पति छोड़ गया अब सास और ननद देंगी प्रतिपूर्ति, हाईकोर्ट ने दिए आदेश

Husband left mother-in-law and sister-in-law will now be reimbursed, High Court ordered
पति छोड़ गया अब सास और ननद देंगी प्रतिपूर्ति, हाईकोर्ट ने दिए आदेश
पति छोड़ गया अब सास और ननद देंगी प्रतिपूर्ति, हाईकोर्ट ने दिए आदेश

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने चंद्रपुर के वरोरा निवासी एक परिवार को आदेश दिए हैं कि वे अपनी 27 वर्षीय बहू साधना (परिवर्तित नाम) और उसके 2 वर्षीय बेटे को 25 हजार रुपए की प्रतिपूर्ति दें। हाईकोर्ट ने अपने पिछले आदेश में ससुराल वालों को यह रकम हाईकोर्ट रजिस्ट्री के पास जमा कराने को कहा था। हाल ही में जारी अपने आदेश में हाईकोर्ट ने साधना को यह रकम सौंप दी है। उक्त आदेश के साथ हाईकोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ निचली अदालत में जारी प्रकरण भी रद्द कर दिए। दरअसल, साधना का वराेरा निवासी रवि (परिवर्तित नाम)  के विवाह हुआ और उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। वर्ष 2015 में अचानक रवि गायब हो गया, बहुत ढूंढने पर भी उसका कोई पता नहीं चला। इधर, साधना के अपने ससुराल वालों से संंबंध बिगड़ने लगे। वर्ष 2016 में उसने अपनी सास और तीन ननदों के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा दी। वरोरा जेएमएफसी न्यायालय में इसकी सुनवाई हुई। इसके अलावा साधना ने ससुराल वालों से प्रतिपूर्ति पाने के लिए कोर्ट में अर्जी लगा दी। कोर्ट ने 2 अगस्त 2017 को ससुराल वालों को आदेश दिया कि वे साधना और उसके बेटे को 2-2 हजार रुपए प्रतिमाह प्रतिपूर्ति अदा करें। वहीं जेएमएफसी कोर्ट ने ससुराल वालों के नाम खेत को बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दी। जेएमएफसी कोर्ट के इस आदेश को ससुराल वालों ने वरोरा  सत्र न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन सत्र न्यायालय ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। अंतत: ससुराल वालों ने हाईकोर्ट में फौजदारी रिट याचिका  दायर की। 17 सितंबर 2019 को हाईकोर्ट ने ससुराल वालों को आदेश दिया कि वे प्रतिपूर्ति के लिए साधना और उसके पुत्र के नाम 25 हजार रुपए हाईकोर्ट रजिस्ट्री के पास जमा करें। मामले में पहले मध्यस्थता से समाधान निकालने के प्रयास किए गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। अंतत: दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने सुलह की कोशिश की, जिस पर साधना और उसके ससुराल वाले राजी हुए। 

 चालक के पास नहीं था लाइसेंस सिर्फ इस दावे के आधार पर मुआवजे से नहीं किया जा सकता वंचित

‌वहीं दुर्घटना की वजह बननेवाले वाहनचालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था सिर्फ इस आधार पर सड़क हादसे में जान गंवानेवाले शख्स के परिजनों को मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट की है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जिस वाहन के चलते हादसा हुआ है उसके पास वैध लाइसेंस नहीं था यह साबित किया जाना जरुरी है। मामला पुणे निवासी अजित वामन से जुड़ा है। वामन 26 नवंबर 2007 को अपनी मोटर साइकिल से तालेगांव से चाकन जा रहे थे। इस दौरान पीछे से आयी एक मोटरसाइकिल ने उन्हें ठोकर मार दी। इस सड़क हादसे में वामन की मौत हो गई। हादसे के बाद वामन के घरवालों ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में मुआवजे के लिए आवेदन किया। सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल ने वामन के घरवालों को आठ प्रतिशत ब्याज के साथ सात लाख 71 हजार रुपए देने का निर्देश दिया। ट्रिब्यूनल के इस आदेश के खिलाफ बीमा कंपनी बजाज एलिआंज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति आरडी धानुका के सामने अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान बीमा कंपनी की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने कहा कि जिस वाहन की वजह से सड़क दुर्घटना हुई उसके पास वैध व प्रभावी लाइसेंस नहीं था। ट्रिब्यूनल ने इस पहलू पर गौर किए बगैर ही मुआवजे का आदेश दिया है। इसलिए बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि बीमा कंपनी लाइसेंस से जुड़े अपने दावे को साबित करने में विफल रही है। उसकी ओर से अपने दावे के संबंध में कोई सबूत नहीं पेश किया है। सिर्फ उसके दावे के आधार पर की वाहन चालक के पास वैध लाइसेंस नहीं था। इसके आधार पीड़ित मृतक के परिजनों को मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने मुआवजे के आदेश को कायम रखा। और बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया। 
 

Created On :   30 Dec 2019 5:29 AM GMT

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