना पक्ष प्रमुख उध्दव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रुप में शपथ लेने के लिए अयोग्य ठहराया जाए और उनकी शपथ को आमान्य घोषित किया जाए। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि क्या तलाक की अवधारणा विवाह के कानून से अनभिज्ञ है। इस याचिका में तत्काल सुनवाई की जररुत नहीं है। यदि कोई खंडपीठ मामला नहीं सुन रही है तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जाए। 

अणु ऊर्जा परियोजना प्रभावितों की मदद के लिए हाईकोर्ट पहुंचे रामनाईक

उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाइक तारापुर अणु उर्जा परियोजना के प्रभावितों के अधिकारों के लिए बांबे हाईकोर्ट पहुंच गए है। हाईकोर्ट ने उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप करने व पैरवी करने की अनुमति भी दे दी है।  इस परियोजना के चलते दो गांवों के 1250 लोग प्रभावित हुए है। इसमे से अधिकांश लोग मछुआरे हैं। इनका अभी तक उचित ढंग से पुनर्वास नहीं हो पाया है। शुरुआत में परियोजना प्रभावितों के संगठन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में पक्ष रखने के लिए नाइक ने आवेदन किया था। कई सुनवाई के दौरान नाइक ने खुद हाईकोर्ट में मौजूद रहकर पैरवी भी की थी लेकिन 2014 में उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनने के बाद पांच साल तक वे इस मामले की पैरवी नहीं कर पाए थे। इसलिए उन्होंने दोबारा इस मामले की पैरवी करने की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। गुरुवार को यह आवेदन मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आया। इस दौरान श्री नाइक ने कहा कि वे साल 2014 से 2019 के बीच उत्तरप्रदेश के राज्यपाल थे। जिसके चलते वे पांच साल इस मामले की पैरवी नहीं कर पाए हैं। इसलिए उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप करने व दोबारा पैरवी की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा कि साल 2004 में इस विषय पर याचिका दायर हुई थी लेकिन 15 साल बाद भी परियोजना प्रभावितों का नियमानुसार पुनर्वास नहीं हो पाया है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने श्री नाइक के आवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे को देखने के लिए एक न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है। जो जल्द ही परियोजना प्रभावितों से जुड़े मुद्दों की सुनवाई करेगी। 

जनहित में समय से पहले सेवानिवृत्त किए गए न्यायाधीश को राहत देने से हाईकोर्ट ने किया इंकार

बांबे हाईकोर्ट ने जनहित में समय से पहले सेवानिवृत्त किए गए एक न्यायाधीश को राहत देने से इंकार कर दिया है। पूर्व जिला न्यायाधीश अनिल मोहबे ने इस संबंध में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मोहबे को 55 साल की उम्र में अनिवार्य रुप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था। जिसके खिलाफ  मोहबे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
 इस याचिका पर सुनवाई के दिए गए फैसले में न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनबी सुर्यवंशी ने स्पष्ट किया कि यदि संबंधित सक्षम प्राधिकरण ने सभी पहलूओं पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकाला है कि जनहित में न्यायिक अधिकारी को समय से पहले (अनिवार्य रुप से सेवानिवृत्त करना)  रिटायर कर दिया जाए  तो हम  इसमे हस्तक्षेप नहीं कर सकते है। सक्षम प्राधिकरण के पास न्यायिक अधिकारी को समय से पहले सेवानिवृत्त करने का पूरा अधिकार है। फिर चाहे उम्र 50, 5 या 58 की। इसके लिए न्यायिक अधिकारी को तीन महीने पहले नोटिस जारी किया जाना जरुरी है और इस अवधि में उसका बकाया भुगतान का भी किया जाना आवश्यक है। मोहबे की 1992 में चंद्रपूर में सिविल जज जूनियर डिविजन के रुप में नियुक्ति हुई थी। नवंबर 2014 में उनकी नियुक्ति जिला न्यायाधीश के रुप में की गई। इस बीच 12 जुलाई 2018 को हाईकोर्ट प्रशासन ने याचिकाकर्ता (मोहबे) को समय से पहले सेवानिवृत्त करने के संबंध में नोटिस जारी किया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्त के निर्णय के विषय में यह जानकारी मांगी की किन सबूतों के आधार पर उसे समय से पहले सेवानिवृत्त किया जा रहा है। इसके बाद याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त को लेकर राज्य के विधि व न्याया विभाग व  समीक्षा कमेटी की बैठक की गई चर्चा की जानकारी दी गई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसकी पूरी सेवा के दौरान कोई दाग नहीं लगा है। कुछ शिकायते मेरे बारे में की गई थी जो आधारहीन पायी गई थी। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रदीप हवनूर ने कहा कि मेरे मुवक्किल की नियुक्ति के बाद 26 साल  की गई सेवा बेदाग रही है। ऐसे में सिर्फ जनहित की वजह बताकर मेरे मुवक्किल को समय से पहले सेवानिवृत्त करना कानून के हिसाब से सही नहीं है। वहीं हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अमित बोरकर ने कहा कि सक्षम प्राधिकरण व कमेटी ने याचिकाकर्ता को न्यायिक अधिकारी के रुप में काम करने के लिए अनुपयुक्त पाया है। प्राधिकरण को याचिकाकर्ता की न्यायिक सेवा के लिए कोई उपयोगिता नहीं है। इसलिए उन्हें समय से पहले सेवानिवृत्त किया गया है। याचिकाकर्ता के खिलाफ कई शिकायते मिली है जिसके तहत उस पर एक ट्रक मालिक के पक्ष में फैसला देने का आरोप था। यह ट्रक मालिक याचिकाकर्ता का समान उनकी पोस्टिंगवाली जगह पहुंचाता था। इसके अलावा याचिकाकर्ता पर फैसले देने में देरी का भी आरोप था।  वकीलों के संगठन ने भी याचिकाकर्ता को लेकर कथित शिकायत की थी। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का सारा रिकार्ड सक्षम प्राधिकरण व कमेटी के पास था। उसने सभी पहूलओं पर गौर करने के बाद याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त करने का निर्णय किया। इसलिए हम इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते है। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।   
 

Created On :   28 Nov 2019 9:51 PM IST

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