हाईकोर्ट ने जाति वैधता प्रमाण-पत्र जारी करने के आदेश दिए, स्वतंत्रता पूर्व जारी दस्तावेजों का अपना महत्व

High Court orders to issue caste validity certificate, its importance of documents issued before independence
हाईकोर्ट ने जाति वैधता प्रमाण-पत्र जारी करने के आदेश दिए, स्वतंत्रता पूर्व जारी दस्तावेजों का अपना महत्व
निपटारा हाईकोर्ट ने जाति वैधता प्रमाण-पत्र जारी करने के आदेश दिए, स्वतंत्रता पूर्व जारी दस्तावेजों का अपना महत्व

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जाति वैधता प्रमाण-पत्र से जुड़े एक विवाद पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक अहम आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उम्मीदवार अपनी वंशावली साबित करने के लिए यदि स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद का दस्तावेज संलग्न करें, तो स्वतंत्रता पूर्व जारी हुए दस्तावेजों का महत्व अधिक होगा। यदि जाति वैधता पड़ताल समिति स्वतंत्रता के बाद के दस्तावेजों को महत्व देना चाहती है, तो समिति को यह साबित करना हाेगा कि स्वतंत्रता पूर्व जारी हुए दस्तावेज सही नहीं हैं।

दस्तावेजों में एकरूपता हो जरूरी नहीं

दरअसल, हाल ही में हाईकोर्ट के समक्ष एक मामला सुनवाई के लिए आया, जिसमें अमरावती जाति वैधता पड़ताल समिति ने याचिकाकर्ता रोशन बालबंशी (30,नि.असेगांव, अमरावती) के अरख अनुसूचित जनजाति का जाति वैधता प्रमाण-पत्र नकार दिया था। याचिकाकर्ता ने आवेदन में अपना दावा सिद्ध करने के लिए कुछ दस्तावेज जोड़े थे। इसमें याचिकाकर्ता के पूर्वजों के स्वतंत्रता के पहले जारी हुए तीन दस्तावेज भी शामिल थे। इसमें क्रमश: वर्ष 1931 और वर्ष 1934 में जारी दस्तावेजों में पूर्वज का सामुदायिक दर्जा "अरख" और "आरख" दर्शाया गया था। लेकिन वर्ष 1946 में जारी दस्तावेज में एक अन्य पूर्वज को "परदेशी" बताया गया था। जाति के नाम में अंतर होने का हवाला देकर समिति ने याचिकाकर्ता का दावा खारिज कर दिया था। 

हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

तकनीकी रूप से जटिल प्रश्न पर हाईकोर्ट ने माना है कि स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद की अवधि में जारी दस्तावेजों में एकरूपता हो यह जरूरी नहीं है, क्योंकि भारत के इतिहास पर गौर करें तो यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता पूर्व भारत में जाति और संप्रदाय पर आधारित कुछ घटनाएं हुई हैं। ऐसे में संभव है कि उस वक्त आवेदक को असामाजिक तत्वों से बचाने के लिए उस वक्त जान-बूझ कर उसके दस्तावेजों में फेर-बदल किया गया हो। चूंकि इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत वर्ष 1931 और 1934 के दस्तावेजों को अवैध बताने वाला कोई तथ्य या सबूत सामने नहीं आया, यह स्वीकार करना ही होगा कि याचिकाकर्ता अरख समुदाय से है। हाईकोर्ट ने जाति वैधता पड़ताल समिति को याचिकाकर्ता को इसी श्रेणी का प्रमाण-पत्र जारी करने के आदेश दिए हैं। 

 

 

Created On :   9 Nov 2021 7:42 AM GMT

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