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हाईकोर्ट : आग रोकने में कौन सा विभाग करेगा कानून लागू, शिक्षकेत्तर वेतनमान वृध्दि की स्वतंत्र जांच के संकेत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि आग को रोकने व जीवन रक्षक उपाय करने संबध में लाए गए कानून को लागू करने की जिम्मेदारी किस विभाग को दी गई है और कौन सा अधिकारी इस विषय को देख रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि साल 2006 में महाराष्ट्र फायर प्रिवेंशन एंड लाइफ सेफ्टी मेजर एक्ट लाया गया था। इस कानून को आए 14 साल बीत गए है फिर अमल की दिशा में ठोस कदमों का अभाव नजर आ रहा है। जबकि वर्तमान में हर शहर व तहसील स्तर पर भी बहुमंजिला इमारते बन रही है। इसलिए सरकार को सुरक्षा की दृष्टि से इस कानून को प्रभावी दृष्टि से लागू करना चाहिए व और इसके विषय में व्यापक जागरुकता फैलानी चाहिए। हाईकोर्ट में महानगर निवासी डाक्टर शर्मिला घूघे की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। गुरुवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने अतिरिक्त सरकारी वकील गीता शास्त्री को मामले की अगली सुनवाई के दौरान यह जानकारी देने को कहा कि महाराष्ट्र फायर प्रिवेंशन एंड लाइफ सेफ्टी मेजर एक्ट को लागू करने का जिम्मा किस विभाग को दिया गया है। खंडपीठ ने कहा कि सरकार चाहे तो इस मामले में विधि सेवा प्राधिकरण से भी सहयोग लिया जा सकता है। खंडपीठ ने मामले की सुनवाई शुक्रवार को रखी है।
विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र व मराठा विश्वविद्यालय सहित 6 यूनिवर्सिटी के शिक्षकेत्तर के वेतनमान में वृध्दि का मामला
बांबे हाईकोर्ट ने विर्दभ के संत गाडगेबाबा विश्वविद्यालय (अमरावती), गढचिरोली के गोंडवाना विश्वविद्यालय, जलगांव के उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, डाक्टर बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, सवित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय पुणे व शिवाजी विश्वविद्यालय (कोल्हापुर) के शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के वेतन मान में वृध्दि (पे स्केल) के मामले में सरकारी खजाने को कथित तौर पर लगी सात सौ करोड़ रुपए की लगी चपत की स्वतंत्र रुप से जांच कराने की बात कही है। दरअसल राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने 17 दिसंबर 2018 को इस पूरे प्रकरण की जांच कराने व कमर्चारियों को बदले वेतनमान के हिसाब से किए गए भुगतान की वसूली के संबंध में शासनादेश जारी किया था। इस शासनादेश के खिलाफ डाक्टर उर्मिला कुलकर्णी काले,शिवाजी विद्यापीठ सेवक संघ सहित अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। गुरुवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि सरकार ने साल 2009 में छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से पहले स्टाफिंग पैटर्न में बदलाव की शुरुआत की थी। इसके तहत उपरोक्त 6 विश्वविद्यालय की ओर से गैर शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के पद के नाम पर बदलाव को लेकर उच्च शिक्षा विभाग के एक कक्ष अधिकारी के पास प्रस्ताव भेजा था। जिसमें दावा किया गया था कि पद के नाम पर बदलाव से वेतन मान में कोई परिर्वतन नहीं होगा लिहाजा इसके लिए वित्तीय विभाग से मंजूरी की जरुरत नहीं है। लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से भेजे गए प्रस्ताव के अंतर्गत कर्मचारियों के वेतनमान (पे स्केल) को भी बदल दिया गया। यह वित्तीय विभाग की मंजूरी के बिना किया गया। लेकिन इसके चलते सरकारी खजाने को करीब सात सौ करोड़ रुपए की चपत लगी है। कई कर्मचारियों ने नए पे स्केल के हिसाब से 35 लाख रुपए तक एरिअर्स के रुप में रकम ली है। इस पूरे मामले की जांच व पैसे की वसूली के लिए विशेष जांच दल गठित किया था और जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद सरकार ने उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा विभाग ने 17 दिसंबर 2018 को इस पूरे मामले की जांच के लिए शासनदेश जारी किया था। राज्य के महाअधिवक्ता ने कहा कि 6 विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव को मंजूरी देनेवाले कक्ष अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है और उसके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरु कर दी गई है। वहीं एक याचिकार्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीष गोडबोले ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने इस पूरे मामले को देखा था। कर्मचारियों के प्रस्ताव को किसी से छिपाकर मंजूरी नहीं दी गई थी। इसलिए शुरुआत में हाईकोर्ट की औरंगाबाद की खंडपीठ ने सरकार के साल 2018 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी। वरिष्ठ अधिवक्ता राम आप्टे ने पुणे विश्वविद्यालय की ओर से पक्ष रखा। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि इस मामले की स्वतंत्र शख्स से जांच की जरुरत नजर आ रही है। जो इस पूरे विषय को समझता हो। महाराष्ट्र अकाउंटेट जनरलर यह कार्य देखने के लिए उपयुक्त हो सकते है। जिसके सामने याचिकाकर्ता व सरकार अपना पक्ष रख सके। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी।
Created On :   6 Feb 2020 8:33 PM IST