पति ने नहीं किया नामित पर पेंशन के लिए पात्र है दूसरी पत्नी- हाईकोर्ट

Husband did not nominate but second wife is eligible for pension high court
पति ने नहीं किया नामित पर पेंशन के लिए पात्र है दूसरी पत्नी- हाईकोर्ट
पति ने नहीं किया नामित पर पेंशन के लिए पात्र है दूसरी पत्नी- हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पति द्वारा दूसरी पत्नी को पेंशन के लिए नामित न किए जाने के बावजूद बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसे पेशन के लिए पात्र पाया है। इससे पहले केंद्र सरकार के एक विभाग ने दूसरी पत्नी को पेशन के लिए आयोग्य ठहरा दिया था। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि पहली पत्नी के तीनों बच्चों ने याचिकाकर्ता को पेंशन दिए जाने के लेकर अपना अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) दिया है। यहीं नहीं पहली पत्नी के तीनों बच्चे वयस्क व विवाहित हैं इस लिए वे पेंशन के लिए पात्र भी नहीं हैं। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अनिरुध्द गर्गे ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति ने अपने सर्विस रिकार्ड में पहली पत्नी के निधन के बाद पेंशन के लिए अपने तीनों बच्चों को नामित किया था। इसके अलावा हमने याचिकाकर्ता को उत्तराधिकार प्रमाणपत्र पेश करने को कहा था जिसे वह पेश करने में विफल रही हैं। इसके अलावा उन्होंने कोर्ट के क्षेत्राधिकार को लेकर भी आपत्ति व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पति की मध्यप्रदेश में मौत हुई है। लिहाजा इस मामले को लेकर यहां याचिका नहीं दायर नहीं किया जा सकता। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने अपनी दूसरी शादी के संबंध में केंद्र सरकार को लिखा था। उसने अपनी शादी का प्रमाणपत्र भी सरकार को सौपा था। शादी को लेकर दी गई जानकारी को लेकर केंद्र सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। ऐसे में मेरे मुवक्किल को पेंशन से वंचित करना उचित नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को पेंशन के लिए पात्र पाया और चार सप्ताह के भीतर पेंशन की रकम जारी करने का निर्देश दिया है।

 

मनपा कि स्थाई समिति का आदेश मानना मनपा आयुक्त का कर्तव्य: हाईकोर्ट

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि महानगरपालिका  के आयुक्त का यह कर्तव्य है कि वह महानगरपालिका की स्थायी समिति की ओर से दिए गए आदेश का पालन करे। हाईकोर्ट ने यह बात मीरा-भायंदर महानगरपालिका के अग्निशमन विभाग में कार्यरत कर्मचारी सतीश गांगुर्डे व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही है। मीरा-भायंदर महानगरपालिका ने फायरमैन पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसके तहत इस पद के लिए दसवीं पास होना व सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान से फायर फाइटिंग का प्रशिक्षण लेना जरुरी बताया गया था। याचिकाकर्ता की जरुरी परीक्षा लेने के बाद उसकी साल 2010 में फायरमैन के रुप में नियुक्ति की गई थी। लेकिन बाद में महानगरपालिका ने पाया कि याचिकाकर्ता ने औरंगाबाद के जिस संस्थान से फायरफाइटिंग का प्रशिक्षण लिया है वह सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। इस संस्थान को महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड आफ टेक्निकल एज्युकेशन ने मंजूरी नहीं दी है। इसके बाद महानगरपालिका ने गांगुर्डे व एक अन्य कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। महानगरपालिका के इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता व एक अन्य कर्मचारी ने मनपा की स्थायी कमेटी के पास आवेदन किया। स्थायी कमेटी ने याचिकाकर्ता को नौकरी से निकालने के आदेश को साल 2017 में रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को एक साल के भीतर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से फायरफाइटिंग का कोर्स पूरा करने का निर्देश दिया। लेकिन मनपा आयुक्त ने स्थाई समिति के आदेश पर अमल नहीं किया। अदालत में सुनवाई के दौरान मनपा की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एनएआर बुबना ने कहा कि मनपा आयुक्त इस मामले में राज्य सरकार से जानकारी व मार्गदर्शन ले रहे हैं। साथ ही यह भी पता लगा रहे हैं कि याचिकाकर्ताओं ने औरंगाबाद के जिस परमानंद फायरफाइटिंग एंड सेफ्टी मैनेजमेंट कालेज से कोर्स किया है, वह सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है कि नहीं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि स्थायी समिति के आदेश को लेकर मनपा आयुक्त का रुख हमारी समझ से परे है। क्योंकि स्थायी समिति ने याचिकाकर्ताओं के बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया है। स्थायी समिति एक वैधानिक प्राधिकरण है। इसके साथ ही स्थायी समिति के आदेश को मनपा के आमसभा ने भी मंजूरी प्रदान की है। प्रथम दृष्टया हमारे मतानुसार मनपा आयुक्त का यह कर्तव्य है कि वह स्थायी समिति के आदेश का पालन करे। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने मनपा आयुक्त को इस मामले में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई 1 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी। हलफनामे में मनपा आयुक्त से जवाब मांगा गया है कि उन्होंने स्थायी समिति के आदेश का पालन क्यों नहीं किया है। 

Created On :   25 Sep 2019 1:21 PM GMT

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