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हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी ने दिया त्यागपत्र, अपेक्षाएं पूरी न होने का दुख

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी ने अपनी 16 वर्षों से अधिक की न्यायिक सेवा के बाद अपने पद से त्यागपत्र दे दिया हैं। त्यागपत्र देने की वजह उन्होंने बेहद निजी व पारिवारिक बताई है। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी पारिवारिक कारणों से महाराष्ट्र के बाहर जाने के इच्छुक नहीं थे। जबकि उनकी सेवानिवृत्ति को अभी भी दो साल शेष है। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी को मध्य प्रदेश व उड़ीसा का मुख्य न्यायाधीश बनाने की पेशकस की गई थी लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करने की बजाय अपने पद से इस्तीफा दे दिया। क्योंकि वे अपनी निजी जिम्मेंदारियों के चलते मुंबई व महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाना चाहते थे। इससे पहले शुक्रवार को न्यायमूर्ति धर्माधिकारी की खंडपीठ के सामने जब अधिवक्ता मैथ्यु निदुंबरा ने अपने मामले का सुनवाई के लिए उल्लेख किया तो उन्होंने त्यागपत्र देने की बात का खुलासा किया। इसके साथ ही कहा कि आज (शुक्रवार) मेरा न्यायिक सेवा का अखिरी दिन हैं। मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इससे अधिवक्ता निदुंबरा व कोर्ट में मौजूद दूसरे वकील चौक गए।
न्यायमूर्ति धर्माधिकारी के इस्तीफे की बात को जानने के बाद अधिवक्ता निदुंबरा ने कहा कि पहले उन्हें लगा कि शायद न्यायमूर्ति हल्के अंदाज में यू ही अपने इस्तीफे की बात कह रहे है लेकिन बाद में अधिवक्ता निदुंबरा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हाईकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायमूर्ति में से एक धर्माधिकारी का इस्तीफा हैरानीपूर्ण है।14 नवंबर 2003 को हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रुप की शपथ लेनेवाले न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने 11 फरवरी 2020 को राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र भेजा था। लिहाजा अब वे सोमवार से न्यायियक कार्य के लिए उपलब्ध नहीं होगे। कानून को कडाई से लागू करने के लिए पहचानेजानेवाले न्यायमूर्ति धर्माधिकारी 1983 में वकील के रुप में अपना पंजीयन कराया था। मुंबई विश्वविद्यालय से उन्होंने एलएलबी की डिग्री ली थी। वे हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य कार्यकारी न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी के बेटे हैं।
अपेक्षाएं पूरी न हो पाने पर होता है दुख-न्यायमूर्ति धर्माधिकारी
बांबे हाईकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी के एकएक इस्तीफे ने न्यायपालिका में खलबली मचा दी है। यदि वे पद पर रहते तो निश्चित तौर पर कुछ दिनों बाद देश के किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते। आखिर किन कारणों के चलते बेहद विनम्र व विद्वान न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने मुख्य न्यायाधीश जैसे बड़े पद की अनदेखी करते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसको लेकर दैनिक भास्कर के वरिष्ठ संवाददाता कृष्णा शुक्ला ने न्यायमूर्ति धर्माधिकारी से बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश-
आपने निजी व पारिवारिक कारण को त्यागपत्र की वजह बताई है। हकीकत में ऐसा है या फिर कोई और वजह हैं?
देखिए ऐसा कहा जाता है कि उम्र के एक पडाव पर जब आपका शरीर व आपका परिवार आपसे बात करता है तो उसे सुने । ऐसी परिस्थिति में आपकों एक निर्णय लेना पड़ता है। जो सरल नहीं होता है। मेरे लिए पारिवारिक कारणों व निजी जिम्मेदारियों के चलते मुंबई व महाराष्ट्र से बाहर जा पाना संभव नहीं था। इसलिए मैंने एक फैसला लिया जो सबके सामने है। जहां तक बात मुख्य न्यायाधीश बनने की है तो मुख्य न्यायाधीश से काफी अपेक्षाएं जुड़ी होती और मेरा सेवा कार्यकाल( करीब दो साल) उतना बड़ा नहीं था। वैसा इंसान के कार्य की करने की एक मर्यदा होती है।
तो क्या आप अपेक्षाओं से भयभीत हो गए?
अपेक्षाएं बिल्कुल भी भयभीत नहीं करती है लेकिन यह पूरी नहीं हो पाती है इसका दुख होता है। नए स्थान पर जाने पर वहां की कार्यसंस्कृति अलग होती है जिसे समझने में काफी वक्त चला जाता है। तब तक मुख्य न्यायाधीश के रुप में आपका कार्यकाल समाप्त होने के कगार पर पहुंच जाता है। वर्तमान में कार्यपालिका की निष्क्रियता के चलते न्यायपालिका व न्यायाधीश से काफी अपेक्षाएं बढी है। पुराने दौर में लोगों का धैर्य काफी ज्यादा था, राष्ट्रपिता महात्मागांधी ने कोर्ट में कभी कोई जनहित याचिक नहीं दायर की। लेकिन वर्तमान का दौर ऐसा नहीं है। वैसे मेरा मानना है कि किसी भी देश का जरुरत से ज्यादा न्यायपालिका पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। मुझे चार महीने पहले मुख्य न्यायाधीश पद की पेशकस की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी मुझसे बात की थी। चूंकी मध्य प्रदेश में मेरे काफी रिश्तेदार है इसलिए मैंने अग्रह किया था कि मुझे वहां न भेजा जाए। फिर उडीशा की पेशकस की गई थी।
आज यदि आपके पिता(पूर्व कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी) तो क्या कहते?
सिर्फ इतना की मैं अपना फैसला लू। इसके अलावा कुछ नहीं कहते। उनके साथ पहली बार मैं नागपुर हाईकोर्ट में गया था। तब सोचा नहीं था कि एक दिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति की जिम्मेदारी संभालूंगा। 16 वर्षों की मेरी न्यायिक सेवा काफी बेहतरीन रहीं। इस दौरान मेरे मन में कोई कसक नहीं रही। भविष्य में भी कानून के क्षेत्र से जुड़ा रहूंगा। कानूनी परामार्श व दूसरे कार्य करता रहूंगा।
इसके अलावा एक तय बात है कि बांबे हाईकोर्ट में कार्यरत न्यायमूर्ति वहीं पर मुख्य न्यायाधीश नहीं हो सकता है। मेरा कार्यकाल करीब दो साल का था।
Created On :   14 Feb 2020 7:29 PM IST