हाईकोर्ट : नियुक्ति के पांच साल के भीतर ही जन्मतिथि में हो सकता है बदलाव, डीआईजी मोरे की अग्रिम जमानत पर होगा फैसला

High Court: Within five years of appointment, date of birth may change
हाईकोर्ट : नियुक्ति के पांच साल के भीतर ही जन्मतिथि में हो सकता है बदलाव, डीआईजी मोरे की अग्रिम जमानत पर होगा फैसला
हाईकोर्ट : नियुक्ति के पांच साल के भीतर ही जन्मतिथि में हो सकता है बदलाव, डीआईजी मोरे की अग्रिम जमानत पर होगा फैसला

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि कर्मचारी नौकरी में नियुक्त होने के पांच साल के भीतर ही अपनी जन्म तारीख में बदलाव करवा सकता है। सेवा के अंतिम पडाव में कर्मचारी को सर्विस रिकार्ड में अपने जन्म तिथि में परिवर्तन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। मामला सातारा जिलापरिषद के कर्मचारी सुर्यकांत चव्हाण से जुड़ा है। चव्हाण ने अपनी जन्म तारीख में बदलाव के लिए 20 फरवरी 2019 को आवेदन किया था। जबकि वे जनवरी 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले थे। जिला परिषद प्रशासन ने चव्हाण के सर्विस रिकार्ड में जन्म तारीख में बदलाव करने के आवेदन को खारिज कर दिया था। इस लिए चव्हाण ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावडे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील ने दावा किया कि महाराष्ट्र सिविल सर्विस नियमावली 1981 के मुताबिक कर्मचारी नौकरी में नियुक्ति के पांच साल के भीतर जन्म तारीख में बदलाव कर सकते हैं। लेकिन याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्त के एक साल पहले जन्म तारीख में बदलाव के लिए आवेदन किया था। याचिकाकर्ता की करीब 30 साल की सेवा हो गई है। अब नौकरी के अंतिम पडाव पर याचिकाकर्ता को जन्मतारीख में परिवर्तन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह नियमों के खिलाफ है। सरकारी वकील की इन दलीलों को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने याचिका को आधारहीन मानते हुए उसे समाप्त कर दिया और कहा कि सेवा के अंतिम पडाव पर जन्मतारीख में बदलाव की इजाजत नहीं दी जा सकती है। 

निलंबित डीआईजी मोरे के अग्रिम जमानत पर फैसला 

वहीं नाबालिग से छेड़छाड के मामले में आरोपी निलंबित डीआईजी निशिकांत मोरे के अग्रिम जमानत आवेदन पर बंाबे हाईकोर्ट बुधवार को अपना फैसला सुनाएगी। मंगलवार को न्यायमूर्ति पीडी नाईक के सामने मोरे के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील ने मोबाइल फोन से रिकार्ड की गई वह क्लिप न्यायमूर्ति के सामने पेश की जिसके आधार पर मोरे पर नाबालिग के साथ छेड़छाड करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले मोरे के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल ने नाबालिग के साथ छेड़छाड नहीं की है। मेरे मुवक्किल व शिकायतकर्ता के परिवारवालों के बीच पैसे के लेन-देने को लेकर मतभेद थे। जिसके कारण छेड़छाड व पाक्सो कानून के तहत शिकायत दर्ज कराई गई है। मोरे के वकील ने स्पष्ट किया कि जो क्लिप पुलिस ने पेश की है उससे यह साफ नहीं होता है कि मेरे मुवक्किल ने नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड की है। यह क्लिप फिलहाल जांच के लिए कालीना की प्रयोगशाला में भेजी गई है। और इसकी रिपोर्ट अाना बाकी है। सुनवाई के दौरान मामले में शिकायतकर्ता के वकील ने आरोपी को जमानत देने का विरोध किया। गौरतलब है कि पनवेल कोर्ट ने मोरे को जमानत देने से इंकार कर दिया था। इसलिए उसने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया है। मामले से जुड़े सभी पक्षो को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि हम बुधवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाएगे। 

वाडिया अस्पताल मामला : अस्पताल में गड़बड़ी चल रही थी तो क्यों नहीं की जांच

इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने वाडिया अस्पताल को आर्थिक सहयोग देने से जुड़े मुद्दे को लेकर मंगलवार को फिर फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि मनपा व राज्य सरकार वाडिया अस्पताल के ट्रस्ट में शामिल हैं। यदि अस्पताल  में सरकार अथवा मनपा को आर्थिक गड़बड़ी की आंशका हो रही थी तो दोनों ने समय पर छानबीन कर जांच क्यों नहीं शुुरु की? अब मनपा का यह कहना कि उसे ट्रस्ट के बोर्ड के बैठक में बुलाया ही नहीं गया हास्यास्पद है। हाईकोर्ट में वाडिया अस्पताल के बकाया भुगतान की राशि जारी न करने को लेकर एसोसिएशन फॉर एडिंग जस्टिस नामक गैर सरकारी संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। मंगलवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि जब अस्पताल को पैसों का भुगतान करने का समय आया तो मनपा व राज्य सरकार को अस्पताल में गड़बड़ी नजर आने लगी। खंडपीठ ने कहा कि इस गड़बड़ी के बारे में मनपा व सरकार के प्रशासन को जानकारी नहीं रही होगी इस बात को नहीं माना जा सकता है। इस दौरान खंडपीठ को अस्पताल की बोर्ड बैठक में मनपा के प्रतिनिधियों के उपस्थित रहने की जानकारी दी गई। खंडपीठ ने कहा कि सरकार व मनपा प्रशासन के प्रतिनिधि व मामले से जुड़े सभी प्रतिनिधि आगामी 12 फरवरी को बोर्ड की बैठक में उपस्थित रहकर इस मामले को निपटाए। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 18 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। गौरतलब है कि मामले की पिछली सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा था कि सरकार के पास डा आंबेडकर की प्रतिमा बनाने के लिए पैसे हैं लेकिन अस्पताल को देने के लिए निधि नहीं है। 
 

Created On :   21 Jan 2020 2:27 PM GMT

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